शिवेंद्र कुमार सिंह। विश्व कप के फाइनल में न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के पहुंच जाने से एक नए विश्व विजेता का सामने आना तय हो गया है, लेकिन भारत भी विश्व विजेता का दावेदार बने रह सकता था अगर सेमीफाइनल में उसने कुछ गलतियां न की होतीं। जैसे जीत तमाम कमजोरियों को ढकने का काम करती है वैसे ही हार तमाम सवालों को जन्म देने का। भारत की हार के कई कारणों पर चर्चा हो रही है, जैसे शिखर धवन और विजय शंकर के बाहर होने पर उनका सही रिप्लेसमेंट न करना, कमजोर साबित हुए मध्य क्रम की समय रहते सही ढंग से चिंता न किया जाना और सेमीफाइनल में धौनी को बल्लेबाजी क्रम में ऊपर न भेजना।

ऐसा लगता है कि इंग्लैंड से हारने के बाद विराट कोहली-रवि शास्त्री ने पैनिक बटन दबा दिया और भारतीय टीम इंग्लैंड की तर्ज पर क्रिकेट खेलने की रणनीति बनाने लगी। इंग्लैंड की टीम जो काम पिछले डेढ़ दो साल से कर रही थी वह काम टीम इंडिया ने विश्व कप के दौरान शुरू किया। बल्लेबाजी को और गहराई देने के इरादे से एक और बल्लेबाज को प्लेइंग 11 में शामिल कर लिया गया। इसके लिए एक गेंदबाज की बलि दे दी गई। बाद के मैचों में सिर्फ पांच गेंदबाज प्लेइंग 11 में शामिल किए गए। वह तो भला हो कि किसी गेंदबाज को कोई दिक्कत नहीं हुई वरना गेंदबाजी पूरी करना मुश्किल हो जाता। ये सारी वजहें हर किसी को नजर आ रही हैं। इन मुद्दों को लेकर विराट कोहली को घेरा भी जा रहा है, लेकिन एक मुद्दा है जिस पर सवाल उठना ज्यादा जरूरी है और वह यह है कि क्या पिछले करीब दो साल से विराट कोहली और रवि शास्त्री अपनी ही चला रहे हैं?

जून 2017 में चलिए। अनिल कुंबले ने टीम इंडिया के कोच पद से इस्तीफा दिया। यह बात किसी से छिपी नहीं कि बतौर कोच कुंबले और बतौर कप्तान विराट कोहली में नहीं बन रही थी। अनिल कुंबले जिस कल्चर के खिलाड़ी थे विराट उससे अलग थे। अनिल कुंबले ने जब कोच का पद छोड़ा तो उन्होंने बाकयदा लिखा, 'मुझे बीसीसीआइ की तरफ से सूचित किया गया कि कप्तान को मेरी कोचिंग के तरीकों और मुख्य कोच बने रहने को लेकर संदेह है। मेरे लिए यह हैरानी वाली बात है, क्योंकि मैंने कोच और कप्तान के बीच की सीमाओं का हमेशा ध्यान रखा है। बीसीसीआइ ने मेरे और कप्तान के बीच गलतफहमी को दूर करने की कोशिश भी की, लेकिन यह समझ आ रहा है कि यह साझेदारी अब अस्थिर ही रहेगी। लिहाजा मैंने अपनी जिम्मेदारी छोड़ने का फैसला किया है।' कुंबले के इस्तीफे के बाद रवि शास्त्री के कोच बनने की खबर फैली, जिसका खंडन भी हुआ, पर कुछ समय बाद बीसीसीआइ की तरफ से यही जानकारी दी गई कि रवि शास्त्री ही टीम के नए कोच होंगे। जरा सोचकर देखिए कि विराट कोहली ने उस कोच को हटवाने का फैसला किया जो खिलाड़ी के तौर पर तो बहुत बड़ा कद रखता ही है, साथ ही जिसे सचिन, सौरव और लक्ष्मण जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने चुना था।

उस वक्त अगर विराट कोहली पर किसी ने अंगुलियां उठाई होतीं तो शायद आज स्थिति कुछ अलग होती। यह सच है कि भारतीय क्रिकेट में कप्तान हमेशा से ताकतवर रहा है। इसकी शुरुआत खासतौर पर गांगुली के समय में हुई। सौरव जो चाहते थे, जैसा चाहते थे वैसा ही होता था। उस वक्त जगमोहन डालमिया बोर्ड के अध्यक्ष थे। सौरव और डालमिया के बीच आपसी समझ थी। कुछ ऐसा ही धौनी और एन श्रीनिवासन के दौर में भी था। धौनी की खूब चलती थी, लेकिन धौनी जो भी बड़े फैसले करते थे उसमें श्रीनिवासन की सहमति जरूरी होती थी। अब हालात बदल चुके हैं। अब भारतीय क्रिकेट में 'एडमिनिस्ट्रेशन' एक ऐसी कमेटी के हाथ में है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया है। कमेटी के सदस्यों के पास क्रिकेट के लिए कितना वक्त और आज के क्रिकेट की कितनी समझ है, यह बहस का मुद्दा है, लेकिन यह तय है कि अब विराट कोहली के फैसलों पर सवाल खड़े करने वाला कोई नहीं।

कोहली सही फैसले लें या गलत, उनके सामने कोई ऐसा शख्स नहीं जो उनकी किसी बात को चुनौती दे सके। अगर ऐसा न होता तो रायुडू को टीम में शामिल न करने, विजय शंकर की जगह मयंक को शामिल किए जाने, मोहम्मद शमी को अचानक प्लेइंग 11 से बाहर करने, दिनेश कार्तिक को रवींद्र जडेजा पर प्राथमिकता देने और एक ही प्लेइंग 11 में चार विकेटकीपर खिलाने पर कोई तो सवाल करता..लेकिन ऐसा नहीं हुआ और शायद इसीलिए विराट कोहली ने यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली कि 45 मिनट के खराब खेल ने हमें विश्व कप से बाहर कर दिया। केवल हार के कारण जानने या फिर हार की समीक्षा करने की प्रशासक समिति की कवायद से कोई लाभ नहीं होने वाला। बात तब बनेगी जब हार के कारणों का निवारण किया जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं)