[ ए. सूर्यप्रकाश ]: नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर जैसी पहल का कुछ राजनीतिक दलों एवं राज्य सरकारों द्वारा लगातार किया जा रहा विरोध हमारे गणतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए उचित नहीं है। सीएए तो अब कानून भी बन गया है। यह हमारे तीन पड़ोसी इस्लामिक देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है। इसके लिए भी 31 दिसंबर, 2014 की मियाद रखी गई है। चूंकि ये तीनों ही देश घोषित रूप से इस्लामिक राष्ट्र हैं। इस कारण वहां दूसरे धर्मों के लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। वहां गैर-मुस्लिमों को हेय दृष्टि से देखा जाता है।

तीनों इस्लामिक राष्ट्रों में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए जुल्मों से उन्हें देश छोड़ना पड़ा

दरअसल विभाजन के समय से ही इन देशों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर किस्म-किस्म के जुल्म किए गए। तब मजबूरन उनके समक्ष दो ही विकल्प रह गए। या तो धर्मांतरण या वहां से भागकर कहीं और शरण लेना। इसका परिणाम यह निकला कि 1940 के दशक के आसपास अविभाजित पाकिस्तान में हिंदुओं की जो आबादी 24 प्रतिशत थी वह 1.7 प्रतिशत रह गई। इसी तरह अतीत में पूर्वी पाकिस्तान रहे बांग्लादेश में भी इसी कालावधि में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत से घटकर सात फीसद रह गई है।

प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए मियाद तय, इसके बाद दरवाजे बंद

इसी तथ्य में वह जवाब निहित है कि सीएए के तहत प्रताड़ित अल्पसंख्यकों की सूची से मुस्लिमों को क्यों बाहर रखा गया है। अव्वल तो वे ‘अल्पसंख्यक’ नहीं और दूसरी बात यह कहना हास्यास्पद ही है कि इस्लामिक देश में मुस्लिमों का ‘उत्पीड़न’ हो रहा है। प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए भी सीएए में एक मियाद तय की गई है। यानी यह भविष्य में इन देशों के विस्थापितों के लिए देश के दरवाजे खोल देने का मामला नहीं है। फिर इसका भारतीय नागरिकों से भी कोई लेनादेना नहीं, भले ही वे हिंदू हों या मुस्लिम।

भाजपा विरोधी दल सीएए को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं कि यह मुस्लिम विरोधी है

इस वास्तविकता को देखते हुए कम्युनिस्ट, कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी दल सीएए को लेकर जो दुष्प्रचार कर रहे हैं कि यह मुस्लिम विरोधी है, वह पूरी तरह भ्रामक है। इस कानून के जरिये जो प्रयास हो रहा है वह भारतीय धर्म और हमारे संवैधानिक दायित्वों के अनुरूप ही है कि हम प्रताड़ितों को संरक्षण प्रदान करें। जो इसका विरोध कर रहे हैं वे असल में पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों के गैर-सेक्युलर और गैर-लोकतांत्रिक स्वरूप की अनदेखी कर रहे हैं। इसके साथ ही वे भारत में इन मूल्यों की बात करने का नैतिक आधार भी गंवा देंगे।

कम्युनिस्ट और कांग्रेसी एनपीआर को लेकर भी अफवाहें फैलाने में जुटे

कम्युनिस्ट और कांग्रेसी एनपीआर को लेकर भी अफवाहें फैलाने में जुटे हैं जिसका संकलन नीति निर्माण के लिए बेहद जरूरी है। इन दोनों ही दलों को देश की जनता ने पिछले साल मई में हुए संसदीय चुनावों में बुरी तरह खारिज किया था। भले ही टेलीविजन पर होने वाली बहसों में कम्युनिस्टों को 30 से 40 प्रतिशत तक जगह मिलती हो, लेकिन इन दलों के जनाधार में भारी कमी आई है।

कम्युनिस्ट दलों का लोकसभा चुनाव में गिरता मत प्रतिशत, जेएनयू ही उनका आखिरी गढ़ बचा

वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में दो शीर्ष कम्युनिस्ट दलों को 7.07 प्रतिशत मत मिले। फिर 2014 के चुनाव में यह हिस्सेदारी और घटकर 4.07 फीसद रह गई और पिछले साल हुए आम चुनाव में यह महज 2.36 प्रतिशत पर सिमट गई। लगता है जेएनयू ही उनका आखिरी गढ़ बचा रह गया है। अब ये दोनों वाम दल कांग्रेस के साथ मिलकर उस कानून को लेकर सरकार को घेरकर अपनी चुनावी खीझ उतारने पर आमादा हैं जिस कानून को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है।

सीएए के विरोध में केरल, पंजाब, राजस्थान और बंगाल विधानसभा ने प्रस्ताव किया पारित

केरल विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि संसद द्वारा पारित सीएए ने समाज के विभिन्न वर्गों को भयाक्रांत करने का काम किया है। इसके बाद पंजाब विधानसभा ने पारित प्रस्ताव में कहा कि सीएए ने देश में व्यापक तनाव और सामाजिक असंतोष पैदा किया है। उसने इसके पीछे की विचारधारा को पक्षपातपूर्ण एवं मानवीय मूल्यों से दूर बताया। ऐसे प्रस्ताव पारित करने वाले राज्यों की फेहरिस्त में ताजा नाम राजस्थान और पश्चिम बंगाल का जुड़ा है।

विधानसभाओं में पारित प्रस्ताव देश के संघीय ढांचे के लिए खतरा

ये प्रस्ताव न केवल असंवैधानिक, बल्कि अप्रत्याशित भी हैं जो देश के संघीय ढांचे के लिए निश्चित रूप से खतरा पैदा करते दिख रहे हैं। इन प्रस्तावों में भी पंजाब विधानसभा का प्रस्ताव बहुत चिंताजनक है। उसमें आशंका जताई गई है कि एनपीआर राष्ट्रव्यापी एनआरसी का पहला पड़ाव है जिसका लक्ष्य ‘एक वर्ग को भारतीय नागरिकता से वंचित करना है’ और इन आशंकाओं को देखते हुए केंद्र सरकार को एनपीआर के प्रावधानों को बदलना चाहिए। ऐसे प्रस्ताव पारित करने वाली केरल, पंजाब, राजस्थान और बंगाल विधानसभाओं ने स्वघोषित मजहबी मुल्कों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों की दुर्दशा पर कोई संताप प्रकट नहीं किया।

कई मुख्यमंत्रियों का एलान- नहीं करेंगे अपने राज्यों में सीएए लागू

सेक्युलरिज्म पर उनके भाषण भारत के सेक्युलर एवं लोकतांत्रिक नागरिकों और उनके द्वारा चुनी गई सरकार के लिए ही हैं। इस सिलसिले में हाल के तीन और घटनाक्रम बहुत चिंतित करने वाले हैं। पहला यही कि कई मुख्यमंत्रियों ने एलान किया है कि वे अपने राज्यों में सीएए लागू नहीं करेंगे। दूसरा यह कि सीएए के खिलाफ धरना स्थलों पर बच्चों का सहारा लेकर उन्हें प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करने के लिए उकसाया जा रहा है। तीसरा यह कि मुस्लिमों को भड़काया जा रहा है कि वे एनपीआर के लिए सहयोग न करें।

राज्यों की बाध्यता है संसद द्वारा पारित कानून को लागू करने की

अपने-अपने राज्यों में सीएए लागू न करने का एलान करने वाले मुख्यमंत्रियों को तुरंत अपनी यह घोषणा वापस लेनी चाहिए, क्योंकि इससे संविधान की सर्वोच्चता पर सवाल उठता है। नागरिकता से जुड़े कानून बनाने का एकाधिकार संसद के पास है और किसी व्यक्ति या राज्यों को यह कहने का अधिकार नहीं कि वे संसद द्वारा पारित कानून को लागू नहीं करेंगे। यदि मुख्यमंत्री ही इस रुख पर अड़े रहेंगे तो इससे संवैधानिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न होगी जिसके गंभीर परिणाम होंगें।

एनपीआर के बहिष्कार की अपील भी जोखिम भरी है

प्रदर्शनकारी जिस तरह बच्चों को आगे करके प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करा रहे हैं वह भी अस्थिरता पैदा करने की निशानी है जिसका कोई भी तार्किक व्यक्ति समर्थन नहीं करेगा। एनपीआर के बहिष्कार की अपील के भी बहुत जोखिम हैं, क्योंकि किसी चुनी हुई सरकार के कामकाज को बाधित करने के प्रयास के अपने अंतर्निहित खतरे हैं।

जनता को सतर्क रहना होगा, संवैधानिक मूल्यों एवं लोकतांत्रिक जनजीवन अस्थिर न हो पाए

जो भी लोग ऐसी कुप्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं, वे एक बेहद खतरनाक राह पर बढ़ रहे हैं। देश की जनता को सतर्क रहना होगा कि संवैधानिक मूल्यों एवं लोकतांत्रिक जनजीवन किसी तरह अस्थिर न हो पाए।

( लेखक लोकतांत्रिक मामलों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )