राजीव सचान। बीते सप्ताह गुजरात के राजकोट शहर में एक गेमिंग जोन में 35 लोग जलकर मर गए। इस भयावह घटना के कुछ दिन बाद दिल्ली के एक बेबी केयर सेंटर में सात बच्चे आग लगने के कारण काल के गाल में समा गए। इन दोनों घटनाओं में साझा केवल यही नहीं कि घटना का कारण आग लगना रहा। इसके अलावा भी बहुत कुछ साझा है, जैसे यह कि राजकोट के गेमिंग जोन ने अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल नहीं किया था। यही बात दिल्ली के बेबी केयर सेंटर के बारे में भी सामने आई।

इसने भी न तो आग से बचाव के उपाय कर रखे थे और न ही अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र ले रखा रखा था। गेमिंग जोन के मामले में यह भी सामने आया कि राजकोट नगर निगम ने उसके संचालन के लिए न तो कोई लाइसेंस दे रखा था और ही संचालकों ने अन्य किसी नियामक संस्था से कोई अनुमोदन प्राप्त किया था। यही कहानी दिल्ली के बेबी केयर सेंटर की भी है। उसके लाइसेंस की अवधि समाप्त हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद वह अवैध रूप से चल रहा था। स्पष्ट है कि कोई भी यह देखने-जांचने वाला नहीं था कि उसके इलाके में कोई अवैध काम तो नहीं हो रहा है।

गेमिंग जोन या बेबी केयर सेंटर चलाना कोई ऐसा काम नहीं, जिसे गुपचुप रूप से किया जा सके। बेबी केयर सेंटर में पांच बच्चों की देखभाल की सुविधा थी, लेकिन उसमें 12 नवजात भर्ती थे। चूंकि किसी को परवाह नहीं थी, इसलिए इस सेंटर में न तो अग्निशमन यंत्र था और न ही कोई आपातकालीन निकास। इससे भी गंभीर बात यह थी कि यहां आक्सीजन के सिलेंडर रखे हुए थे। इसका मतलब है कि हादसे को निमंत्रण देने की तैयारी थी। ऐसी ही तैयारी राजकोट के गेमिंग जोन में भी दिखी। वहां लोगों का प्रवेश हो रहा था और वेल्डिंग का काम भी चल रहा था।

चूंकि लोकसभा चुनाव चल रहे हैं इसलिए राजकोट की घटना पर भी नेताओं ने अपनी संवेदना व्यक्त की और दिल्ली की घटना पर भी। दोनों जगह शासन-प्रशासन ने थोड़ी सख्ती का परिचय तो दिया, लेकिन इसके नतीजे में ऐसा कुछ विशेष नहीं हुआ, जो नजीर बन सके। राजकोट में गेमिंग जोन चलाने वाले संचालकों को गिरफ्तार कर लिया गया तो दिल्ली में बेबी केयर सेंटर चलने वाले डाक्टर को। प्रश्न है कि दोनों ही जगह अग्निशमन विभाग और नगर निकाय के किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?

जैसे गुजरात सरकार से कोई यह नहीं पूछ रहा कि नगर निगम और अग्निशमन विभाग के किसी अधिकारी-कर्मचारी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया, वैसे ही दिल्ली सरकार से कोई यह सवाल नहीं कर रहा कि अग्निशमन विभाग, नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग के किसी अधिकारी-कर्मचारी की गिरफ्तारी की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? कायदे से तो दोनों शहरों के संबंधित अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।

राजकोट और दिल्ली के मामले इकलौते ऐसे प्रकरण नहीं, जिनमें सरकारी तंत्र को जवाबदेही से दूर रखने की कोशिश की गई हो। इस तरह के मामले रह-रहकर होते ही रहते हैं और उनमें बड़ी संख्या में लोग जान गंवाते हैं अथवा घायल होते हैं, लेकिन नियामक तंत्र के उन लोगों को कभी भी कठघरे में नहीं खड़ा किया जाता, जिनकी अनदेखी और लापरवाही के चलते जानलेवा घटनाएं होती रहती हैं।

इसका उदाहरण है मुंबई में एक विशालकाय होर्डिंग गिरने से कई लोगों की मौत। यह विशालकाय होर्डिंग अवैध रूप से लगा था, लेकिन किसी को ‘नजर’ नहीं आ रहा था। जब यह गिर गया और उसमें कई लोगों की जान चली गई तो सरकारी तंत्र ने उससे अपना पल्ला झाड़ लिया। होर्डिंग लगवाने वाला तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन नगर निकाय के किसी अधिकारी-कर्मचारी को गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं समझी गई। कोई नहीं जानता कि क्यों?

भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सरकारी तंत्र की लापरवाही से रह-रहकर हादसे होते रहें और उनमें बड़ी संख्या में लोग मरते रहें। दुर्भाग्य से अपने देश में यही हो रहा है। जब कोई बड़ी घटना घट जाती है और उसमें अधिक संख्या में लोग मारे जाते हैं तो शोक संवेदनाओं का तांता लग जाता है और फौरी कार्रवाई करने के साथ उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद उन्हीं कारणों से वैसी ही घटना फिर सामने आती है, जैसी पहले हो चुकी होती है। यही कारण है कि न तो हादसे कम हो रहे हैं और न ही उनमें जान गंवाने वालों की संख्या में कमी आ रही है।

हादसे दुनिया में हर कहीं होते हैं, लेकिन विकसित और विकासशील देश कम से कम उनसे सबक लेते हैं और ऐसी व्यवस्था करते हैं, जिससे बार-बार एक जैसे कारणों से हादसे न हों। भारत में कोई सबक सीखने से इन्कार किया जा रहा है और यही कारण है कि विकसित देश बनने के संकल्प को साकार करना कहीं अधिक कठिन दिख रहा है। अपने देश में हर तरह के नियम-कानून हैं, लेकिन उनके उल्लंघन की जैसी सुविधा यहां है, वैसी शायद ही किसी विकासशील और विकसित राष्ट्र का स्वप्न देखने वाले देश में हो। भारत में लोग किस कदर कदम-कदम पर नियम-कानूनों का ठसक के साथ उल्लंघन करते हैं और सरकारी तंत्र में बैठे लोग उनकी मदद करने या फिर उनके अपराध को ढकने के लिए तैयार रहते हैं, इसका शर्मनाक उदाहरण पुणे का कार हादसा भी है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)