लखनऊ, आशुतोष शुक्ल। जिनके नाम से पूर्वांचल की दबंग दुनिया दहलती है, जिनकी अपराध कथाएं कई जिलों की पुलिस को रटी पड़ी हैं और जिनके काले कारोबार जेल से भी बेरोकटोक चलते हैं, ऐसे माफिया मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के लखनऊ, प्रयागराज, बनारस और मऊ के मकान गिरा दिए गए। समाज और राजनीति की दृष्टि से बीते हफ्ते की यह सबसे बड़ी घटना रही जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की माफिया पर नकेल कसने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसी कोशिश उत्तर प्रदेश में जमाने बाद हुई है।

माफिया की चर्चा से पहले शनिवार की उस दर्दनाक घटना को याद करते हैं जिसने सबको झकझोर दिया। गौतमपल्ली लखनऊ के सबसे महंगे रिहाइशी क्षेत्रों में है। अधिकतर तो यहां नेताओं और बड़े अफसरों के बंगले हैं। ऐसे ही एक बंगले में एक अवयस्क लड़की ने भरी दोपहर अपनी मां और बड़े भाई को गोली से उड़ा दिया। दोनों को मारने के बाद उसने खुद को भी मारने की कोशिश की। लड़की राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज है और लंबे समय से अवसाद में थी।

बच्चों का मौन कितना घातक होता है: इस जघन्य घटना के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण होते रहेंगे लेकिन, यह दर्शाती है कि बच्चों का मौन कितना घातक होता है। बच्चों की हर इच्छा को पूरा करना भी ठीक नहीं। बच्चों को न सुनने की आदत बचपन से ही होनी चाहिए। पत्नी और बेटे को बेटी के हाथों गंवाने वाले पिता की पीड़ा कल्पनातीत है। शनिवार को पिता का जन्मदिन भी था। रविवार को उन्होंने जागरण संवाददाता से कहा भी कि उनके पास अब बेटी ही रह गई है।

बेनामी सम्पत्तियों का शहर: लौटते हैं अपराधी चर्चा की तरफ। राजनीतिक रसूख के दम पर मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद ने बेनामी सम्पत्तियों का शहर अंबार लगा दिया। राजनीतिक धूप छांव के हिसाब से वे दल बदलते रहे तो प्रशासन भी उनकी ताबेदारी करता रहा। दंगे से लेकर वसूली और हर तरह के जरायम में नाम आने के बावजूद उन पर कार्रवाई दिखावे की हुई। दोनों बरसों से दहशत का पर्याय बने हैं।

इस मायने में वे चुनौती भी माने गए कि अफसर या नेता सबसे यही कहा जाता कि मुख्तार और अतीक को रोककर दिखाओ। दोनों में मुख्तार अंसारी का काला साम्राज्य अधिक व्यापक है और अब सरकार उनके सिंडिकेट को तोड़ने में लग गई है। पत्नी, भाई, भतीजों और अन्य रिश्तेदारों के नाम मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर, प्रयागराज और लखनऊ में फैली संपत्तियों की जांच सरकारी मशीनरी युद्ध स्तर पर कर रही है। दोनों के शूटरों का पता लगाया जा रहा है और माना जा रहा है कि केवल दो दिन में अतीक और मुख्तार को 70-80 करोड़ रुपये का झटका लग चुका है।

माफिया के खिलाफ प्रशासन सक्रिय हुआ: लिहाजा तय है कि यदि इन लोगों पर कार्रवाई लंबी चली तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में निश्चित रूप से शांति का एक नया अध्याय लिखा जा सकेगा। हालांकि इस कार्रवाई का दूसरा पक्ष भी है। माफिया के खिलाफ प्रशासन तब सक्रिय हुआ, जब उसे लगा कि सरकार की दृष्टि वक्र हुई है। जो मकान या दुकान उसे आज अवैध दिख रहे, वे रातों रात तो खड़े नहीं हो गए। लखनऊ विकास प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश के अन्य प्राधिकरणों के उन अफसरों की पड़ताल भी होनी चाहिए जिन्होंने ये अवैध निर्माण होने दिए। राज्य सरकार यदि यह पता लगा ले कि किस अधिकारी के समय दोनों अपराधियों को ढील मिली थी और किसने उन्हें कब्जे कराने में मदद की थी, तो आमजन के लिए आगे की राह आसान हो सकेगी।

कांग्रेस का आंतरिक घमासान : कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई राज्यों में भी असर दिखाने लगी है। वरिष्ठ पार्टी नेता गुलाम नबी आजाद कलह के सूत्रधारों में एक हैं। वह उधर दिल्ली में इंकिलाब कर रहे हैं और इधर लखनऊ में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने उन्हीं के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया। खत्री यहां तक कह गए कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सत्यानाश यहां के प्रभारी रहे गुलाम नबी ने किया। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अभी चौथे नंबर की पार्टी है और इस भीतरी लड़ाई से कांग्रेस ने जता दिया है कि वह उसी स्थान से कतई संतुष्ट है।

मायावती के स्वागत ने पैदा की दिलचस्पी : इस बीच एक और राजनीतिक संयोग दिलचस्पी पैदा कर रहा है। केंद्र सरकार ने शनिवार को अनलॉक-4 की गाइडलाइन जारी की थी। रविवार को बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने बाकायदा एक ट्वीट करके इसका स्वागत कर दिया। सपा-भाजपा ही नहीं, बसपा के लोगों ने भी इस ट्वीट को बड़े ध्यान से देखा। इन दिनों अक्सर ही बहुजन समाज पार्टी के बोल भारतीय जनता पार्टी से मेल खा जाते हैं!

[संपादक, उत्तर प्रदेश]