नई दिल्ली [अनंत विजय]। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद हिंदी फिल्म जगत लगातार एक के बाद एक विवाद में घिरता जा रहा है। हिंदी फिल्म जगत का ये विवाद पिछले दिनों संसद में भी गूंजा जब गोरखपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रवि किशन ने ड्रग्स का मामला लोकसभा में उठाया।

रवि किशन के अगले दिन अपने जमाने की प्रख्यात अभिनेत्री और अब समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन ने बैगर किसी का नाम लिए बॉलीवुड को बदनाम करने का आरोप जड़ा। अपने छोटे से वक्तव्य में जया बच्चन ने बेहद हल्की बात कह दी। उन्होंने बॉलीवुड पर सवाल उठाने वालों को निशाने पर लेते हुए कहा कि कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। अब ‘जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं’ से जया बच्चन एक ऐसा रूपक गढ़ने की कोशिश करती हैं जो उनकी मानसिकता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देता है। इस समय थाली और छेद के रूपक का उपयोग करके जया बच्चन अपनी सामंती मानसिकता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर गईं।

मतलब ये कि बॉलीवुड में कोई मालिक है जो छोटे लोगों के लिए थाली सजाता है। परोक्ष रूप से ये बयान रवि किशन और कंगना पर वार था। इन दोनों ने अपनी मेहनत से फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाई किसी ने इनके लिए थाली सजाई हो अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। थाली और छेद का रूपक जया जी और उनके परिवार को कठघरे में खड़ा कर देता है। जया बच्चन फिल्मी दुनिया की बेहद समादृत अभिनेत्री रही हैं, फिर लंबे समय से सांसद भी हैं। उनके पति अमिताभ बच्चन तो सदी के महानायक ही हैं, उनके भारत में करोड़ों प्रशंसक हैं।

जब जया जी राज्य सभा में थाली और उसमें छेद का रूपक गढ़ रहीं थीं तो शायद वो यह भूल गईं कि अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के लिए भी थाली कई लोगों ने कई बार सजाई थी। ख्वाजा अहमद अब्बास से लेकर अमर सिंह तक ने। उन्होंने थाली में छेद किया या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन थाली के पलट दिए जाने की कहानी कई लोग कहते हैं। फिल्म अभिनेता महमूद का एक बेहद चर्चित साक्षात्कार है जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन के बारे में, उनके संघर्षों के बारे में बताया है। बात उन दिनों की थी जब अमिताभ बच्चन फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ कर रहे थे। 

उस फिल्म का निर्देशन ख्वाजा अहमद अब्बास कर रहे थे। उसमें महमूद के छोटे भाई अनवर अली भी काम कर रहे थे। उस दौर में महमूद ने और उनके भाई अनवर अली ने अमिताभ की काफी मदद की थी। उनको अपने घर में रखा। महमूद तो उनको अपना बेटा मानते थे। उसके बाद भी जब अमिताभ की फिल्में फ्लॉप हो रही थीं तब भी महमूद ने अपनी फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ में अमिताभ को लीड रोल में लिया। इसमें शत्रुघ्न सिन्हा, अरुणा इरानी के अलावा अनवर अली ने भी काम किया था।

इस फिल्म ने औसत से थोड़ा ही बेहतर बिजनेस किया था पर अमिताभ के काम को यहीं से पहचान मिली। महमूद ने उसी साक्षात्कार में बताया कि किस तरह से बाद के दिनों में अमिताभ बच्चन ने उनको भुला दिया। जब महमूद की बाइपास सर्जरी हुई थी तो वो मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थी। वहीं अमिताभ के पिता हरिवंश राय बच्चन भी अपना इलाज करवा रहे थे। 

महमूद को इस बात का बेहद दुख था कि एक ही अस्पताल में रहने के बावजूद अमिताभ उनसे मिलने नहीं आए, गेट वेल सून का कार्ड या एक फूल तक नहीं भेजा। महमूद की ‘थाली’ का क्या हुआ? फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ के बाद अमिताभ को फिल्म ‘जंजीर’ से काफी शोहरत मिली। फिल्म ‘जंजीर’ में अमिताभ बच्चन के चयन की दिलचस्प कहानी है। प्रकाश मेहरा के सामने जब ‘जंजीर’ की कहानी आई तो वो इसको लेकर धर्मेन्द्र और देवानंद के पास गए लेकिन दोनों ने इंकार कर दिया।

वो दौर राजेश खन्ना का था और उनका जादू दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा था। ज्यादातर अमिनेता रोमांटिक फिल्में कर रहे थे या करना चाहते थे। ‘जंजीर’ की कहानी अलग हटकर थी। जब प्रकाश मेहरा को धर्मेन्द्र और देवानंद ने मना कर दिया तब फिल्म ‘जंजीर’ लिखनेवाली मशहूर जोड़ी के सलीम खान ने उनको अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया था।

उन्होंने फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ देखी थी और उसमें अमिताभ का फाइट सीन उनको खास पसंद आया था। उसके बाद की कहानी तो इतिहास है। लेकिन जब सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी टूटी थी तो इसकी खबर उस वक्त मुंबई के एक समाचार पत्र में छपी थी। अखबार के उसी अंक में अमिताभ बच्चन के हवाले से ये कहा गया था कि वो जावेद अख्तर के साथ हैं।

सलीम-जावेद और अमिताभ के अन्य प्रसंग दीप्तकीर्ति चौधरी की किताब, ‘द स्टोरी ऑफ हिंदी सिनेमा’ज ग्रेटेस्ट स्क्रीन राइटर्स’ में देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं इस बात का भी अन्यत्र उल्लेख मिलता है कि बाद के दिनों में प्रकाश मेहरा जब अमिताभ से मिलने की कोशिश करते थे तो लंबी प्रतीक्षा के बाद भी उनको ये सौभाग्य प्राप्त नहीं होता था। वजह का पता नहीं। अमिताभ बच्चन के लिए सफल फिल्मों की ‘थाली’ तो प्रकाश मेहरा ने भी सजाई थी।

बच्चन परिवार और गांधी परिवार की नजदीकियां और दूरियां भी सबको पता ही हैं उसको फिर से दोहराने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन इतना तो कहना ही होगा कि गांधी परिवार या कांग्रेस ने भी बच्चन परिवार के लिए ‘थाली’ तो सजाई थी। हर किसी की जिंदगी में उतार चढ़ाव आते हैं, बच्चन साहब की जिंदगी में भी आए। तब उनकी मदद के लिए अमर सिंह सामने आए थे। संकट के समय बच्चन परिवार के लिए ‘थाली’ तो अमर सिंह ने भी सजाई। 

जया जी को समाजवादी पार्टी से सांसद बनवाने में भी उनकी भूमिका मानी जाती है। कालांतर में अमर सिंह की ‘थाली’ भी पलट गई और वो बच्चन परिवार से दूर हो गए। दरअसल जया बच्चन उम्र और प्रतिष्ठा के उस पड़ाव पर हैं जहां उनसे इस तरह की हल्की टिप्पणी की बजाय गंभीर और सकारात्मक टिप्पणियों की अपेक्षा होती है।

आज बॉलीवुड को लेकर जो भी कहा या लिखा जा रहा है उसपर जया जी जैसी फिल्म जगत की वरिष्ठ और सम्मानित सदस्यों को सामने आकर देश को भरोसा देना चाहिए था। कहना चाहिए था कि अगर वहा नशा या कुछ और गलत हो रहा है तो उससे इंडस्ट्री को मुक्त करने की जरूरत है। ये अपेक्षा तो तब की जा सकती थी जब फिल्म जगत से जुड़े वरिष्ठ लोग सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस दिखा पाते। वरिष्ठ साहस नहीं दिखाते और कनिष्ठ या मानसिक रूप से विपन्न निर्देशक राजनीति करते हैं। संजय दत्त ड्रग्स की गिरफ्त में आए थे, उसके बाद अन्य आपराधिक गतिविधि के चलते जेल में भी रहे।

जब उनको नायक बनाने के लिए फिल्म ‘संजू’ का निर्माण होता है और उस फिल्म में संजय दत्त तीन सौ से अधिक महिलाओं के साथ हम बिस्तर होने की बात कहते हैं तो किसी को गटर की याद नहीं आती। कोई भी इस बात पर आपत्ति नहीं जताता कि इस फिल्म में इस प्रसंग को महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिए था। बल्कि इस फिल्म की सफलता को बॉलीवुड ने सेलिब्रेट किया गया। तब फिल्मी दुनिया से जुड़े वरिष्ठ सदस्य उद्वेलित नहीं हुए कि राजू हिरानी ने अपनी फिल्म में महिलाओं को घोर आपत्तिजनक तरीके से पेश किया। अब समय आ गया है कि बॉलीवुड साहस दिखाए। साहस सही को सही और गलत को गलत कहने का।