[एम वेंकैया नायडू]। योग मूल रूप से एक आध्यात्मिक विज्ञान है। साथ ही यह इंद्रियों, शरीर एवं मस्तिष्क पर नियंत्रण रखने की कला भी है। योग आपकी आंतरिक शक्तियों में समन्वय करता है, एकाग्रता बढ़ाता है और आत्मिक शक्ति को जागृत करता है। इससे मानवता का प्रसार होता है। कुल मिलाकर यह एक ऐसा अनमोल खजाना है जिसका सभी को लाभ उठाना चाहिए। भारतीय दर्शनशास्त्र में छह दर्शन समाहित हैं जिनमें से एक योग भी है। भगवत गीता के प्रत्येक अध्याय को ही योग की संज्ञा दी जाती है। माना जाता है कि अभ्यास एवं त्याग से ही कोई व्यक्ति अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण कर सकता है। अभ्यास का अर्थ यह समझना है कि क्या आवश्यक है और त्याग का अर्थ है कि क्या आवश्यक नहीं है। आज मनोवैज्ञानिक जो नुस्खे बताते हैं उन्हें सदियों पहले हमारे ऋषि- मुनि आजमा चुके थे।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर भारतीय इस समृद्ध विरासत से पूरी दुनिया का फिर साक्षात्कार करा रहे हैं। इस दौर में युवा तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनसे वास्तव में बचा जा सकता है। मोटापे से लेकर अवसाद जैसी तमाम समस्याएं उन्हें परेशान कर रही हैं। ऐसा मुख्य रूप से आधुनिक जीवनशैली की वजह से हो रहा है जिसमें आत्मनियंत्रण, आत्मविश्वास की कमी के साथ ही तन और मन में कोई मेल नहीं दिखता। लगातार बढ़ते दबाव, बिगड़ती जीवनशैली और खानपान की बदलती आदतों के चलते युवा तमाम शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों से जूझ रहे हैं।

दीर्घावधि में यह कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की वजह भी बन सकता है। यह बहुत चिंताजनक है कि इन दिनों कम उम्र में भी तमाम युवा कई गंभीर व्याधियों के शिकार हो रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने योग के रूप में इसका आसान एवं कारगर हल तलाशा। यही योग का विज्ञान है। यह प्राचीन 64 कलाओं में से भी एक है। तमाम बड़ी शख्सियतों ने योग में महारत हासिल करके अपने-अपने क्षेत्रों में अहम उपलब्धियां हासिल की हैं। ऐसे समय में जब सभी ने यह सोचा कि योग जैसी विशिष्ट कला अब विलुप्ति के कगार पर है तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को योग के विराट रूप से अवगत कराया। यह संयुक्त राष्ट्र में उनका प्रेरक भाषण ही था जिसने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की आधारशिला रखी। देश के लिए वह ऐतिहासिक अवसर था।

स्वस्थ एवं खुशहाल जिंदगी के लिए आज पूरी दुनिया ने योग के पथ का अनुसरण किया है। यहां तक कि जो लोग योग की महत्ता से परिचित नहीं थे वे भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन के बाद से इसे अपना रहे हैं। ऐसे में भारत के युवाओं के लिए भी यह बेहद जरूरी हो जाता है कि वे योग का अभ्यास शुरू करें। ‘चित्तवृत्ति निरोध’ पतंजलि के योगशास्त्र का पहला सिद्धांत है, जिसमें योग की विशेषताओं का उल्लेख है। इसका आशय मस्तिष्क नियंत्रण के साथ व्यवहार को संचालित करना है।

शरीर और आत्मा में आदर्श साम्य स्थापित करना ही वास्तव में योग का मूल उद्देश्य है। प्रत्येक मनुष्य के भीतर इंद्रियों और मस्तिष्क के साथ ज्ञान एवं दंभ जैसे भाव विद्यमान होते हैं। किसी व्यक्ति का व्यवहार उसके मस्तिष्क से संचालित होता है। जब मस्तिष्क शांति चाहता है तो इंद्रियां विचलित करती हैं और मस्तिष्क पर हावी होकर व्यक्ति की दिशा बदल देती हैं। यदि आप इन भावों पर नियंत्रण करे लें तो मस्तिष्क स्वत: ही शांत हो जाता है। तमाम लोग इससे परिचित नहीं हैं और वे अनावश्यक रूप से तनाव के शिकार हो जाते हैं, जो तमाम परेशानियों की वजह बनता है। ऐसे में हमें अपनी खुराक, बातों, काम, मस्तिष्क एवं शरीर पर नियंत्रण की दरकार है। योग इन सभी में हमारी मदद करता है। यही हमें स्वयं से एकाकार कराकर सही राह दिखाता है।

भारतीय ऋषियों ने योग के तमाम तरीके बताए। इन्हीं में से एक आसन की विधि है। यह बहुत आसान है जिसे अपनाकर वजन और गुस्से को काबू में करने के साथ ही पाचन तंत्र को सुधारने के साथ-साथ एकाग्रता को भी बेहतर किया जा सकता है। प्राचीनकाल में लोग युवावस्था से ही योग करते थे। हमने सैकड़ों वर्षों के अंग्रेजी शासन से संघर्ष के बाद आजादी हासिल की। लेकिन इस दौरान हम योग जैसी अपनी अमूल्य संपदा को भुलाने के साथ ही आत्मसम्मान एवं आत्मविश्वास भी खो बैठे।

यह देखकर सुकून मिलता है कि देशवासी अब योग की परंपरा को पुनर्जीवित कर अपनी सेहत को दुरुस्त कर रहे हैं। केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि तमाम विदेशी भी योग के गुर सीखने को तवज्जो दे रहे हैं। मुझे तब बहुत गर्व होता है जब मैं तमाम विदेशियों से उनके देश में योग की परवान चढ़ती मुहिम के बारे में सुनता हूं। हाल में दक्षिण अमेरिकी दौरे पर पेरू की राजधानी लीमा में मुझे तब सुखद आश्चर्य हुआ जब वहां पर्यटकों को लुभाने के लिए योग प्रशिक्षण केंद्रों के तमाम बोर्ड दिखे। इससे भी खुशी मिलती है कि तमाम राष्ट्राध्यक्षों ने भी अपने-अपने देशों में योग को प्रोत्साहन देने का बीड़ा उठाया हुआ है।

बीते दिनों मैं स्वामी सच्चिदानंद के बुलावे पर अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलन में शामिल होने के लिए हरिद्वार गया। वहां आयोजकों ने मुझे विभिन्न देशों में अपनाई जा रही योग की विधियों के बारे में बताया। यह जानकर मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था कि लोग कितनी गहराई में जाकर योग को अपना रहे हैं। इस अनमोल देन के लिए दुनिया जहां भारत की शुक्रगुजार होगी वहीं इससे पीड़ा भी पहुंचती है कि अपने देश में कुछ लोग बेवजह योग की लोचना करते हैं।

अगर किसी भी संस्कृति की बेहतर परंपराओं से मानवता का भला हो रहा हो तो उन्हें अपनाने में कोई बुराई नहीं। योग से तो बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए जो लोगों की सेहत संवार रहा है। योग को किसी आस्था या पंथ से जोड़ना व्यर्थ है। योग में कहीं भी धार्मिक आस्था आड़े नहीं आती। वास्तव में यह तो सेहत का विज्ञान है। जिस तरह एक डॉक्टर मरीजों की धार्मिक आस्था के आधार पर उनमें भेद नहीं करता उसी तरह योग को इससे मतलब नहीं कि कोई किस पंथ, मजहब का है। योग का विज्ञान सभी के लिए है और इसीलिए यह सभी को स्वीकार्य है, भले ही उसकी धार्मिक आस्था कुछ भी हो।

यह समाज के सभी वर्गों के लिए है और इसका उपयोग हर समय किया जा सकता है। स्वस्थ जीवन के लिए योग की राह सबसे उत्तम है। इसमें कोई पैसा खर्च नहीं होता। आवश्यकता है तो केवल इच्छाशक्ति, अभ्यास और विचारों की स्पष्टता की। समय बिताने के लिए भी योग किया जा सकता है, लेकिन लगन से किया योग अधिक लाभ देता है। यह दिनचर्या का अंग बनना चाहिए।

योग को स्कूली पाठ्यक्रम और एनसीसी की गतिविधि का हिस्सा भी बनाया जाना चाहिए। मेरा सुझाव है कि सभी शैक्षिक संस्थानों में योग के लिए अलग से एक पीरियड तय किया जाए। योग को बढ़ावा देने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग और पतंजलि पीठम जैसी विभिन्न आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रयास सराहना के हकदार हैं। कैंसर, हृदयाघात और मधुमेह जैसी बीमारियों से बचने और सेहतमंद जीवन के लिए सभी को योग सीखना और करना चाहिए। इसके माध्यम से हम प्रदूषण की चुनौती का भी सामना कर सकते हैं। योग व्यक्ति को फुर्तीला और चैतन्य तो बनाता ही है, वह बेहतर मनुष्य के निर्माण का सशक्त माध्यम भी है।

(लेखक भारत के उपराष्ट्रपति हैं)