[ अंशुमाली रस्तोगी ]: दलाल पथ की रौनक देखते ही बनती है इन दिनों। भीषण कोरोना काल में भी श्रीमान सेंसेक्स सरपट दौड़ रहे हैं। न दाएं देख रहे है न बाएं। न आगे देख रहे न पीछे। बस एक ही दिशा में भागे चले जा रहे हैं। बाजार के पंडितों से लेकर निवेशक तक हैरान हैं। हालांकि यह हैरानी सुखद संयोग सरीखी है। वहीं सेंसेक्स है कि अपनी गतिशीलता पर बरबस मुस्करा रहा है। 46 हजार के स्तर को पार कर अब उसका अगला लक्ष्य 50 हजारी होना है। हो जाएगा, मुझे पक्का यकीन है। कहना न होगा, सेंसेक्स आजकल अपने ‘अच्छे दिनों’ में है। जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना के कोप से बेदम हो रही हैं, तब श्रीमान सेंसेक्स अपना दम और ज्यादा दमदार तरीके से दिखा रहे हैं।

कोरोना काल में भी सेंसेक्स का ऊपर चढ़ना प्रशंसनीय

यकीनन ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में सेंसेक्स जी का लगातार ऊपर चढ़ना प्रशंसनीय है। सेंसेक्स जी के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। बड़े कष्ट झेलने के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। कितनी ही विकट गिरावटें झेलीं। उनकी गिरावट ने न मालूम कितनों को गर्त में धकेल दिया। कितनी ही दफा दलाल पथ पर कोहराम मचा, मगर सेंसेक्स ने कभी हार नहीं मानी। हारना यों भी सेंसेक्स की फितरत नहीं रही कभी। सेंसेक्स जी वापसी के लिए सदा ही संकल्पबद्ध रहे। तकरीबन 20-22 साल से तो मैं ही उनकी चाल को नजदीक से देख रहा हूं।

मौसम का फार्मूला तो मिल गया मगर सेंसेक्स के मिजाज को भांपने का मंत्र आज तक नहीं मिला

हालांकि उनकी चाल का कुछ पता नहीं कि आपको मालामाल कर दे या बेहाल करके छोड़ दे। विज्ञान ने मौसम की सटीक भविष्यवाणी का फार्मूला तो खोज लिया है, परंतु सेंसेक्स जी के मिजाज को भांपने का मंत्र आज तक नहीं मिला है। फिर भी इसकी धुन पर नाचने वाले मतवाले कम नहीं हैं। असल में सेंसेक्स किसी महबूबा के माफिक है। लोगों को इसके नाज-नखरे भी सहने हैं, पर रहना भी इसके साथ है। इसको समझ पाना किसी के बूते की बात नहीं। मेरे ख्याल में इसे न समझना ही अधिक बेहतर है। कम से कम रहस्य की गुंजाइश तो बनी रहती है। वैसे भी रहस्य का अपना एक अनूठा सौंदर्य भी होता है।

शेयर बाजार किसी के इशारे पर नहीं नाचता, बल्कि सबको अपनी धुन पर नचाता है

कायदे से शेयर बाजार ऐसा समंदर है, जो आपकी बचत की तमाम धाराओं को समाहित कर सकता है। यह अमीर-गरीब में कोई भेद नहीं करता। न ही यह जाति या धर्म के आधार पर कोई तरजीह देता है। वास्तव में इसे तो सदी के सबसे बड़े ‘सेक्युलर’ का खिताब दिया जाना चाहिए, जो किसी पैमाने पर कोई पक्षपात नहीं करता। यह किसी के इशारे पर नहीं नाचता, बल्कि सबको अपनी धुन पर नचाता है।

सेंसेक्स की चाल को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है

इस बीच सेंसेक्स के कुछ जानकार कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं, जो दावा करते हैं कि उन्होंने उसके मन को साध लिया है। वे निरे झूठे हैं। दरअसल सेंसेक्स की चाल को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। इसे समझने का दावा करने वाले ‘तीसमारखां’ इसी नाम वाली सुपर फ्लॉप फिल्म के माफिक मात खाते हैं। सच कहूं तो सेंसेक्स के आगे किसी की नहीं चलती। इसकी लाल लहर कइयों के लिए किसी काल से कम नहीं है। वहीं जब यह हरियाली राग गाता है तो दलाल पथ पर सावन बरस जाता है। इन दिनों सेंसेक्स यही राग सुनाते हुए खुद ही मुस्कराता हुआ दिखता है।

कोरोना काल में सेंसेक्स की मुस्कान किसी मिसाल से कम नहीं

इस दौर में जब कोरोना ने पूरी दुनिया को रुला रखा है तो सेंसेक्स की यह मुस्कान किसी मिसाल से कम नहीं। वह जिजीविषा का प्रतीक बन रहा है। वह दिखा रहा है कि भीतर से तमाम गिरावटों के दर्द के बावजूद वह उत्साह की उमंग पर सवार है। वह हमें जीवन के उतार-चढ़ाव से तालमेल बैठाना सिखाता है। साथ ही यह सीख भी कि जीवन में कुछ स्थायी नहीं।

जीवन के अच्छे-बुरे दौर में भी मुस्कुराते रहने की कला सेंसेक्स से सीखिए

बहरहाल दर्शन से इतर दोबारा वास्तविकता के धरातल पर उतरते हैं। खबरें आ रही हैं कि सेंसेक्स जल्द ही ‘लखपति’ बन जाएगा। दुनिया में देश का नाम ऊंचा करेगा। ‘न्यू इंडिया’ बनाने में सरकार को सहारा देगा। ये सभी अनुमान तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में हैं, फिलहाल इस कड़वाहट भरे दौर में सेंसेक्स द्वारा भरी जा रही मिठास का लुत्फ उठाइए। इसकी बढ़त पर तालियां बजाकर इसे प्रोत्साहित करते रहिए। इसको अपनी प्रेरणा बनाइए। जीवन के अच्छे-बुरे दौर में भी मुस्कुराते रहने की कला इससे सीखिए। यह कला तमाम बलाओं को दूर रखती है।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]