[ एम वेंकैया नायडू ]: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले ने एक देशव्यापी बहस छेड़ दी है। देश के अधिकांश लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। वे यह भी मानते हैं है कि इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह देश की एकता-अखंडता से जुड़ा मुद्दा है। इसे राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस विषय पर किसी गंभीर बहस से पहले अनुच्छेद 370 के पीछे मूल उद्देश्य को समझना जरूरी है। वास्तव में यह एक अस्थायी प्रावधान था जिसे स्थायी बनाने की कोई मंशा ही नहीं थी।

अनुच्छेद 370 विलय के समय अस्तित्व में नहीं था

यह भी एक तथ्य है कि अनुच्छेद 370 वर्ष 1952 में अमल में आया। जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघ में विलय के समय यह अस्तित्व में नहीं था। संविधान सभा ने अक्टूबर 1949 में इसे संविधान में शामिल किया था। इसका बीड़ा सभा के सदस्य शेख अब्दुल्ला ने उठाया था। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को अपने झंडे और अलग संविधान के साथ ही कई विशेषाधिकार भी मिले हुए थे। हालांकि इसे संविधान में शामिल कराना उतना आसान भी नहीं रहा था।

अनुच्छेद 370 संविधान में शामिल नहीं हो सका

जब इसे संविधान में शामिल करने पर विचार हो रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को सलाह दी कि वह डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस विषय पर मनाएं। डॉ. आंबेडकर इसके पक्ष में ही नहीं थे। ‘डॉ. आंबेडकर, फ्रेमिंग ऑफ इंडियन कांस्टिट्यूशन’ में लेखक डॉ. एसएन बुसी ने इस संदर्भ में डॉ. आंबेडकर के बयान का उल्लेख किया है, ‘श्री अब्दुल्ला, आप चाहते हैं कि भारत कश्मीर की हर आवश्यकता की पूर्ति करे और कश्मीर को भारत में बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन आप यह नहीं चाहते कि भारत सरकार या भारत के किसी नागरिक को कश्मीर में कोई अधिकार मिले। ऐसे प्रस्ताव को स्वीकृति देना भारत के हितों के साथ विश्वासघात होगा और कानून मंत्री के रूप में, मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगा।’

अनुच्छेद 370 ने खाई को और चौड़ा किया

पंडित नेहरू ने भी 27 नवंबर, 1963 को संसद में अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रावधान बताते हुए कहा था कि यह काफी घिस चुका है। फिर भी इतिहास साक्षी है कि कश्मीर के लोगों को शेष भारत के निकट लाने के बजाय अनुच्छेद 370 ने इस खाई को और चौड़ा ही किया। स्वार्थी तत्वों ने सुनियोजित तरीके से इसे अंजाम दिया। अनुच्छेद 370 आम नागरिकों को कोई फायदा पहुंचाने में नाकाम रहा, वहीं अलगाववादी राज्य और शेष भारत के बीच नफरत बढ़ाने में इसका इस्तेमाल करते रहे। यह सब पड़ोसी देश की शह पर होता रहा।

अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग लंबे समय से थी

अनुच्छेद 370 को हटाने की मांग लंबे समय से होती रही है। वर्ष 1964 में तो इस पर संसद में चर्चा भी हुई थी। तब इसे समाप्त करने के लिए एक निजी विधेयक को व्यापक समर्थन भी मिला था। प्रकाशवीर शास्त्री के इस प्रस्ताव को राममनोहर लोहिया और कांग्र्रेसी दिग्गज के. हनुमंथैया जैसे वरिष्ठ नेताओं का साथ मिला था। तब चर्चा हुई कि दलगत राजनीति से ऊपर सदस्य चाहते हैं कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के लिए कानून बने। सदन में अनुच्छेद को पूर्ण अखंडता की राह में रोड़ा माना गया। तब जिन 12 सदस्यों ने इसे हटाने का समर्थन किया उनमें सात कांग्रेस के थे। इनमें जम्मू-कश्मीर के इंदर जे. मल्होत्रा, श्यामलाल सर्राफ, समाजवादी एचवी कामथ, भाकपा के सरजू पांडेय और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद शामिल थे।

देश को लगा कि देर-सवेर इसकी विदाई हो जानी चाहिए।

हम अनुच्छेद 370 को समाप्त कर सकते हैं: गुलजारी लाल नंदा

तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने इस पर कहा था कि ‘अनुच्छेद 370, निहित प्रावधानों के बिना सिर्फ एक खोखला आवरण मात्र बचा है। इसमें अब कुछ भी नहीं रह गया है। हम इसे एक दिन में या 10 दिन में या फिर 10 महीने में समाप्त कर सकते हैं। यह पूरी तरह हम पर निर्भर करता है।’

अनुच्छेद 370 विकास में बाधक था

मौजूदा सरकार और संसद अब इस फैसले पर पहुंची कि इस निरर्थक प्रावधान की कोई जरूरत नहीं रही। इसीलिए इसे समाप्त कर दिया गया। यह राज्य के लोगों के जीवन सुधार में एक बड़ा अवरोध बना हुआ था। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में उल्लेख भी किया कि देशवासियों को मालूम होना चाहिए कि केंद्र के वे कौन से लोक कल्याणकारी कानून थे जो अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो रहे थे।

अब केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू होंगे

इसके हटने से कुल 106 केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू हो सकेंगे। इस कड़ी में वहां भ्रष्टाचार निरोधक कानून, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, शिक्षा का अधिकार कानून, 72वें और 73वें संविधान संशोधन के तहत स्थानीय निकायों के सशक्तीकरण से संबंधित कानूनों के प्रवर्तन की राह भी खुलेगी। इसी तरह अनुच्छेद 35 ए की समाप्ति से जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के साथ दशकों से हो रहे भेदभावपूर्ण अन्याय का अंत हो गया है। भले ही उन्होंने राज्य से बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह किया हो, लेकिन उन्हें अब संपत्ति सहित अपने अन्य अधिकारों से हाथ नहीं धोना पडे़गा।

अनुच्छेद 370 को समाप्त करना सही कदम है

मेरी दृष्टि में अनुच्छेद 370 को समाप्त करना भारत की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण रखने की दिशा में एक सही कदम है। जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग था और हमेशा रहेगा। ऐसे में इससे जुड़ा कोई भी निर्णय हमारा नितांत आंतरिक मामला है। इसमें किसी बाहरी पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होगा। इस मामले में देसी-विदेशी मीडिया के एक वर्ग द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार के प्रति सजग रहना होगा।

अब जम्मू-कश्मीर का पूर्ण एकीकरण संभव हुआ

अब जम्मू-कश्मीर का पूर्ण एकीकरण संभव हुआ है। संभवत: पंडित नेहरू स्वयं भी यही चाहते थे। यह एक सुधारवादी कदम है जिसका समय आ चुका था। जो आलोचक इसकी संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रश्न उठा रहे हैं तो वे यह जान लें कि यह व्यापक चर्चा के बाद राज्यसभा में दो तिहाई और लोकसभा में 4/5 बहुमत से पारित हुआ है। मुझे विश्वास है कि यह एकीकरण लद्दाख सहित जम्मू और कश्मीर के कई वर्गों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा। लद्दाख के सांसद जम्यांग शेरिंग नमग्याल का इस संदर्भ में लोकसभा में भाषण खासा उल्लेखनीय था जिसमें उन्होंने कहा कि लद्दाख मात्र एक भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि भारत की बेशकीमती मणि है।

हालात सुधरने के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होगा

मुझे भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर में हालात सुधरने के बाद उसका पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा। अनुच्छेद 370 को हटाना वास्तव में एक साहसी और ऐतिहासिक कदम है जो देश के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा, प्रगति और व्यवसाय के समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित करने के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीने का अवसर देता है। इससे राज्य में तमाम क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश होगा। स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता के साथ जवाबदेही भी बढ़ेगी।

देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने वाला कदम

देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने वाला यह कदम विकास में अपेक्षाकृत रूप से पिछड़ गए राज्य में नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा। वास्तव में यह स्थानीय नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में पहला कदम है।

( लेखक भारत के उपराष्ट्रपति हैं )