[ रमेश कुमार दुबे ]: आर्पूित शृंखला की कमजोरी, भंडारण-विपणन में बिचौलियों की भरमार, महंगी ढुलाई जैसे कारणों से कभी आलू-प्याज सड़कों पर फेंकने की नौबत आती है तो कभी उनकी महंगाई आंसू निकाल देती है। इसका एक परिणाम यह भी होता है कि वैश्विक कृषि बाजार में भारत एक विश्वसनीय आर्पूितकर्ता नहीं बन पाता। इस समय जिस आलू-प्याज का भूटान, अफगानिस्तान, तुर्की, मिस्न से आयात किया जा रहा है, उसी आलू-प्याज का चार महीने पहले तक निर्यात किया जा रहा था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जून 2020 तक आठ लाख टन प्याज और सवा लाख टन आलू का निर्यात किया गया था, लेकिन महंगाई बढ़ते ही जैसे निर्यात पर प्रतिबंध लगा, वैसे ही सभी ऑर्डर कैंसिल हो गए।

सब्जियों के भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन की कमजोरियां

यह ध्यान रहे कि विश्व का 12.6 फीसद फल और 14 फीसद सब्जी उत्पादित करने वाले भारत का फलों एवं सब्जियों के कुल वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी क्रमश: 0.5 और 1.7 फीसद ही है। आलू, प्याज, टमाटर के साथ हर साल घटित होने वाली इस स्थिति से निजात दिलाने के लिए 2018-19 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ऑपरेशन ग्रीन के तहत टॉप योजना शुरू की थी। इसके तहत टमाटर, प्याज और आलू के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन योजना के तीन साल बाद भी इसमें से पांच फीसद अर्थात 25 करोड़ रुपये भी नहीं खर्च हुए। इसका कारण टमाटर, प्याज और आलू के भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन संबंधी कमजोरियां थीं।

कृषि क्षेत्र में सुधारों की रफ्तार धीमी

टॉप की तरह खेती-किसानी संबंधी दूसरी प्रगतिशील योजनाएं भी फ्लॉप हो जाती हैं, क्योंकि उत्पादन के साथ-साथ भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन की समन्वित नीतियां नहीं बनतीं। दूसरे, कृषि उपजों के कारोबार में हर कदम पर बाधाएं मौजूद हैं। इसका कारण है कि कृषि क्षेत्र में सुधारों की रफ्तार बेहद धीमी रही। उदारीकरण-भूमंडलीकरण के तीस साल बाद भी कृषि उपजों का कारोबार जहां का तहां वाली हालत में है। दरअसल कई राज्यों में आढ़तियों-बिचौलियों की मजबूत राजनीतिक लॉबी कृषि क्षेत्र में सुधारों की विरोधी है। फिर वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकारें प्रगतिशील नीतियां अपनाने से बचती रहती हैं। हां, चुनाव के समय वे इसका वायदा जरूर करती हैं।

नए कृषि कानूनों का विरोध

उदाहरण के लिए आज जो कांग्रेस नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही है, उसी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जारी घोषणा पत्र में कहा था कि कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, जिससे कृषि उपज के निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार में लगे सभी प्रतिबंध समाप्त हो जाएंगे। इसके अलावा कांग्रेस ने कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को बदलकर आज की जरूरतों के हिसाब से नया कानून बनाएंगे।

कानून लागू होने के बाद कृषि उपजों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा

कांग्रेस के विरोध के बावजूद मोदी सरकार द्वारा अंतरराज्यीय कृषि कारोबार को अनुमति देने वाले कानून लागू करने के बाद कृषि उपजों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है। उत्पादक (किसान) और उपभोक्ता मंडियों के बीच किसान रेल शुरू होने से किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है तो उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत। उदाहरण के लिए दिल्ली में टमाटर की कीमतें 80 रुपये प्रति किलो पहुंच गई थीं, लेकिन आंध्र प्रदेश से दो किसान रेल में आए 500 टन से ज्यादा टमाटर के मंडियों में पहुंचते ही कीमतें काबू में आ गईं।

किसान रेल को मिली कामयाबी

पहली किसान रेल इस साल सात अगस्त को महाराष्ट्र के देवलाली से बिहार के दानापुर के बीच साप्ताहिक तौर शुरू की गई थी, लेकिन किसानों की मांग को देखते हुए इसे सप्ताह में तीन दिन करते हुए इसके रूट में विस्तार किया गया है। किसानों की मांग पर देश के दूसरे हिस्सों में भी किसान रेल चलाई जा रही हैं। किसान रेल को मिली कामयाबी को देखते हुए मोदी सरकार मालवाहक विमानों से सब्जियों और फलों की ढुलाई की योजना बनाई है।

ढुलाई की लागत का आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी

ढुलाई की लागत का आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी, ताकि उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते उनके भाव बहुत अधिक न बढ़ जाएं। इसके लिए 41 फलों और सब्जियों की सूची जारी की गई है। पहले चरण में इस योजना को पूर्वोत्तर और हिमालय के राज्यों के लिए शुरू किया गया है। आगे चलकर देश के सभी हिस्सों में विमानों के जरिये फलों-सब्जियों की ढुलाई होने लगेगी। मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के लिए बहुआयामी उपाय कर रही है। इसमें सबसे कारगर हथियार हैं बागवानी फसलें। देश के महज 8.5 फीसद क्षेत्र में फलों-सब्जियों की खेती होती है, लेकिन इनसे कृषिगत सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसद हिस्सा प्राप्त होता है। इतना ही नहीं फलों और सब्जियों की खेती अन्य फसलों के मुकाबले चार से दस गुना ज्यादा रिटर्न देती है। शहरीकरण, मध्यवर्ग का विस्तार, बढ़ती आमदनी, खान-पान की आदतों में बदलाव के चलते दुनिया भर में अनाज के बजाय फलों-सब्जियों की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है।

मोदी सरकार फलों-सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए टॉप टू टोटल योजना शुरू कर रही

मोदी सरकार टॉप योजना की खामियों को दूर करते हुए फलों-सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए टॉप टू टोटल योजना शुरू कर रही है। यह योजना टमाटर, प्याज और आलू समेत सभी फल और सब्जियों के लिए है। इससे न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि महंगाई से भी मुक्ति मिलेगी। फलों-सब्जियों के उत्पादन में सबसे बड़ी समस्या इनका जल्दी खराब होना है। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने परिवहन और भंडारण में 50-50 फीसद सब्सिडी देने की घोषणा की है। समग्रत: आज खेती-किसानी घाटे का सौदा बनी है तो इसका कारण है कि उदारीकरण का रथ महानगरों और हाईवे से आगे गांव की पगडंडी पर उतरा ही नहीं। अब सरकार कृषि क्षेत्र में सुधारों का आगाज कर रही है, जिससे आज नहीं तो कल खेती मुनाफे का सौदा बन जाएगी।

( लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं )