सतीश सिंह। Air India Privatisation केंद्र सरकार ने एयर इंडिया को बेचने के लिए अभिरुचि पत्र जमा करने की समय सीमा को 31 अगस्त से बढ़ाकर 30 अक्तूबर कर दिया है। वित्त मंत्रालय ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से समय-सीमा में बढ़ोतरी की गई है। इसे बेचने की प्रक्रिया 27 जनवरी को शुरू की गई थी। ऐसे में यह चौथी बार है, जब सरकार ने अभिरुचि पत्र जमा करने की तारीख को आगे बढ़ाया है। हालांकि अभिरुचि पत्र जमा करने की तारीख के बढ़ने के बाद भी वर्ष 1932 में जेआरडी टाटा द्वारा शुरू किए गये टाटा एयरलाइंस को फिर से टाटा समूह द्वारा खरीदे जाने की संभावना दिख रही है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1946 में टाटा एयरलाइंस को एयर इंडिया का नाम दिया गया था और वर्ष 1947 में भारत सरकार इसमें निवेश करके सबसे बड़ा हिस्सेदार बन गई थी और वर्ष 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था।

एयर इंडिया के लिए बोली लगाने वालों को कर्ज में कुछ राहत के साथ एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी, उसके सभी एयरक्राफ्ट, परिचालन स्लॉट और कर्मचारियों को देने की पेशकश की जा सकती है। हालांकि सरकार अपने इस्तेमाल के लिए चार बोइंग 747 विमानों को बिक्री प्रक्रिया से अलग रख सकती है। वैसे कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए माना जा रहा है कि एयर इंडिया के लिए बड़ी राशि की बोली नहीं लगेगी, क्योंकि कोरोना के कारण विमानन कंपनियों के मूल्यांकन में गिरावट दर्ज की गई है। विमानन क्षेत्र की वित्तीय स्थिति इतनी ज्यादा ख़राब हो गई है कि कुछ विमानन कंपनियों ने दिवालिया होने के लिए आवेदन किया है, जबकि कुछ कंपनियां सरकार से राहत पैकेज की आस लगाए हैं। ऐसी प्रतिकूल स्थिति में एयर इंडिया के लिए सीमित विमानन कंपनियां ही बोली लगाएंगी, ऐसी आशंका जताई जा रही है। वर्ष 2018 में भी सरकार एयर इंडिया को बेचना चाह रही थी, लेकिन इसे खरीदने के लिए कोई कंपनी तैयार नहीं हुई, क्योंकि सरकार इसमें 24 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखना चाहती थी और इस पर अत्यधिक कर्ज का बोझ था। ज्ञातव्य है कि अप्रैल 2012 में घोषित बेलआउट पैकेज के तहत एयर इंडिया को 26,000 करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी सरकार डाल चुकी है। हालांकि इसके अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके।

वैसे टाटा समूह का मानना है कि बेहतर परिचालन और कुशल प्रबंधन के जरिये एयर इंडिया से मुनाफा कमाया जा सकता है। वह यह मान कर चल रही है कि कोरोना महामारी के समाप्त होने के बाद एयर इंडिया के परिचालन में सुधार होगा। साथ में उसे अंतरराष्ट्रीय उडानों से फायदा होने की पूरी उम्मीद है, क्योंकि एयर इंडिया का अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में आज भी वर्चस्व है। आज भी अंतरराष्ट्रीय यात्री बाजार में एयर इंडिया की 17 प्रतिशत की भागीदारी है। जेट एयरवेज के बंद होने के बाद भारत-अमेरिका रूट पर एयर इंडिया का दबदबा बढ़ा है। अधिकांश अन्य भारतीय विमानन कंपनियां सस्ती एयरलाइंस हैं और इंडिगो को छोड़कर अधिकांश एयरलाइंस का वैश्विक परिचालन सीमित है।

घाटे में आने के कारण : एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस के विलय के वक्त एयर इंडिया 100 करोड़ रुपये के मुनाफे में थी, लेकिन अनियमितता, गलत प्रबंधन, राजनीतिक हस्तक्षेप और तमाम अंदरुनी गड़बड़ियों के कारण इसकी स्थिति खस्ताहाल हो गई। अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक वर्ष 2004 से वर्ष 2008 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67,000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए, करोडों-अरबों रुपये खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बंद किया गया, जिसकी पुष्टि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी अपनी रिपोर्ट में की थी। निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली नीतियों के कारण कई निजी विमानन कंपनियों को सीधे तौर पर इसका फायदा पहुंचाया गया।

समृद्ध है एयर इंडिया का बेडा : के-787 ड्रीमलाइनर विमान को सितंबर 2012 में एयर इंडिया के बेड़े में शामिल किया गया था। 256 सीटों वाला ड्रीमलाइनर 10 से 13 घंटे बिना किसी परेशानी के उड़ान भर सकता है। सीटों की डिजाइनिंग और ईंधन क्षमता के मामले में यह बोइंग 777-200 एलआर से बेहतर है। एयर इंडिया ड्रीमलाइनर की बेहतर क्षमता का उपयोग करके एयर इंडिया ज्यादा लाभ अर्जित कर सकती है। बड़े विमानों में एयर इंडिया के पास 777-200 एलआर के आठ विमान, 777-300 ईआर के 12 विमान और बी 747-400 के तीन विमान हैं। छोटे विमानों में एयर इंडिया के पास ए-320 के 12 विमान, ए-319 के 19 विमान और ए-321 के 20 विमान हैं। वर्तमान में एयर इंडिया के पास कुल 169 विमान हैं और कई विमानों को इसने लीज पर ले रखा है।

कुशल प्रबंधन की आवश्यकता : एयर इंडिया में फिलहाल 20,000 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिसमें लगभग 10,000 कर्मचारी संविदा पर काम करते हैं। इसके पास लगभग 1,700 पायलट और करीब 4,000 एयर होस्टेस हैं। इससे हर दिन करीब 60,000 यात्री विदेश यात्रा करते हैं। पिछले साल एयर इंडिया ने नौ नई अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू की थी और देश में भी इसने कई शहरों को जोड़नेवाली उड़ान सेवाओं को शुरू किया था। नागरिकों के कल्याण के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपात स्थिति में फंसे लोगों को निकालने के लिए केवल एयर इंडिया ही हमेशा आगे आता है।

सभी तरह के संसाधनों से युक्त होने की वजह से एयर इंडिया विमानों के बुद्धिमतापूर्ण इस्तेमाल से राजस्व में इजाफा कर सकता है। जैसे, जिस मार्ग पर यात्रियों का आवागमन अधिक है, वहां विमानों के फेरे बढ़ाए जा सकते हैं। वैसे विमानों का ज्यादा उपयोग किया जा सकता है, जिनमें कम ईंधन की खपत होती है। आज भी एयर इंडिया का इस्तेमाल तार्किक तरीके से नहीं किया जा रहा है। लंबी दूरी वाले विमानों का उपयोग मध्यम तथा छोटी दूरी वाले मार्गों में उड़ान भरने के लिए किया जा रहा है। बोइंग 777-200 एलआर लंबी दूरी तय करने वाला विमान है। ये विमान लगातार 15 से 16 घंटों तक उड़ान भर सकते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल मध्यम दूरी वाले स्थानों, जहां पहुंचने में आठ से 10 घंटे का समय लगता है, उनके लिए किया जा रहा है। विमानों के असंगत तरीके से इस्तेमाल के कारण ईंधन की ज्यादा खपत हो रही है।

अमेरिका समेत अनेक पश्चिमी देशों की यात्रा के बीच का एक प्रमुख पडाव फ्रैंकफर्ट को माना जाता है। भारत ये यहां तक की यात्रा में करीब 10 घंटे का समय लगता है। ऐसे में यहां तक की उड़ान में अगर ड्रीमलाइनर विमान का प्रयोग किया जाए, तो यात्रा की लागत 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही यात्रियों को समग्र जानकारी मुहैया कराने के लिए समय समय पर विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है। त्योहारों में रूटों के हिसाब से या पीक सीजन के अनुसार एयर इंडिया अपने बेसिक किराए में कमी करके या सौगात देने वाली योजनाओं के माध्यम से यात्रियों को लुभा सकती है। कम किराये की भरपाई विमानों के फेरे बढ़ा कर की जा सकती है। एयर इंडिया की स्टार अलायंस के साथ साझेदारी वर्ष 2014 में हुई थी।

इस अलायंस के 26 विमानों में से 16 का परिचालन भारत में होता है, लेकिन इनका गंतव्य मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों तक ही सीमित है। 28 सदस्यीय स्टार अलायंस के पास 192 देशों के करीब 1,300 हवाई अड्डों में उड़ान भरने वाले 18,500 विमानों का बहुत बड़ा नेटवर्क है। ऐसे में एयर इंडिया इस विशाल नेटवर्क का फायदा उठा सकता है। एयर इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी की अगुआई में एयर इंडिया को घाटे से उबारने की कोशिश की गई, लेकिन वे अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल नहीं रहे। हालांकि उनके प्रयास से एयर इंडिया आठ वर्षों के बाद परिचालन लाभ अर्जित करने में कामयाब रहा था, लेकिन बाद में एयर इंडिया अपने प्रदर्शन में निरंतरता नहीं रख सका।

एयरलाइंस पर महामारी का असर : कोरोना महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भारत में अभी भी शुरू नहीं हो पाई हैं। -वंदे मातरम मिशन- के तहत अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के तौर पर केवल एयर इंडिया के विमानों की ही आवाजाही हो रही है। इस बीच, एयर इंडिया को पांच यूरोपीय शहरों मसलन, कोपेनहेगन, मिलान, स्टॉकहोम, मैड्रिड और वियाना में अपने कार्यालयों को बंद करना पड़ा है। एयर इंडिया बिना वेतन के अवकाश पर भेजने वाले कर्मचारियों की एक लंबी सूची तैयार कर रहा है। माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में एयर इंडिया के कर्मचारियों को छह माह से दो वर्ष की लंबी छुट्टी पर भेजा जा सकता है। कर्मचारियों के वेतन में भी व्यापक कटौती की गई है।

फिलहालए एयर इंडिया पर लगभग 58,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसमें लगातार बढोतरी हो रही है। एयर इंडिया को वित्त वर्ष 2018-19 में 8,400 करोड़ रुपये का घाटा भी उठाना पड़ा है। बढ़ते तेल की कीमत और पाकिस्तान द्वारा भारतीय विमानों के लिए एयरस्पेस बंद करने के बाद कंपनी को हर दिन तीन से चार करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। हालांकि एयर इंडिया को वित्त वर्ष 2018-19 में 26,400 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी और इसने वित्त वर्ष 2019-20 में लगभग 700 से 800 करोड़ रुपये के परिचालन लाभ होने की उम्मीद जताई है। एयर इंडिया के नाम अनेक उपलब्धियां भी हैं और कुशल प्रबंधन के जरिये अभी भी इसे मुनाफे में लाया जा सकता है। कुशल नेतृत्व एवं संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से पूर्व में यह लाभ में आया भी है। टाटा समूह भी यह मान रहा है कि एयर इंडिया को लाभ में लाया जा सकता है। भारतीय रेल, यूको बैंक, पंजाब नेशनल बैंक आदि भी पूर्व में ऐसा करिश्मा कर चुके हैं। अनेक सरकारी कंपनियां आज मुनाफे में चल रही हैं। बीमा और सरकारी तेल कंपनियां भी मुनाफे में हैं। लाभ कमाने वाली सरकारी कंपनियों की एक लंबी फेहरिस्त है। ऐसे में एयर इंडिया को लाभ में लाना बहुत मुश्किल नहीं है। योजनाबद्ध तरीके से काम करके इसे अभी भी मुनाफे में लाया जा सकता है।

[आर्थिक मामलों के जानकार]