[ भरत झुनझुनवाला ]: चीन के तीव्र आर्थिक विकास का एक कारण वहां की तानाशाही बताया जाता है। यह बात सही है, लेकिन अन्य लोकतांत्रिक देशों ने भी उल्लेखनीय प्रगति की है। इतना अवश्य है कि लंबे समय तक वही लोकतांत्रिक देश आगे बढ़े जिन्होंने किसी समय अन्य देशों को लूटा या उनका शोषण किया। लोकतंत्र की शुरुआत आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व यूनान में हुई थी। वहां पर पूरे शहर के लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर सामूहिक निर्णय लेते थे, लेकिन यह व्यवस्था इसलिए संभव हो सकी, क्योंकि यूनान ने लोहे के अस्त्रों का आविष्कार किया और उनके जरिये आसपास के तमाम देशों को लूटा और खुद को समृद्ध बनाया। इसी तरह रोम ने अपने घुड़सवारों को लोहे के अस्त्रों से लैसकर तमाम देशों को लूटा। बाद में वहां के लोगों ने लोकतंत्र स्थापित किया। इसके बाद इंग्लैंड में लोकतंत्र का पुनर्जागरण हुआ, लेकिन एक समय इंग्लैंड ने विश्व के तमाम देशों को अपना उपनिवेश बना रखा था।

अमेरिका ने WTO में पेटेंट एक्ट को इसीलिए जोड़ा ताकि तकनीक बेचकर भारी आय अर्जित कर सके

उपनिवेशों पर अपने एकाधिकार से इंग्लैंड अपने माल को महंगा बेचकर वहां से भारी आय अर्जित कर रहा था। कार्ल मार्क्स के सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स ने किसी समय कहा था कि इंग्लैंड के श्रमिक विश्व बाजार पर एकाधिकार के भोज में आनंद मना रहे हैं। माना जाता है कि अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन में पेटेंट एक्ट को इसीलिए जोड़ा ताकि वह विश्व में अपनी तकनीक बेचकर भारी आय अर्जित कर सके।

लोकतंत्र को विकासशील देशों ने अपनाया तो, लेकिन अपेक्षित विकास नहीं कर पाए

विकसित देशों द्वारा आविष्कार किए गए लोकतंत्र को विकासशील देशों ने अपनाया तो, लेकिन उसे सुदृढ़ नहीं किया गया और इसीलिए वे अपेक्षित विकास नहीं कर पा रहे हैं। लोकतंत्र की खामियों के कारण ही विकासशील देशों पर उसका प्रभाव सार्थक नहीं दिखता। दस वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अपनी मानव विकास रपट में पूछा था कि आज लोकतंत्र के प्रति उत्साह कम क्यों है? तमाम देशों में आम आदमी के जीवन में लोकतंत्र अपेक्षित सुधार क्यों नहीं ला सका है? उसके अनुसार पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में असमानता में वृद्धि हुई है और गरीबी भी बढ़ी है।

तानाशाही सफल हो सकती है यदि तानाशाह जनहित में कार्य करे

नि:संदेह तानाशाही का रिकॉर्ड और भी खराब है। स्टालिन, हिटलर और इदी अमीन जैसे तमाम तानाशाहों ने अपने देशों को बर्बाद ही किया। चीन तमाम प्रगति करने के बावजूद तिब्बत और हांगकांग के लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है। लोकतंत्र सफल हो सकता है यदि वह अपनी खामियों को दूर करे। तानाशाही सफल हो सकती है यदि तानाशाह जनहित में कार्य करे, लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिलता है। आज यह संभव नहीं कि कोई देश किसी दूसरे देश का शोषण करे और खुद को लोकतांत्रिक देश बताए। यदि कोई देश तानाशाही की राह पर जाता है तो वह अपने देश को बर्बाद करने के साथ दूसरे देशों के लिए भी आफत बन सकता है।

आपसी झगड़े से लोक व्यवस्था नष्ट हो जाती है

महाभारत के शांति पर्व में भीष्म ने कहा था कि आपसी झगड़े से लोक व्यवस्था नष्ट हो जाती है। लोक व्यवस्था तभी सफल होती है जब राजा दूसरों को अपने विश्वास में ले। भीष्म के अनुसार यदि शासक जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लें तो वे आसानी से सफल शासक बन सकते हैं। बीते कुछ महीनों में न्यूयार्क के गवर्नर का व्यवहार देखकर मैं उत्साहित हुआ। उन्होंने प्रतिदिन एक घंटा प्रेस को पूरा विवरण बताया कि कोरोना कहां फैल रहा है, कितने वेंटिलेटर उपलब्ध हैं, कहां से नए वेंटिलेटर आएंगे? उन्होंने ऐसा करके जनता को अपने विश्वास में लिया और वह न्यूयार्क को कोरोना के गंभीर संकट से एक हद तक बाहर निकालने में सफल हुए।

लोकतंत्र को सही तरह चलाने के लिए शासक अपने नागरिकों को विश्वास में लें

स्पष्ट है कि लोकतंत्र को सही तरह चलाने के लिए शासक अपने नागरिकों को विश्वास में लें और आपसी एकमत बनाकर देश को आगे बढ़ाएं। इससे ही र्आिथक एव सामाजिक विकास संभव है। इसके लिए तीन कदम अवश्य उठाए जाने चाहिए।

सरकार के अधिकारियों को जनता के सवालों के नियमित जवाब देने चाहिए

एक, सरकार के शीर्ष अधिकारियों को जनता के सामने आकर उनके सवालों के नियमित जवाब देने चाहिए। अमेरिकी संसद की समितियों की सुनवाई का लाइव प्रसारण होता है। कुछ समय पहले अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के किसी शहर की नगरपालिका की मीटिंग का वीडियो देखने को मिला। उसमें जनता ने खुलकर लॉकडाउन का विरोध किया। मैं नहीं समझता कि अपने देश में कोई भी नगरपालिका किसी निर्णय को लेने के पहले जनता की बात सीधे सुनती हो।

शीर्ष अधिकारियों को विरोधियों के साथ संवाद करना चाहिए

शीर्ष अधिकारियों को केवल अपनी बात कहने और उसे ही सत्यापित करने के स्थान पर अपने विरोधियों के साथ संवाद करना चाहिए। जैसे परिवार के मुखिया की नौकरी छूट जाए तो बच्चों से संवाद करने से वे आइसक्रीम की मांग करना बंद कर देते हैं। हमें संवाद को गहरा बनाना होगा, जबकि हमारी व्यवस्था इसके विपरीत चल रही है। जैसे पर्यावरण कानून में किसी परियोजना को लागू करने के पहले जनसुनवाई का प्रावधान है। कई जगह विपरीत विचार वालों को पुलिस के बल पर जनसुनवाई से बाहर रखा जाता है और फर्जी जनसुनवाई होती है। तब जनता का सहयोग नहीं मिलता।

विचारों के आदान-प्रदान से सरकार को अपनी गलतियों को ठीक करने का अवसर मिलता है

दूसरे कदम के रूप में कबीर के ‘निंदक नियरे राखिए’ वाले सिद्धांत को अपनाना चाहिए। यदि देश के नेता निंदकों की बात सुनते हैं और उनके साथ संवाद करते हैं तो यह संवाद तमाम विरोधियों के विरोध को सहयोग में बदल देता है। विचारों का आदान-प्रदान बढ़ना चाहिए। इससे सरकार को अपनी गलतियों को ठीक करने का अवसर मिलता है। ऐसा मान कर नहीं चलना चाहिए कि हर एक निंदक विरोधी है, जिसे बाहर करना है। जो लोग अलग सोचते हैं उनके साथ संवाद बनाना चाहिए।

लचर कानूनी व्यवस्था से वाद को निपटाने में सालों साल लग जाते हैं

तीसरा और बेहद जरूरी कदम कानूनी सुधार है। वास्तव में अपने यहां लोकतंत्र की अति देखने को मिल रही है। इससे जरूरी काम समय पर नहीं होते और देश को भारी नुकसान होता है। अपने यहां प्रत्येक व्यक्ति को कानून की छत्रछाया में सरकार की नीतियों का विरोध करने का अधिकार है। यह व्यवस्था अपनी जगह ठीक है, लेकिन हमारी कानूनी व्यवस्था इतनी लचर है कि किसी वाद को निपटाने में 10-15 साल लगना आम बात है। ऐसी परिस्थिति में काम ठप रहते हैं और विरोध चलता रहता है।

यदि हम कानूनी विवादों को शीघ्र निपटा दें तो हम सच्चे लोकतंत्र की राह पर आ सकते हैं

यदि हम कानूनी विवादों को शीघ्र निपटा दें तो संवाद की स्थिति शीघ्र स्थापित हो सकती है और हम सच्चे लोकतंत्र की राह पर आ सकते हैं। आज के युग में कोई भी देश सच्चे लोकतंत्र के दायरे में ही आर्थिक विकास और वैचारिक स्वतंत्रता, दोनों को हासिल कर सकता है।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं )