[अवधेश कुमार]। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने मदरसों के बाद अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का भी सर्वे कराने का निर्णय लिया है। मुस्लिम समाज के भीतर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के सर्वे के विरोध का स्वर मदरसों के सर्वे के विरोध से ज्यादा सघन और तीखा है। आखिर किसी सर्वे को लेकर आपत्ति क्यों होनी चाहिए? जमीन किसी व्यक्ति या संस्था की ही क्यों न हो उसकी वास्तविक स्थिति की जानकारी सरकार को होनी चाहिए।

वक्फ अगर भारतीय रेलवे एवं सशस्त्र बलों के बाद भू स्वामित्व वाला तीसरा सबसे बड़ा संगठन है तो स्वाभाविक है इसमें भारी संख्या में लोगों के स्वार्थ भी जुड़े होंगे। तर्क यह है कि वक्फ की संपत्ति केवल मजहबी या मजहब के उद्देश्यों के लिए ही उपयोग में लाई जा सकती है। यानी यह इतनी पवित्र है कि इसे स्पर्श तक नहीं किया जा सकता। क्या इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाए?

इसका उत्तर देने के पहले उत्तर प्रदेश के ही कुछ मामलों पर ध्यान देना चाहिए। ताजमहल पर 2005 में वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआइ को इसके विरोध में न्यायालय जाना पड़ा और उच्चतम न्यायालय ने इस पर स्थगन आदेश दिया हुआ है। वाराणसी ज्ञानवापी मामले की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष का यही दावा है कि यह सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। ताजमहल का निर्माण किसने किया, इसी पर विवाद है।

अगर शाहजहां ने ही उसे बनवाया तो उसने वक्फ कब बनाया? ज्ञानवापी मामले में भी न्यायालय में हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि औरंगजेब ने कभी वक्फ नहीं बनाया। उत्तर प्रदेश में ऐसे अनेक स्थल हैं जिन पर वक्फ दावा करता है और विवाद चल रहा है। ऐसे में सर्वे करके पूरी सच्चाई सामने आना आवश्यक है, ताकि उसके अनुसार भविष्य में सरकार निर्णय ले या मामलों को एक साथ सुलझाया जाए।

अब आएं इस मामले से जुड़े दूसरे पहलू पर। वक्फ अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित है। भारत सरकार द्वारा ही 1954 के वक्फ अधिनियम के तहत 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल आफ इंडिया की स्थापना की गई थी। वक्फ बोर्ड का गठन सरकारी आदेश से ही हुआ। देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं। वक्फ बोर्ड में कम से कम पांच सदस्य होने चाहिए। सदस्यों को राज्य सरकारें नामांकित करती हैं। फिर यह इतना पवित्र कैसे हो गया कि इसका सर्वे उसे नापाक कर देगा?

वक्फ की अवधारणा को लेकर ही बड़ा प्रश्न चिह्न लगा हुआ है, क्योंकि अनेक इस्लामी देशों मसलन तुर्किये जो पहले तुर्की था उसके अलावा लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जार्डन, ट्यूनीशिया और इराक आदि में वक्फ नहीं है। सच कहा जाए तो मुस्लिम वोट बैंक के सोच के तहत हमारे नेताओं ने वक्फ के रूप में मजहबी जमींदार की अवधारणा का साकार रूप उपस्थित कर दिया। एक पंथनिरपेक्ष देश में मजहबी बोर्ड को इतनी बड़ी हैसियत कैसे मिल सकती है?

पीवी नरसिंह राव सरकार ने 1995 में वक्फ को कानूनन इतना मजबूत बना दिया कि उसे निर्णय लेने तक का अधिकार हो गया। वक्फ कानून की धारा-40 वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को यह विश्वास होता है कि किसी ट्रस्ट या सोसायटी की संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो बोर्ड उस ट्रस्ट एवं सोसायटी को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है कि ‘क्यों न इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति की तरह दर्ज कर लिया जाए?’

जवाब से संतुष्ट न होने को आधार बनाकर वह बड़ी सुविधानुसार और सहजता से उसे अपनी संपत्ति घोषित कर सकता है। ऐसा ही हो रहा है। वक्फ की संपत्ति किस ढंग से बढ़ रही है यह इसी से पता चलता है कि 2009 में संसदीय समिति ने आकलन किया था उसके पास छह लाख एकड़ जमीन है। इस समय यह आठ लाख एकड़ से ज्यादा हो चुकी है।

वक्फ की जमीनें कैसे बढ़ती हैं इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण तमिलनाडु है। तमिलनाडु वक्फ बोर्ड द्वारा तमिलनाडु में त्रिची के नजदीक स्थित तिरुचेंथुरई गांव को वक्फ संपत्ति बनाया जा चुका है। गांव में मानेदियावल्ली समीथा चंद्रशेखर स्वामी मंदिर है। दस्तावेजों और सुबूतों के मुताबिक यह मंदिर 1,500 साल पुराना है। मंदिर भी वक्फ बोर्ड की संपत्ति हो गई। अनेक मुस्लिम प्रवक्ता बोलते हैं कि संसद तक वक्फ की जमीन पर बनी हुई है।

ऐसा लगता है कि वक्फ की अवधारणा में संपूर्ण भारत ही उनकी संपत्ति होगी। इस नाते पूरे देश में वक्फ की संपत्तियों का समग्र सर्वे आवश्यक हो गया है। इसका एक पहलू भ्रष्टाचार भी है। ऐसा कोई प्रमुख राज्य नहीं जहां वक्फ संपत्तियों में भ्रष्टाचार के मामले नहीं चल रहे हों। मुसलमानों के बड़े राजनीतिक और मजहबी लोगों ने अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर वक्फ संपत्ति को अपना बनाया है, उनका वाणिज्यिक और निजी उपयोग किया है।

साफ है कि सर्वे के साथ इन सबकी असलियत पूरे समाज के सामने आ जाएगी। इस मायने में योगी आदित्यनाथ के साहस की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने मजहब के नाम पर पर साधनसंपन्न एवं समृद्ध मुसलमानों की लूट और भ्रष्टाचार के अंत के साथ बड़े सामाजिक सुधार आंदोलन की ओर कदम बढ़ा दिया है। वक्फ की संपत्तियों के वास्तविक आकलन से हिंदू और मुसलमानों के बीच अनेक गलतफहमियां दूर होंगी। इससे सामाजिक सामंजस्‍य का आधार कायम होगा। वैसे भी वक्फ न्याय और कानून के किसी भी सिद्धांत की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसका अंत ही होना चाहिए।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)