[ हृदयनारायण दीक्षित ]: इतिहास अनायास ही किसी को महानायक नहीं बनाता। कश्मीर के प्रख्यात इतिहासकार कल्हण ने राजतरंगिणी में लोकमत को निर्मम बताया है। उनके अनुसार लोकमत सामान्यतया आलोचक ही होता है। विश्व इतिहास के निर्माता और प्रतिष्ठित महानायक भी संपूर्ण लोकमन की प्रशंसा नहीं पा सके, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी विरल हैं। उन्होंने भारत के संपूर्ण जनगणमन का प्यार पाया। वह परिपूर्ण राष्ट्रवादी थे। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता में अटल थे बावजूद इसके उनके विचार के विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। व्यवहार में सरल, तरल अटल जी भारतीय राजनीति के विरल महानायक थे। वह तमाम असंभवों का संगम थे। वह सरस भावप्रवण कवि हृदय थे, लेकिन राजनीति के भावविहीन क्षेत्र में भी देश के अग्रणी राजनेता के तौर पर स्थापित हुए। जैसे विश्वमोहन मुस्कान और शब्दों की जादूगरी वैसे ही आचार व्यवहार में सबके प्रति आत्मीय।

विपरीत ध्रुवों से भी समन्वय की ऐसी साधना का दूसरा उदाहरण भारतीय राजनीति में नहीं मिलता। उनके निधन ने एक विश्वनेता खोया है। भारतीय राजनीति भी ऐसे सर्वप्रिय धीरोदात्त नायक को खोकर शोकग्रस्त है। आग्रही राजनीति में विपरीत धु्रवों का समन्वय आसान नहीं होता। 1975 में आपत्काल था। सारा देश उत्पीड़न का शिकार था। अटल जी ने गैरकांग्रेसी दलों से समन्वय बनाया। तमाम दल साझा मंच पर आए। अटल जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने गैर-कांग्रेसी दलों को एक ही निशान पर चुनाव लड़ने के लिए सहमत किया। 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी जीती। तब जनता पार्टी की सरकार थी। वह विदेश मंत्री बने। दिल्ली में भारतीय जनसंघ का अधिवेशन हुआ।

अटल जी ने जनसंघ के विसर्जन का प्रस्ताव रखा। वह दीनदयाल उपाध्याय का नाम लेकर भावुक हो गए। मैंने उनके अश्रु देखे। जनसंघ की विकास यात्रा में उपाध्याय, अटल जी आदि नेताओं ने अपना श्रम तप लगाया था। जनसंघ को विसर्जित करते समय अश्रु प्रवाह स्वाभाविक था। कुछ समय बाद जनता पार्टी में कलह हुई। जनसंघ घटक के सदस्यों पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा। अटल जी ने एक जनसभा में चुटकी ली, ‘उन्होंने पहले प्यार किया, संबंध बनाए। संबंधों का लाभ उठाया और अब हमसे हमारा गोत्र वंश पूछते हैं।’

जब जनसंघ घटक अलग हो गया तो अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी बनी। उनके नेतृत्व का जादू बढ़ता गया। यही जादू पार्टी को सत्ता तक ले गया। प्रतिष्ठित भाषणदाता भी अटल जैसा वाणी प्रभाव नहीं पैदा कर सके। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने विषय प्रतिपादन का नया रिकार्ड बनाया। प्रधानमंत्री के तौर पर नरसिंह राव ने उन्हें विदेशी प्रतिनिधिमंडल का नेता बनाया। वह भारत में विरोधी दल के नेता थे, लेकिन देश के बाहर भारत के प्रतिनिधि थे। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से राजनीतिक क्षेत्र में आए थे। सांस्कृतिक राष्ट्रभाव की विचारधारा में काम करते उनका कद बढ़ता रहा, लेकिन वैचारिक निष्ठा जस की तस रही।

वह लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म मासिक के संपादक रहे। वह लेखनी से भी अमर आग की आंच देते रहे। उन्होंंने हिंदू और हिंदुत्व को भारत की जीवनशैली बताया और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को राष्ट्र की भावनाओं की अभिव्यक्ति। उनकी कविता ‘तन मन हिंदू मेरा परिचय’ ने खूब ख्याति पाई। उन्होंने राजनीति में भारतीय संस्कृति का प्रवाह पैदा किया और जो कहा, सीना ठोककर कहा। न खेद न संशोधन और न ही हिचकिचाहट। उन्होंने संसद में सांप्रदायिकता की परिभाषा करने की मांग भी की।

अटल जी भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने तमाम क्षेत्रीय दलों को जोड़ा। भिन्न विचार और कार्यशैली वाले दल उनके नेतृत्व में संगठित हुए। अटल जी के नेतृत्व में ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बना। क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय आकांक्षा और राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय कठिनाइयां समझने और समझाने का अवसर मिला। अटल जी यह बात बखूबी जानते थे कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी परमाणु परीक्षण से सहमत नहीं। वह इसके कारण संभावित आर्थिक प्रतिबंधों से भी अवगत थे, लेकिन उन्होंने परमाणु परीक्षण का निर्णय लिया। उन्होंने संसद में देश की प्राथमिकता बताते हुए स्पष्ट किया, ‘परमाणु परीक्षण संबंधी हमारे निर्णय की एक मात्र कसौटी राष्ट्रीय सुरक्षा ही है। हमने किसी अंतरराष्ट्रीय करार का उल्लंघन नहीं किया।’

उन्होंने यह भी कहा कि परमाणु परीक्षण किसी देश के विरूद्ध भय उत्पन्न करने अथवा आक्रमण करने के लिए नहीं हैं। यह आत्म सुरक्षा के लिए ही है। इसी सिलसिले में समाजवादी नेता चंद्रशेखर के कथन पर अटल जी की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है। अटल जी ने कहा कि खेद है कि मैं आपसे सहमत नहीं हूं। चंद्रशेखर की बात काटते हुए भी वह शील और मर्यादा में ही रहे तो इसीलिए कि लोकतंत्र उनकी जीवन श्रद्धा था।

अटल जी ने भारत के राजनीतिक सार्वजनिक जीवन के लिए एक मर्यादा रेखा खींची। यह रेखा सामान्य राजनीति से बहुत ऊंची है। मूल्य आधारित विचारनिष्ठ सार्वजनिक जीवन की यह रेखा सभी राजनीतिक दलों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने लोकतंत्र को भारत की जीवनशैली बताया। उनके अनुसार लोकतंत्र 49 बनाम 51 का अंकगणित नहीं है। सबकी इच्छा, अभिलाषा और राष्ट्रीय स्वप्नों के लिए सबको साथ लेकर लोकजीवन का कल्याण करना ही जनतंत्री राजनीति है। इसीलिए वह सभी दलों और नेताओं में लोकप्रिय थे। उन्होंने भारतीय राजनीति को अनेक प्रतीक प्रतिमान दिए। राष्ट्र सर्वोपरिता की सगुण जीवनदृष्टि दी। संसद में मर्यादा पालन के नए आयाम दिए। एक लंबे अर्से से मौत से उनकी टक्कर थी। मौत भी उनसे लड़ते लड़ते थक सी गई थी। उन्होंने अपनी कविता में लिखा है-

मौत से ठन गई/जूझने का मेरा कोई इरादा न था/मोड़ पर मिलेंगे/इसका वादा न था/रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई/मैं जी भर जिया/मैं मन से मरूं/लौटकर आऊंगा/कूच से क्यों डरूं?

अटल अटल निश्चयी थे। अथर्ववेद में दृढ़ निश्चयी कार्यकर्ता की गति बताई गई है, ‘‘वह उठा। पूर्व दिशा की ओर चला वृहत्साम, रथंतर साम गान उसके पीछे चले। उसकी कीर्ति बढ़ी। वह दक्षिण चला। ऋद्धि सिद्धि समृद्धि उसके साथ चली। वह उत्तर चला। सोम देव आदि उसके साथ चले। वह अविचल- टल खड़ा रहा। देव शक्तियों ने उसे आसन दिया। उसने ध्रुव दिशा की ओर गति की। भूमि और वनस्पतियां उसके अनुकूल हुईं। वह कालगति के अतिक्रमण में चला। काल ने उसका अनुसरण किया। वह दृढ़निश्चयी चलता रहा। इतिहास और पुराण उसके साथ हो गए- इतिहास च पुराणं च गाथाश्च अनुव्य चलन।’

अटल जी भी इतिहास पुरूष पुराण पुरूष हैं। इतिहास ने उन्हें अपने हृदय में स्थान दिया है। शरीर का क्या? यह क्षण भंगुर है। अटल सत्य यही है कि जो आता है, सो जाता है, लेकिन अटल जी का जीवन सतत प्रवाही है। राष्ट्र के लिए ही जन्म और जीवन की संपूर्ण गति असंभव है। अटल जी का जीवन असंभव का संभव है- संभवामि युगे युगे। वह प्रतिपल भारत के राष्ट्रजीवन में है। भारत के अणु परमाणु में उनका कृतित्व और विचार रस बस गया है।

[ लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैैं ]