[शिवकांत शर्मा]। सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जाना जाने वाला मध्य इंग्लैंड का शहर लेस्टर सांप्रदायिक तनाव की वजह से चर्चा में है। लंदन से लगभग 150 किमी उत्तर और बर्मिंघम से 50 किमी पूर्व में बसे इस शहर में ताजा जनगणना के अनुसार लगभग दो लाख भारतीय और दस हजार पाकिस्तानी प्रवासी हैं। भारतीय प्रवासियों में से लगभग एक लाख मुसलमान, 75 हजार हिंदू और 25 हजार सिख हैं। शहर की कुल आबादी साढ़े पांच लाख है। भारत में विभाजन की विभीषिका से और पूर्वी अफ्रीकी देशों की हिंसा से भाग कर आने के बावजूद लेस्टर में आकर लोगों ने पुराने वैमनस्य भुलाकर मिल-जुलकर रहना शुरू किया।

कुछ ही दशकों के भीतर भारतीय प्रवासियों को लेस्टर के समृद्ध समुदाय के रूप में देखा जाने लगा। कभी मजदूरों की बस्ती कहा जाने वाला बेलग्रेविया लेस्टर का सबसे समृद्ध जौहरी बाजार बन गया, जिसे पूरे मध्य इंग्लैंड में 'गोल्डन माइल' के रूप में जाना जाता है। गोल्डन माइल की दीपावली को विदेश की सबसे भव्य दीपावली के रूप में जाना जाता है। इसी सड़क के मेल्टन रोड वाले छोर पर 28 अगस्त की शाम एशिया कप में भारत-पाकिस्तान मैच के बाद हिंदू और मुस्लिम खेलप्रेमियों के बीच टकराव हुआ।

इंग्लैंड के शहरों में खेलप्रेमियों के बीच तनातनी और नारेबाजी कोई नई बात नहीं। फुटबाल मैचों के साथ भारत-पाक क्रिकेट मैचों के बाद भी नारेबाजी होना आम बात है, लेकिन 28 अगस्त और उसके बाद के तीन हफ्तों में जो हुआ, उसने लेस्टर ही नहीं, पूरे मध्य इंग्लैंड के शहरों को चिंता में डाल दिया है। 28 अगस्त को मैच के बाद भारत समर्थक क्रिक्रेट प्रेमियों के एक गुट ने भारतीय ध्वज के साथ बेलग्रेव रोड पर विजय जुलूस निकाला। जुलूस में मुख्यतः हिंदू थे और हिंदुस्तान जिंदाबाद और वंदे मातरम् के नारे लगा रहे थे। इस जुलूस के विरोध में मुस्लिम खेलप्रेमियों ने भी एक जुलूस निकाला।

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो अचानक एक व्यक्ति ने भारतीय ध्वज छीनकर नीचे गिरा दिया। लोगों को लगा कि भारतीय झंडे का अपमान करने वाला पाकिस्तानी ही होगा, इसलिए उसकी पिटाई की और फिर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए। बाद में पता चला कि झंडा गिराने वाला असल में सिख था। 28 अगस्त की घटना तो वहीं खत्म हो गई, लेकिन उसके बाद जो शुरू हुआ, वह लेस्टर में पहले कभी नहीं हुआ था। वह था इंटरनेट मीडिया पर भ्रामक और मिथ्या प्रचार का युद्ध, जिसकी कमान तीन जिहादियों के हाथों में थी।

पहला, माजिद फ्रीमैन। इसके तार पीएफआइ और आइएस जैसे संगठनों से जुड़े हैं। वह लेस्टर में ही रहता है। दूसरा, मोहम्मद हिजाब जो मिस्र मूल का जिहादी प्रचारक है और लंदन में रहता है। तीसरा, अंजुम चौधरी, जो जिहादी मौलवी अबू हमजा का करीबी और जिहादी संगठन अल मुहाजिरून का प्रवक्ता रहा है। वह आतंकी गतिविधियों के जुर्म में कई साल जेल भी काट चुका है। इन तीनों ने प्रचार किया कि 'क्रिकेट प्रेमियों के जुलूस में जिस शख्स को पीटा गया, वह मुस्लिम था और जो नारा लगाया गया, वह पाकिस्तान मुर्दाबाद का नहीं, बल्कि मुस्लिम मुर्दाबाद का था। यह सब हिंदुत्ववादी ताकतों और आरएसएस के इशारों पर हो रहा है।'

लेस्टर के महापौर और पुलिस प्रमुख ने वक्तव्य जारी कर इस भ्रामक प्रचार का कई बार खंडन किया, लेकिन दुष्प्रचार अपना काम कर चुका था। शहर से जमा हुए और बर्मिंघम से आए उत्तेजित मुस्लिम गिरोहों ने हिंदू बस्तियों और बाजारों में नकाब पहन कर गश्त लगाना और तोड़फोड़ करना शुरू किया, जिसका सिलसिला तीन से छह सितंबर तक चला। घनी मुस्लिम आबादी के बीच ग्रीन लेन रोड पर रहने वाले हिंदुओं के अनुसार, मुस्लिम गिरोहों को जिन कारों में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं दिख रही थीं, उन्हें वे तोड़ रहे थे और अल्लाह-ओ-अकबर के साथ-साथ हिंदू और भारत विरोधी नारे भी लगा रहे थे। विश्लेषकों का कहना है कि लाखों बेनामी खातों से भ्रामक खबरें फैलाई जा रही थीं। एक लाख से अधिक बेनामी खाते भारत से खोले गए थे।

लेस्टर के बाद 20 सितंबर को पुलिस की उपस्थिति में जिहादी भीड़ ने पश्चिमी बर्मिंघम के दुर्गा भवन हिंदू केंद्र का घेराव किया और एक युवक ने दीवार पर चढ़कर मंदिर की दिशा में अशोभनीय प्रदर्शन किया। पुलिस ने अब तक 47 लोगों को गिरफ्तार तो किया है, मगर इनमें फ्रीमैन, मोहम्मद हिजाब और अंजुम चौधरी जैसे जिहादी शामिल नहीं हैं, जिनके भ्रामक और उकसाऊ प्रचार से तनाव फैला।

नवरात्रों के साथ ही हिंदू त्योहारों का दौर शुरू हो चुका है। लेस्टर में पुलिस की उपस्थिति बढ़ा दी गई है, लेकिन माहौल में दहशत है। सवाल उठता है कि खेल को लेकर होने वाली तनातनी ने अचानक इतना गंभीर रूप कैसे धारण कर लिया? मुस्लिम पक्ष का और घटनाओं को केवल मोदी विरोधी नजरिये से देखने वालों का मानना है कि यह भारत में फैल रहे कथित उग्र हिंदूवाद का नतीजा है, लेकिन वहां रहने वाले बताते हैं कि लेस्टर भारत में होने वाली राजनीतिक घटनाओं के असर से अछूता नहीं रहा है।

खालिस्तानी आंदोलन के दिनों में भी लेस्टर में छिटपुट आतंकी घटनाएं होती रही हैं। इसी तरह अयोध्या ढांचे के विध्वंस और गुजरात दंगों के दिनों में भी खासा तनाव रहा, पर इतना माहौल पहले कभी नहीं बिगड़ा। इसका कारण हिंदू उग्रवाद का लेस्टर और इंग्लैंड के बाकी शहरों में आना नहीं, क्योंकि पुलिस और खुफिया एजेंसियां कई बार कह चुकी हैं कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं। असली कारण भारत से आकर बसे और बाकी देशों के मुसलमानों के एक तबके का भारत में चल रहे घटनाक्रम की रिपोर्ट पढ़कर उग्र हो जाना है।

मुसलमानों का एक वर्ग इराक, अफगानिस्तान और सीरिया की घटनाओं से भी उग्र होता जा रहा है। इस जिहादी तबके के लिए अब सीरिया, इराक और अफगानिस्तान जैसा कोई मुद्दा नहीं बचा है। चीन जो शिनजियांग में कर रहा है या सऊदी अरब जो कुछ यमन में कर रहा है, उस पर इनमें जिहाद करने की हिम्मत नहीं। इसलिए जिहादी सोच वालों की नजर अब भारत पर है। लेस्टर में जो कुछ देखने-सुनने को मिला, वह इसी ओर इशारा करता है।

(लेखक बीबीसी हिंदी सेवा के पूर्व संपादक हैं)