हृदयनारायण दीक्षित। इस समय समस्त विश्व और मानवता आतंक की वापसी से भयाक्रांत है। भय की यह भावना अफगानिस्तान में तालिबान के पुन: उभार से उपजी है। यूं तो दुनिया में कई आतंकी संगठन हैं और उनका एक ही एजेंडा है हिंसा एवं रक्तपात, परंतु तालिबान का मामला कई मायनों में अलग है। यह संभवत: पहला मामला है जब किसी आतंकी धड़े ने पूरा का पूरा एक देश ही हड़प लिया हो। अमेरिका ने बीस साल पहले जिस आतंकी धड़े के खिलाफ मुहिम छेड़कर उसे सत्ता से बेदखल किया था। वही फिर से सत्ता पर काबिज है। समय की सुई फिर से वहीं अटक गई है। तालिबान 21वीं सदी के आधुनिक विश्व में सातवीं सदी की कट्टरपंथी पुरातन विचारधारा लादना चाहता है। उसके प्रवक्ता का कहना है कि औरतों का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है। तालिबान राज में महिलाएं रो रही हैं। मानवता फफक रही है। हिंसा और रक्तपात के बावजूद विश्व बिरादरी मौन है।

यही अफगानिस्तान प्राचीन इतिहास में एक अत्यंत सभ्य क्षेत्र था। उसका उल्लेख वैदिक साहित्य में है। उसके बाद उपनिषदों, रामायण और महाभारत में भी है। ऋग्वेद के नदी सूक्त (10.75) में नदियों का वर्णन है। वस्तुत: यह आर्य भूमि है। नदी सूक्त में गंगा, यमुना, सरस्वती और वितस्ता आदि नदियां हैं। इसी सूक्त में पश्चिम से आकर सिंधु क्षेत्र में आने वाली नदियां क्रुम, कुंभा, तुष्टामा और स्वात आदि की चर्चा है। पूरब में गंगा से लेकर धुर उत्तर पश्चिम में आज के अफगानिस्तान तक की नदियों का उल्लेख है। इस समय जिन्हें हम आमू और काबुल कहते हैं, वह ऋग्वेद में बक्षु और कुंभा है। प्राचीनकाल के पक्थ आज के पख्तून हैं। पौराणिक मान्यता में इसी समूह ने हस्तिनापुर के राजा संवरण के लिए युद्ध किया था। प्राचीन गांधार के साथ कपिश राज्य भी था। गांधार ईरान के मार्ग पर था। कपिश रूस और चीन के मार्ग पर था। यहीं तक्षशिला और पुष्कलावती थे। विश्व विख्यात तक्षशिला में ही चाणक्य पढ़ाते थे। इसी भूक्षेत्र में संप्रति रक्तपात है।

तालिबान ने प्राचीन सभ्यता को नष्ट किया है। उसने बामियान क्षेत्र में बुद्ध की प्रतिमाएं ध्वस्त कीं। उसका उद्देश्य इस्लामी शासन की स्थापना है। इस्लामी शासन स्थापना की यह मुहिम पाकिस्तानी मदरसों से उभरी थी। वर्ष 1998 तक अफगानिस्तान के बड़े भूभाग पर तालिबान का नियंत्रण हो गया था। सोवियत सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान की जनता मुजाहिदीन के अत्याचार से व्यथित हो गई थी। उन्होंने इस्लामी कानूनों के नाम पर सार्वजनिक रूप से फांसी देना और कथित दोषियों के अंग-भंग करने की सजाएं दीं। पुरुषों के लिए दाढ़ी रखना और महिलाओं के लिए शरीर को ढकना अनिवार्य था। तालिबान ने टेलीविजन, संगीत, सिनेमा आदि को गैर-इस्लामी बताया। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की प्रेरणा कट्टरपंथी इस्लाम है। पहले दौर की तालिबान सरकार को पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने मान्यता दी थी। तालिबान से औपचारिक राजनयिक संबंध तोड़ने वाले देशों में पाकिस्तान आखिरी देश था, परंतु दबे-छिपे उसे संरक्षण-प्रोत्साहन देता रहा।

सितंबर 2012 में तालिबान ने काबुल पर कई हमले किए। आतंक और अत्याचार का बोलबाला बढ़ता गया। वर्ष 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हुआ, लेकिन वही तालिबान उस समझौते के मूल्यों की धज्जियां उड़ाने में लगा है। वह अब पत्रकारों, न्याय प्रक्रिया से जुड़े लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं के उत्पीड़न में सक्रिय हैं। एक राष्ट्र के रूप में अफगानिस्तान अब टूट रहा है। तालिबान की आतंकी सरकार प्रत्यक्ष है। माना यही जा रहा है कि तालिबान सरकार को पाकिस्तान ही चलाएगा। पाकिस्तान आतंक के साथ है। अमेरिकी विचारक सैमुअल पी हंटिंगटन ने अपनी पुस्तक ‘क्लैश आफ द सिविलाइजेशंस’ यानी सभ्यताओं के टकराव में लिखा था कि ‘नए विश्व में संघर्षों का मूल आधार विचारधारा या आर्थिक प्रश्न नहीं होंगे। विभाजित मानवता और सभ्यता संस्कृति के प्रश्न ही टकराव का मूल आधार होंगे।’

वर्ष 1996 में जब यह पुस्तक आई थी तब तक तालिबान प्रकट हो चुका था। न्यूयार्क टाइम्स ने 21 अक्टूबर, 2001 को हंटिंगटन से पूछा, ‘आपने लिखा है कि इस्लाम की सरहदें खून से सनी हुई हैं। ऐसा लिखकर आप क्या कहना चाहते हैं?’ हंटिंगटन ने कहा, ‘मुस्लिम जगत की सीमाओं पर नजर दौड़ाइए स्थानीय स्तर पर मुसलमान और गैर-मुसलमानों के बीच टकराव की लंबी श्रृंखला है। बोस्निया, कोसोवो, फिलीपींस, फलस्तीन और इजरायल।’ उनकी राय थी कि, ‘लादेन आतंक के जरिये इस्लाम और पश्चिमी सभ्यताओं में संघर्ष चाहता है।’

अमेरिका पर हमले के बाद लादेन दुनिया के करोड़ों मुस्लिम नौजवानों का हीरो बन गया था। 20वीं सदी के मुस्लिम विद्वान मौलाना मौदूदी ने कहा था, ‘कुरान सारे संसार में दो पार्टियां देखता है। एक अल्लाह की पार्टी और दूसरी शैतान की।’ कांग्रेस नेता और विचारक विपिन चंद्र पाल ने 1913 में लिखा था कि इस शताब्दी के अंत तक तीन वैश्विक संगठन बन सकते हैं। पहला विश्व इस्लामाबाद, जिसका नेतृत्व भारत और मिस्र के मुसलमान करेंगे।’ तब पाकिस्तान नहीं था। भारत ही था। पाकिस्तान उसी रास्ते पर है, दूसरा संगठन अखिल मंगोलबाद होगा। इसका नेतृत्व चीन करेगा। तीसरा यूरोपवाद होगा। पाल की भविष्यवाणी विचारणीय है।

तालिबान मानवता के दमन में लगा हुआ है, मगर भारत में भी स्वयं को तालिबानी विचारधारा से जोड़ने की सांप्रदायिक बीमारी चल पड़ी है। इनमें फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और शफीकुर्रहमान बर्क जैसे लोगों के साथ प्रबुद्धों की गिनती में आने वाले जावेद अख्तर और मुनव्वर राना भी शामिल हैं। यह आश्चर्यजनक है। बच्चों और महिलाओं का उत्पीड़न भी इन महानुभावों को द्रवित नहीं करता। कुछ लोग तालिबानियों को स्वाधीनता संग्राम सेनानी भी बताते है। यह खेदजनक है। आश्चर्य है कि मानवता की हत्या होते देखकर भी कुछ लोगों के दिलोदिमाग में तालिबान के काम प्रशंसनीय हैं। पाकिस्तान खुलकर तालिबान के साथ आ चुका है। पाकिस्तानी मंत्रियों ने तालिबान को पूरी मदद देने की घोषणा की है। तालिबान की अंतरिम सरकार में दुनिया के दुर्दात आतंकी शामिल हैं। यह घटना अभूतपूर्व है। मूलभूत प्रश्न है कि क्या ऐसे आतंकी मंत्री अफगानिस्तान में सरकार चला सकते हैं? वे आमजनों को कैसे न्याय देंगे? अफगानिस्तान में हिंसा और उत्पीड़न जारी है। दुनिया के किसी भी कोने से तालिबानी कृत्य की निंदा नहीं सुनाई पड़ रही है। इस पर विश्व बिरादरी का मौन दुर्भाग्यपूर्ण है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)