डा. सुरजीत सिंह: अमेरिका के 40 साल पुराने और प्रसिद्ध सिलिकान वैली बैंक के दिवालिया होने के बाद सिल्वर गेट और सिग्नेचर बैंक भी डूब चुके हैं। इनके दिवालिया होने से उन छोटे अमेरिकी बैंकों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं, जिनका व्यवसाय इन बैंकों विशेष रूप से सिलिकान वैली बैंक के साथ जुड़ा हुआ है। अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर की मुश्किलें बहुत बढ़ गई हैं। सिलिकान वैली बैंक के दिवालिया हो जाने से आर्थिक जगत के विद्वान अचंभित हैं।

दुनिया भर के शेयर बाजार सहमे हुए हैं। बैंक के प्रदर्शन और क्रेडिट गुणवत्ता के आधार पर फरवरी में सिलिकान वैली बैंक को फोर्ब्स पत्रिका ने 100 सर्वश्रेष्ठ बैंकों की सूची में शीर्ष 20 में स्थान दिया था। दिसंबर 2022 में इस बैंक का कारोबार 44 प्रतिशत से भी अधिक तकनीकी और स्वास्थ्य क्षेत्र की कंपनियों के साथ था। इसकी जमापूंजी 175.4 अरब डालर थी, पर आज यह फर्श पर है।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया भर के तकनीक आधारित नए स्टार्टअप्स को वित्तीय सहारा देने वाला सिलिकान वैली बैंक डूब गया? कुछ विद्वानों ने यहां तक आशंका व्यक्त की है कि अमेरिकी निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स के असफल होने के बाद 2008 में आने वाली मंदी पुनः अपने को दोहराएगी। जमाकर्ताओं की बड़ी धनराशि डूबने का असर यह होगा कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को उनका वेतन नहीं दे पाएंगी, जिससे न सिर्फ कारोबार का नुकसान होगा, बल्कि लोगों को अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा।

यह समझना महत्वपूर्ण होगा कि आखिर यह बैंक डूबा क्यों? एक बैंक हमेशा लेन-देन पर चलता है। जब बैंक अपने ऋण पर दो से तीन प्रतिशत ब्याज लेगा और अपने जमाकर्ताओं को पांच प्रतिशत ब्याज का भुगतान करेगा तो वह असफल होगा ही। बैंक को आय दिए गए कर्जों से प्राप्त ब्याज और जमाओं पर दिए जाने वाले ब्याज के अंतर से ही होती है। कुछ इसी प्रकार की स्थितियां सिलिकान वैली बैंक के साथ बनीं।

बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने पिछले कई महीनों से ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू कर दिया था। ब्याज दरों में हो रही निरंतर वृद्धि का दोहरा प्रभाव हुआ। पिछले 12 से 15 महीनों में आर्थिक हालात इतनी तेजी से बदले कि आसमान छूती महंगाई के बीच स्टार्टअप्स की तेजी में गिरावट आने लगी, जिसका सीधा प्रभाव सिलिकान वैली बैंक के व्यवसाय पर भी पड़ने लगा। बैंक में ऋण वापसी की दर बहुत कम हो गई।

दूसरी ओर कोरोना के बाद की परिस्थितियों में अपने को बाजार में बनाए रखने के लिए स्टार्टअप्स कंपनियों ने बैंक से अपनी जमा पूंजी निकालनी शुरू कर दी। जमाकर्ताओं को पैसा लौटाने के लिए सिलिकान वैली बैंक को अपने बांड बेचने पड़े, लेकिन ब्याज दरों में तेजी के कारण उसके द्वारा पहले खरीदे गए 91 अरब डालर के बांड की कीमतों में 15 अरब डालर से ज्यादा की गिरावट आ गई। जब बैंक अपनी सबसे सुरक्षित संपत्ति को नुकसान में बेचता है तो इसका अर्थ है कि वह नकदी के संकट का सामना कर रहा है। इसी का दुष्परिणाम सिलिकान वैली बैंक के दिवालिया होने के रूप में हमारे सामने है।

अमेरिका के 16वें सबसे बड़े इस बैंक के दिवालिया होने का असर 92 से अधिक उन भारतीय स्टार्टअप्स पर भी हो सकता है, जिनका खाता इस बैंक में है। इस बैंक का एक आफिस बेंगलुरु में भी है, जो स्टार्टअप्स के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए अपने यहां खाता खोलने के लिए प्रेरित करता था। यह बैंक अपनी लचीली कार्यप्रणाली के लिए भारत ही नहीं दुनियाभर के स्टार्टअप्स के लिए सबसे पसंदीदा विकल्पों में से एक रहा है।

भारत में बढ़ने वाले यूनिकार्न की संख्या में इस बैंक का भी योगदान रहा है। एक अनुमान के अनुसार पिछले अक्टूबर में भारतीय स्टार्टअप्स ने 15 करोड़ डालर की पूंजी जुटाई थी। भारत सरकार और आरबीआइ को इस पर मंथन करना होगा कि आखिर भारतीय स्टार्टअप्स देश के बाहर के बैंकों की तरफ अपना रुख क्यों करते हैं? क्या हम इन स्टार्टअप्स को अपनी बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जोड़ सकते हैं? क्या इन कंपनियों को उड़ने के लिए खुला आसमान नहीं दिया जा सकता है? देश के बदलते आर्थिक माहौल में इन संभावनाओं पर नए सिरे से विचार किए जाने की आवश्यकता है, जिससे ये स्टार्टअप्स भारतीय बैंकिंग व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करने में अपनी भूमिका निभा सकें।

हालांकि भारत की दृढ़ बैंकिंग व्यवस्था एवं रिजर्व बैंक द्वारा विनियमित होने के कारण सिलिकान वैली बैंक के दिवालिया होने का भारतीय बैंकों पर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत में क्रेडिट कार्ड का ऋण तेजी से बढ़ने के बावजूद बैंकों का एनपीए स्तर यानी फंसे हुए कर्ज नियंत्रण में हैं। भारत में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए आज आरबीआइ की लचीली मौद्रिक नीति की प्रशंसा की जा रही है।

आरबीआइ के नियम भारतीय बैंकों को सुरक्षा चक्र प्रदान करते हैं। सिलिकान वैली बैंक एवं अन्य अमेरिकी बैंकों के असफल होने के बावजूद 2008 जैसी मंदी की आशंकाएं बहुत कम हैं, क्योंकि 2008 की तुलना में आज विश्व बेहतर स्थिति में है। ऐसे में फेडरल रिजर्व का निरंतर प्रयास रहेगा कि जल्द से जल्द इस वित्तीय संकट को सुलझा लिया जाए, जिससे वैश्विक स्तर पर उसकी उपस्थिति आर्थिक शक्ति के रूप में बनी रहे। इसके बावजूद यह एक वैश्विक वित्तीय संक्रमण है, जिसके लिए नीति निर्माताओं को सतर्क रहना होगा, जिससे भविष्य में होने वाली अप्रत्याशित घटनाओं के लिए भारत को तैयार किया जा सके।

(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं)