[डॉ. अजय खेमरिया]। Alcohol Consumption In India मध्य प्रदेश और हरियाणा में अब आप घर बैठे ऑनलाइन शराब मंगा सकते हैं। मध्य प्रदेश सरकार शराब से सालाना बारह हजार करोड़ रुपये और हरियाणा सरकार साढे़ सात हजार करोड़ रुपये राजस्व का इंतजाम करेंगे। दोनों ही राज्यों में इस प्रावधान को लेकर विरोध हो रहा है। असल में शराब की नई दुकानें खोलने की बदनामी से बचने के लिए सरकारें इस तरह के उपाय अमल में ला रही हैं। इधर केंद्रीय बजट में इस वर्ष नशामुक्ति कार्यक्रम के लिए 260 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय 16 करोड़ नागरिक नियमित रूप से नशे का सेवन कर रहे हैं।

‘फिट इंडिया अभियान’ : एम्स और नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर द्वारा तैयार इस शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि देश भर में 16 करोड़ शराब पीने वालों में से 6.7 करोड़ तो आदतन यानी एडिक्ट हैं। लगभग 5.7 करोड़ भारतीय इस वक्त शराब जनित रोगों से ग्रस्त हैं। समझा जा सकता है कि हमारे देश में शराब की खपत और इससे उत्पन्न आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्यगत चुनौती कितनी भयानक होती जा रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री ‘फिट इंडिया अभियान’ पर काम कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ देश में शराब का बाजार सबसे तेज 8.8 फीसद की दर से बढ़ रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2022 में 16.8 बिलियन लीटर शराब की खपत भारत में होगी।

सवाल यह है कि क्या राज्य सरकारें चुनावी वादों की पूर्ति के लिए अपने ही नागरिकों के जीवन को दांव पर नहीं लगा रही हैं? नजीर के तौर पर मध्य प्रदेश में 2003 में शराब का राजस्व 750 करोड़ रुपये था जो 12 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। इसी वर्ष महाराष्ट्र सरकार द्वारा 17,477 करोड़, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 4,700 करोड़, उत्तर प्रदेश द्वारा 23,918 करोड़ और तमिलनाडु सरकार द्वारा 31,157 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जन अपने ही नागरिकों को शराब परोसकर किया गया है। ये आंकड़े बताते हैं कि हमारी सरकारें लोगों को शराब पिलाने में कितनी दिलचस्पी रखती हैं।

बीमारियों और मौत का कारण : बुनियादी रूप से भारत में शराब का सेवन नागरिकों को बीमारियों और अंतत: मौत की ओर धकेलने का काम करता है, क्योंकि शराब में हार्ड अल्कोहल की मात्रा भारत में 90 फीसद है जो वैश्विक मानक और प्रचलन के 44 फीसद की तुलना में ज्यादा खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि एक दशक में भारत में शराब की खपत दोगुनी हो गई है। वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति यह 2.4 लीटर थी जो वर्ष 2016 तक 5.7 लीटर हो गई।

उल्लेखनीय है कि सरकारी सर्वे के इतर करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो परंपरागत तरीकों से बनी शराब का सेवन कर रहे हैं, खासकर वनीय इलाकों में ताड़ी, खजूर, गुड़ आदि से बनने वाली शराब इसमें शामिल है। शराब केवल सरकारी राजस्व तक का मामला नहीं है, असल में यह नेताओं, अफसरों और माफिया के गठजोड़ की संपन्नता का माध्यम भी है। जितना राजस्व सरकारी खजानों में दिखता है कमोबेश उतना ही इसके खेल में अवैध रूप से भी बनता है।

सीएजी की एक हालिया रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश सरकार के कार्यकाल में करीब 25 हजार करोड़ रुपये की चपत लगने की जानकारी सामने आई है। यह रकम बड़े सिंडिकेट ने शराब के दाम अवैध रूप से बढ़ाकर जनता से वसूल की, लेकिन खजाने में जमा नहीं हुई। यही खेल देश के कई अन्य राज्यों में

सुनियोजित तरीके से चल रहा है। सरकार बदल जाती है, लेकिन माफिया नहीं। प्रश्न यह है कि आखिर हम अपनी ही नीतियों से मुल्क को कहां ले जा रहे हैं?

भारत को वैश्विक शराब बाजार में किया तब्दील : वर्ष 1929 में महात्मा गांधी ने ‘हरिजन’ में लिखा था, ‘अगर कोई मुझे स्वराज और शराबबंदी में से एक चुनने का विकल्प दे तो पहले शराबबंदी को चुनूंगा।’ आज हमें इस बात पर विचार करना होगा कि गांधी के प्रति हमारी कितनी वैचारिक प्रतिबद्धता है। आज भारत को हमने वैश्विक शराब बाजार में तब्दील कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 47 में जो नैतिक आदेश सरकार को मिले हैं, क्या उनके प्रति कोई नैतिक जवाबदेही नहीं है संविधान की शपथ उठाने वालों की? बेहतर होगा कि हम एक राष्ट्रीय शराब नीति का निर्माण करें। चरणबद्ध तरीके से शराब के प्रचलन और कारोबार को घटाने का प्रयास करें। लाखों करोड़ के राजस्व में से स्थानीय खनिज निधि की तरह हर जिले में राजस्व का एक-चौथाई हिस्सा नशामुक्ति केंद्रों या वेलनेस सेंटर के लिए आरक्षित कर दें।

आदिवासियों पर केंद्रित एक शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि 50 फीसद मजदूरी की रकम इस तबके की शराब पर खर्च हो जाती है। अगर महिलाएं अर्थ उपार्जन नहीं करें तो बड़ी आबादी भूखे मरने के कगार पर होगी। शराब की बिक्री को हतोत्साहित करने के लिए सामाजिक माहौल भी बनाना होगा, क्योंकि पिछले दो दशकों में युवाओं में इसका चलन तेजी से बढ़ा है।

भारत में विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या इस समय है और शराब की आदी हमारी युवा पूंजी फिट इंडिया या स्किल इंडिया के लिए कैसे परिणामोन्मुखी हो सकती है? पूरी दुनिया जब योग की ओर उन्मुख हो रही है और यूरोप में 2010 के बाद शराब की खपत 10 फीसद कम हो गई है, तब भारत में यह खपत दोगुनी हो जाना हमारी सामूहिक चेतना हमारे मर्यादित जीवन को कटघरे में खड़ा करता है। मध्य प्रदेश के सूचना मंत्री पीसी शर्मा ने पूर्ण शराबबंदी लागू कर आबकारी राजस्व केंद्र से समायोजित करने का जो सुझाव दिया है उस पर भी बिहार, गुजरात मॉडल के आलोक में नीतिगत निर्णय या जा सकता है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]