डॉ. नीलम महेंद्र। दक्षिण पूर्व एशिया के देश वियतनाम में खोदाई के दौरान बलुआ पत्थर का एक शिवलिंग मिलना न केवल पुरातात्विक शोध की दृष्टि से एक अद्भुत घटना है, अपितु भारत के सनातन धर्म की सनातनता और उसकी व्यापकता का एक अहम प्रमाण भी है। यह शिवलिंग नौवीं शताब्दी का बताया जा रहा है। जिस परिसर में यह शिवलिंग मिला है, इससे पहले भी यहां पर भगवान राम और सीता की अनेक मूर्तियां और शिवलिंग मिल चुके हैं। आधुनिक इतिहासकार भारत की सनातन संस्कृति को लेकर जो भी दावे करें, किंतु लगभग संपूर्ण विश्व में इसके फैले होने के प्रमाण अनेक अवसरों पर ऐसे ही सामने आते रहते हैं।

दरअसल सनातन धर्म समूचे विश्व में फैला हुआ था। इस पर अनेक खोजपूर्ण अध्ययन भी हुए जिसके अनेक प्रमाण भी हैं। इंडोनेशिया में विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी रहती है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस मुस्लिम बहुल देश की संस्कृति में रामायण रची-बसी है। रामकथा इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यहां के बाली द्वीप में खोदाई के दौरान प्राचीन मंदिरों के कुछ अंश भी मिले। इंडोनेशिया का यह स्थान कभी हिंदू धर्म का केंद्र था और आज यही मंदिर बाली द्वीप की पहचान है। इंडोनेशिया के इस द्वीप पर हिंदुओं के कई प्राचीन मंदिरों के साथ एक गुफा मंदिर भी स्थित है जिसमें तीन शिवलिंग बने हैं और यह भगवान शिव को समर्पित है। वर्ष 1995 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल किया गया था।

कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक अंकोरवाट एक हिंदू मंदिर है जो कंबोडिया में स्थित है। भगवान विष्णु के इस मंदिर को आज भी संसार में सबसे बड़े मंदिर होने का गौरव प्राप्त है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला है। यह मंदिर आज कंबोडिया राष्ट्र के सम्मान का प्रतीक है और इसे 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया। विश्व का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के साथ साथ यह मंदिर यूनेस्को के श्वि धरोहर स्थलों में से भी एक है। 

दक्षिण अफ्रीका में भी शिवलिंग: इन्हीं जानकारियों के बीच आपको अगर यह बताया जाए कि दक्षिण अफ्रीका में भी पुरातत्वविदों को लगभग छह हजार वर्ष पुराना शिवलिंग मिला है तो आप क्या कहेंगे। दक्षिण अफ्रीका की सुद्वारा नामक गुफा में मिले इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता भी हैरान हैं कि इतने वर्षो से यह शिवलिंग अभी तक सुरक्षित कैसे है? लेकिन यहां गुफा में स्थापित हजारों वर्ष पुराना शिवलिंग इतना तो प्रमाणित करता ही है कि हिंदू धर्म अफ्रीका तक प्रचलित था।

इन देशों से इतर भी यदि आपको पता चले कि वो देश जो आज अपनी हरकतों के चलते लगभग विश्व के हर देश की आंख की किरकिरी बना हुआ है, कभी वहां भी हिंदू मंदिर और संस्कृति हुआ करती थी। जी हां, चीन के एक शहर में हजार वर्ष पुराने हिंदू मंदिरों के खंडहर आज भी मौजूद हैं। यहां से निकली नरसिंह अवतार की मूर्तियां और मंदिर के स्तंभों पर अंकित शिवलिंग च्वानजो के म्यूजियम में रखी हुई हैं। कहा जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व रूस में भी वैदिक पद्धति से प्रकृति जैसे वायु और वृक्षों की पूजा की जाती थी, जो यहां भी हिंदू धर्म के होने का इशारा करता है।

विद्वानों का कहना है कि रूसियों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की पूजा बहुत कुछ हिंदू रीति-रिवाजों से मेल खाती थीं। पुरातत्ववेत्ताओं को रूस में भी खोदाई के दौरान रूसी देवी देवताओं की मूर्तियां मिलती हैं जिनकी समानता हिंदू देवी-देवताओं से की जा सकती है। रूस के विद्वान भी मानते हैं कि वहां के प्राचीन धर्म के बहुत से निशान अभी भी रूसी संस्कृति में बाकी रह गए हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि रूस के प्राचीन धर्म और हिंदू धर्म में काफी समानताएं हैं।

जापान में भी मिले प्रमाण: क्या जापान की वर्तमान संस्कृति और सनातन संस्कृति में कोई संबंध है? दरअसल जापान में सैकड़ों धार्मिक स्थल हैं जहां की मूर्तियां देवी सरस्वती, लक्ष्मी, इंद्र, ब्रह्मा गणोश, गरुड़, कुबेर, वायुदेव और वरुणदेव का प्रतीक हैं। यहां जिन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है उनकी हिंदू देवी-देवताओं से कितनी समानता है इसे भी समझने की आवश्यकता है। जैसे वहां कांजीतेन भगवान की पूजा की जाती है जिनकी मूर्ति गणोश जी के समान है, उन्हें बिनायकतेन (विनायक) कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि ये विघ्न हरते हैं और समृद्धि के प्रतीक हैं। इसी प्रकार वहां बॉनतेन भगवान (ब्रह्मा) की पूजा होती है जिनकी मूर्ति के चार सिर और चार हाथ होते हैं और ऐसा माना जाता है कि ये ब्रह्मलोक में निवास करते हैं। जापानी ताईशाकूतेन (इंद्रदेव) की पूजा करते हैं जो हाथी की सवारी करते हैं और मान्यता है कि वे स्वर्गलोक के राजा हैं। इसी प्रकार वहां किच्चिजोतेन (लक्ष्मी) की पूजा की जाती है जो कमल के फूल पर विराजमान हैं और इन्हें भाग्य और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है।

इस तरह जब हमें यह प्रमाण मिलते हैं कि रूस से लेकर जापान तक और इंडोनेशिया से लेकर अफ्रीका तक के देशों के इतिहास में कभी सनातन हिंदू धर्म वहां की संस्कृति का हिस्सा थी और आज जब उसके निशान वियतनाम में मिले शिवलिंग के रूप में संपूर्ण विश्व के सामने आते हैं तो गर्व होता है, स्वयं के भारत की सनातन संस्कृति का हिस्सा होने पर।

[वरिष्ठ स्तंभकार]