[ संतोष त्रिवेदी ]: आदरणीय पूर्णकालिक, कार्यकारी, अंतरिम अध्यक्ष जी! इसमें जो भी संबोधन आपको रुचिकर लगे, फिट कर लीजिएगा। पहली बात तो यह कि यह वाली चिट्ठी पहले वाली जैसी बिल्कुल नहीं है। उसमें जो भी बातें कही गई थीं,सब झूठी और मनगढ़ंत थीं। उसे लिखते समय हम अपना कद और पद, दोनों भुला बैठे थे। दल में आपका कद इतना ऊंचा है कि पद कोई मायने नहीं रखता। सच पूछिए,आप हैं तो दल है। मुखिया का सही अर्थ भी हमें अब समझ आया है। दल में केवल उसे ही मुख खोलने का अधिकार होता है। यह जानते हुए भी हमने नादानी दिखाई और चिट्ठी लिख बैठे। सारी गड़बड़ इसलिए हुई, क्योंकि हम लोकतंत्र के धोखे में आ गए थे। हमें लगा कि आपको इस शब्द से विशेष अनुराग है। आए दिन आप ‘लोकतंत्र की हत्या’ को लेकर चिंतित रहते हैं। आपके सच्चे अनुयायी होने के नाते हमारे अंदर भी लोकतंत्र का कीड़ा कुलबुलाने लगा था।

देश के लोकतंत्र और दल के लोकतंत्र में अंतर नहीं कर पाए

हमने यही सोचकर चिट्ठी लिखने जैसा पाप किया कि दल में भी आप लोकतंत्र को फलता-फूलता देखना पसंद करेंगे। हमें जरा भी भान नहीं था कि इससे आप ही फूल जाएंगे। हम देश के लोकतंत्र और दल के लोकतंत्र में अंतर नहीं कर पाए। पता चला कि आम की किस्मों की तरह लोकतंत्र की कई किस्में हैं। इसलिए इस चिट्ठी के माध्यम से उस चिट्ठी में लिखे एक-एक शब्द को हम चबाने की घोषणा करते हैं। हमने खुद के ट्वीट तक डिलीट कर दिए हैं। यकीन मानिए, अगर जुबां चलाई होती तो उसे भी....। 

आप जैसे ही कमजोर होते हैं, लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है

खैर, जाने दीजिए। हम मानते हैं कि आप लोकतंत्र के सच्चे समर्थक हैं। आपका हर कदम लोकतंत्र के लिए ही उठता है। इसके लिए आपका मजबूत होना जरूरी है। जब आप आगे बढ़ेंगे तो लोकतंत्र स्वत: मजबूत हो उठेगा।हमने देखा कि आप जैसे ही कमजोर होते हैं, लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। इसकी रक्षा हेतु आप संपूर्ण दल को दांव पर लगा सकते हैं, यह भरोसा है हमें।

चिट्ठी को ‘लीक’ करने की कोई मंशा नहीं थी

बहरहाल, उस चिट्ठी को ‘लीक’ करने की हमारी कोई मंशा नहीं थी। चिट्ठी बंद लिफाफे में भेजने पर यह आशंका थी कि वह कभी खुलती ही नहीं। उसके खुलने से काफी कुछ खुल गया है। इसकी भरपाई इस चिट्ठी से तो नहीं हो सकती है, पर हम संकल्प लेते हैं कि भविष्य में कभी चुनाव का नाम तक नहीं लेंगे। आप जानते ही हैं कि हमें ख़ुद चुनाव से कितनी एलर्जी है। कभी चुनकर नहीं आए, पर आपने हमेशा हमें उच्च सदन में बैठाया। हम अब जान गए हैं कि देश दल से बड़ा होता है, इसलिए आगे से दल में नहीं देश में चुनाव की बात करेंगे। यह दल के प्रति आपकी भयंकर निष्ठा ही है कि आपने हमेशा इसे निजी माना।

चिट्ठी इसलिए लिखी थी कि आप बेरोजगारी को लेकर गंभीर रहते हैं

हमने वह चिट्ठी इसलिए भी लिखी थी कि आप बेरोजगारी को लेकर गंभीर रहते हैं। जबसे सत्ता छूटी है, बिल्कुल फुरसत में हैं। आगे की राह नहीं दिख रही। तिस पर आपको लगता है हम कहीं विरोधियों की राह न पकड़ लें, पर यह तो नामुमकिन है। उधर तो पहले से ही एक भरा-पूरा मार्गदर्शक मंडल बैठा हुआ है। वहां प्रतीक्षा-सूची तक उपलब्ध नहीं है।

चिट्ठी लिखने का साइड-इफेक्ट, सभी कमेटियों से हमें गिरा दिया

मुई चिट्ठी लिखने का साइड-इफेक्ट नजर आने लगा है। आपने सभी कमेटियों से हमें गिरा दिया। हम तो आलरेडी गिरे हुए थे, मगर नजरों से गिरना असहनीय हो रहा है। कुछ लोग नाहक इल्जाम लगा रहे हैं कि हमारी चिट्ठी से दल में अशांति पैदा हो गई है जबकि लोकतंत्र के लिए अशांति स्थायी चीज है। शांति स्थापित होने से लोकतंत्र हमेशा खतरे में रहता है। संघर्ष का विकल्प ही समाप्त हो जाता है, पर हमारे मानने भर से क्या होता है।

भविष्य में लोकतंत्र की कभी डिमांड नहीं करेंगे

हम आज से संकल्प लेते हैं कि भविष्य में लोकतंत्र की कभी डिमांड नहीं करेंगे। फिर भी, अगर आपको तनिक भी बुरा लगा हो, चिट्ठी फाड़कर फेंक देना। हम इतने भी अनुदार नहीं कि आपकी अवमानना के लिए क्षमा न मांग सकें। लोकतंत्र की रक्षा के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं। अब हमारी रक्षा आप करें!

हम हैं आपके ही जरखरीद ग़ुलाम...

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]