नई दिल्ली [ शुकदेव प्रसाद ]। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तमाम कीर्तिमान अपने नाम कर चुके इसरो ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए सफलतापूर्वक अपना 100वां उपग्रह लांच कर दिया। धुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी 40) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रात: एक मिनट विलंब से 9:29 बजे अपनी 42वीं उड़ान भरी और उसने 31 उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। दरअसल सावधानी बरतने के लिहाज से कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है। इसमें देखना यह होता है कि रॉकेट जिन उपग्रहों को अंतरिक्ष में उनकी कक्षाओं में स्थापित करेगा उनकी उस समय कहीं अंतरिक्ष के मलबों से टक्कर न हो जाए। इन उपग्रहों में तीन भारतीय उपग्रह थे, शेष 28 उपग्रह विदेशी राष्ट्रों कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका के थे। हमारा ध्रुवीय रॉकेट और उसकी प्रौद्योगिकी इतनी परिपक्व हो चुकी है कि हमें विदेशी ग्राहक भी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए मिलने लगे हैं। इस उड़ान के पूर्व हमारे धुवीय रॉकेट ने लघु और मध्यम श्रेणी के 209 विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार विदेशी उपग्रह प्रक्षेपण का किराया पंद्रह से बीस हजार डॉलर प्रति ग्राम पेलोड(उपग्रहों का भार) है। इस प्रकार इसरो की विपणन एजेंसी एंट्रिक्स कॉरपोरेशन ने उपग्रह प्रक्षेपण से अच्छी खासी राशि अर्जित की है।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय में भारत का एक तिहाई कब्जा

यह उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय में भारत ने एक तिहाई बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है। इस उड़ान में सर्वप्रमुख उपग्रह था कार्टोसेट-2 शृंखला का नवीनतम उपग्रह कार्टोसेट-2 एफ जिसका भार 710 किलोग्राम था। कार्टोसेट शृंखला का यह सातवां उपग्रह था। इसके साथ इसरो के ही दो और उपग्रह थे-100 किलोग्राम वजनी माइक्रो सैट और 11 किलोग्राम वजनी आइएनएस-1सी यानी इंडियन नैनो सैटेलाइट। इस उड़ान में इन उपग्रहों को दो भिन्न-भिन्न धुवीय कक्षाओं में स्थापित करना था।

इसरो के कर्मठ इंजीनियरों के लिए धुवीय मिशन एक चुनौती थी

यह एक चुनौती थी, लेकिन इसरो के कर्मठ इंजीनियरों ने इस मिशन को कुशलतापूर्वक अंजाम दे दिया। सबसे पहले उपग्रह कार्टोसेट-2 एफ को ध्रुवीय रॉकेट ने लिफ्ट ऑफ से 17 मिनट बाद 505 किलोमीटर की ऊंचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। फिर शनै:-शनै: 28 विदेशी उपग्रहों को उनकी ध्रुवीय कक्षाओं में स्थापित किया। इस उड़ान में खास बात यह थी कि हमारे तीसरे उपग्रह माइक्रोसैट को 359 किलोमीटर की ऊंचाई वाली निचली कक्षा में स्थापित करना था। यह उपक्रम करने के लिए ध्रुवीय रॉकेट के चौथे चरण के इंजन को तीन बार पुन: प्रज्ज्वलित करना पड़ा ताकि उसकी गति कम हो जाए और वह 359 किलोमीटर के निम्न उन्नतांश पर आ जाए। अंतत: यह मिशन दो घंटे इक्कीस मिनट बाद समाप्त हुआ।

ध्रुवीय रॉकेट अभी तक दो बार विफल रहा

ध्रुवीय रॉकेट को अभी तक मात्र दो बार विफलताओं का सामना करना पड़ा है। उसकी पहली उड़ान 20 सितंबर, 1993 को आयोजित हुई थी (मिशन पीएसएलवी-डी1) जो विफल रही थी। रॉकेट के साथ इस पर सवार उपग्रह ‘आइआरएस-1ई’ भी जल कर नष्ट हो गया था। इसके बाद इसरो को दूसरी विफलता से 31 अगस्त, 2017 को दो-चार होना पड़ा, जब ध्रुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी 39) के तापीय कवच उससे अलग नहीं हो सके। बहरहाल इसरो के वैज्ञानिकों ने खासी मशक्कत के बाद उस तकनीकी त्रुटि का समाधान कर दिया और इस प्रकार देश-विदेश की सारी एजेंसियों पर फिर से इसरो पर भरोसा कायम हो गया। ध्रुवीय रॉकेट की सफल उड़ान से इसरो का गौरववर्धन हुआ है। साथ ही पिछली विफल उड़ान से इसरो के वैज्ञानिकों का खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौट आया है। इस शानदार सफल उड़ान से उनमें नई उमंग जाग्रत हुई है।

इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार के कार्यकाल की अंतिम उड़ान

यह उड़ान इस मायने में भी विशिष्ट थी कि इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एएस किरण कुमार के कार्यकाल की अंतिम उड़ान थी। किरण कुमार के नाम देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उपलब्धियों के कई कीर्तिमान दर्ज हैं। वह 14 जनवरी को अवकाशमुक्त हो रहे हैं। इसरो के भावी अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. के शिवम इसरो के नौवें अध्यक्ष होंगे। डॉ. के शिवम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करके इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से एमई की उपाधि अर्जित की और 1982 में इसरो ज्वाइन किया जब ध्रुवीय रॉकेट अपना रूपाकार ले रहा था। बाद में उन्हें भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी का परियोजना निदेशक बना दिया गया और कहना न होगा कि उनके निर्देशन में जीएसएलवी की सफल उड़ानें हो चुकी हैं और हमारा यह रॉकेट तकनीकी परिपक्वता अर्जित कर चुका है। फलत: इनसैट/जीसैट जैसे संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण पर हमारी विदेशी एजेंसियों पर निर्भरता घटने लगी है। उम्मीद की जाती है इसरो की भावी उड़ानें भी बुलंदियों के नए-नए आसमान छू लेंगी।


[ लेखक विज्ञान मामलों के विशेषज्ञ हैं ]