[ रशीद किदवई ]: दिल्ली के चुनाव पर देश भर की निगाहें लगी हैं। यहां के नतीजे जहां अरविंद केजरीवाल की सियासी किस्मत का फैसला करेंगे, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की राजनीतिक प्रतिष्ठा का पैमाना भी बनेंगे। इन दिग्गज हस्तियों के अलावा एक और शख्स हैं जिनका इन चुनावों में बहुत ऊंचा दांव लगा हुआ है। यह हैं प्रशांत किशोर। हाल तक नीतीश कुमार की जदयू का हिस्सा रहे प्रशांत किशोर मूलत: नेता नहीं हैं, लेकिन केवल यही पहलू उनकी राजनीतिक हैसियत तय नहीं करता। ममता बनर्जी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, जगन मोहन रेड्डी से लेकर अरविंद केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्री उनकी खूबियां गिनाते थकते नहीं। यह वाहवाही भी अकारण नहीं। आखिर किशोर ने उनकी राजनीतिक लड़ाई को नए रूपरंग और तेवरों से लैस जो किया है।

प्रशांत किशोर का राजनीतिक सफर भी किसी परीकथा से कम नहीं

प्रशांत किशोर का राजनीतिक सफर भी किसी परीकथा से कम नहीं। वह बिहार में रोहतास जिले के रहने वाले हैं। वह अपनी योग्यता के दम पर संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच तक पहुंचे। राजनीति से उनका जुड़ाव मोदी के जरिये हुआ। यह 2012 की बात है जब मोदी लगातार तीसरी बार गुजरात की सत्ता में वापसी की कवायद में जुटे थे। तब किशोर मोदी के साथ जुड़े। किशोर ने सिटीजंस फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस नाम की संस्था बनाई। इसके बाद 2014 में मोदी प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने। इसी दौरान किशोर के लिए समस्याएं खड़ी होने लगीं। जल्द ही मोदी और अमित शाह से उनका मोहभंग हो गया। वह चाहते थे कि मोदी की इस जीत में उन्हें भी श्रेय दिया जाए। वह शायद केंद्र की राजग सरकार में भी कोई भूमिका चाहते थे, लेकिन यह संभव नहीं हुआ।

मोदी के बाद प्रशांत किशोर की नजदीकियां नीतीश कुमार से बढ़ीं

मोदी के बाद प्रशांत किशोर की नजदीकियां बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के मुखिया नीतीश कुमार से बढ़ीं। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब नीतीश ने अपनी ही पार्टी के कद्दावर नेताओं को दरकिनार करते हुए किशोर को एक तरीके से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तक बना दिया था। यह किशोर ही थे जिन्होंने जदयू का कांग्र्रेस और राजद से मेल कराया जिससे भाजपा को हराने में मदद मिली। इसके बाद वह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ जुड़े। वहां वह अकाली दल और भाजपा गठबंधन को हराने में सफल हुए। महाराष्ट्र में किशोर ने शिवसेना से हाथ मिलाकर भाजपा को अलग-थलग करने का काम किया। झारखंड में भी हेमंत सोरेन के साथ किशोर की भूमिका रही। आंध्र में जगन मोहन रेड्डी ने सावर्जनिक रूप से किशोर के योगदान का उल्लेख किया और अब वह दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के विश्वासपात्र हैं।

प्रशांत किशोर पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रशांत किशोर पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। इसके लिए वह भाजपा विरोधी दलों को रणनीतियां बनाना सिखा रहे हैं। उनसे मदद लेने वालों की फेहरिस्त में ताजा नाम द्रमुक का जुड़ा है जो उनकी सहायता से आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी नैया पार लगाना चाहता है।

प्रशांत किशोर सीएए-एनआरसी के मुखर विरोधी हैं

किशोर सीएए-एनआरसी के मुखर विरोधी हैं। इसके विरोधियों को एकजुट करने के लिए वह ईस्टर्न-साउथ राजनीतिक कॉरिडोर बनाना चाहते हैं। इसके पीछे मंशा भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने की है, लेकिन उनके मुताबिक कांग्र्रेस ही इसमें सबसे बड़ी अड़चन बनी हुई है।

प्रशांत किशोर चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 200 सीटों पर चुनाव लड़े

वह चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 200 सीटों पर चुनाव लड़े। वह भी उन राज्यों में जहां वह भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में है, जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल, महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्से।

कांग्रेस ने प्रशांत किशोर की रणनीतिक सोच को सिरे से किया खारिज

कांग्रेस ऐसी किसी रणनीति का हिस्सा कदापि नहीं बनना चाहती। उसने किशोर की इस सोच को सिरे से खारिज किया है। इसका अर्थ यह नहीं कि उनके कांग्र्रेस के साथ खराब संबंध हैं। अमरिंदर सिंह उनके बड़े समर्थक हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी उनकी मुलाकात होती रहती है। राहुल गांधी की समस्या यह है कि वह कांग्रेस की सोच नहीं बदल पाए।

कांग्रेस अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा पा रही, सोच को बदलना होगा

कांग्रेस बार-बार कहती है कि वह जनता तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रही, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस का मीडिया विभाग 2014 से ही जस का तस बना हुआ है। चैनलों पर होने वाली बहस का उसका बहिष्कार भी समझ से परे है। कांग्रेस मानती है कि युवा नौकरियों को लेकर सरकार से नाराज हैं, लेकिन उसने कोई सदस्यता अभियान शुरू ही नहीं किया है। कांग्रेस बार-बार अपनी दुर्गति के लिए हिंदू-मुस्लिम के बीच बढ़ते विभाजन को कसूरवार मानती है, लेकिन सांप्रदायिकता के खिलाफ उसने भी सामाजिक स्तर पर कोई कोशिश नहीं की है।

सीएए-एनआरसी को भुनाने के लिए किशोर एक फ्रंट बनाना चाहते थे, उसे नामंजूर कर दिया

पिछले कुछ दिनों से सीएए-एनआरसी पर आए उबाल को भुनाने के लिए किशोर एक फ्रंट बनाना चाहते थे, लेकिन कई भाजपा विरोधी दलों ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। इसी तरह वह मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक ज्वाइंट एक्शन कमेटी बनाना चाहते थे, लेकिन उसे भी अधिकांश मुस्लिम नेताओं ने नकार दिया।

किशोर को लगता है कि दिल्ली के नतीजे देश की राजनीति में हलचल मचाएंगे

उन्हें लगता है कि दिल्ली के नतीजे देश की राजनीति में हलचल मचाएंगे। इसके बाद अगर नीतीश कुमार को आगामी बिहार चुनाव में समस्या खड़ी होती है तो यह उनके लिए यकीनन बड़ा मौका होगा। प्रशांत किशोर को कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव का तो समर्थन मिल सकता है, लेकिन शायद वह खुद लालू यादव या उनके परिवार के सदस्यों को लेकर बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं। ऐसे में उन्हें बिहार में एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो नीतीश कुमार की काट कर सके।

किशोर की बड़ी उपलब्धि है कि कम समय में कई राज्यों के मुख्यमंत्री उनसे जुड़ गए

यह किशोर की बड़ी उपलब्धि है कि इतने कम समय में कई राज्यों के मुख्यमंत्री उनसे जुड़ गए। माना जाता है कि आज उनकी मर्जी के बिना केजरीवाल कोई बयान तो दूर ट्वीट तक नहीं करते। ममता बनर्जी को भी प्रशांत किशोर ने आश्वस्त कर दिया है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में उनकी जीत तय है। उनकी समझाइश के बाद ही शायद ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने खासतौर से आस्था से जुड़े मुद्दों पर तीखी बयानबाजी कुछ कम की है जबकि उससे पहले ऐसा होने से ध्रुवीकरण की गुंजाइश बढ़ रही थी।

अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की वापसी होती है तो कुछ श्रेय किशोर को भी जाएगा

अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की वापसी होती है तो इसका कुछ श्रेय किशोर को भी जाएगा। ऐसे में क्या वह बिहार में अलग दल बनाकर सामने आएंगे? क्या वह नीतीश को चुनौती दे सकेंगे? ये ऐसे सवाल हैं जिनका अभी कोई जवाब नहीं है, लेकिन 11 फरवरी को जरूर इसके कुछ संकेत मिल सकते हैं। इसी दिन किशोर ने पटना में अपने मन की बात करने का फैसला किया है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं )