[ अमिताभ कांत ]: कारोबारी मोर्चे पर छोटे एवं मझोले उद्योगों के प्रदर्शन और इससे संबंधित 10 पैमानों के आधार पर विश्व बैंक हर साल ईज ऑफ डुइंग बिजनेस यानी कारोबारी सुगमता रिपोर्ट जारी करता है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्ष्य रखा था कि देश को कारोबारी सुगमता की सूची वाले शीर्ष 50 देशों में शामिल कराना है। तब भारत 189 देशों की सूची में 142वें स्थान पर था। ब्रिक्स देशों में वह अंतिम पायदान पर तो आठ दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में छठे स्थान पर था। विश्व बैंक की 2019 की इस सूची में भारत 77वें स्थान पर है। दक्षिण एशियाई देशों में उसे सबसे ऊंची रैंकिंग मिली है। पिछले तीन वर्षों में भारत ने इसमें 65 पायदान की छलांग लगाई है। भारत के आकार और जटिलता वाले कुछ ही देशों को ऐसी सफलता मिली है।

इस सूचकांक में सुधार ‘मेक इन इंडिया’ के लिए इसलिए बेहद महत्वपूर्ण, क्योंकि व्यापार के लिए माहौल बनाने में धारणा का अहम योगदान होता है। इसके लिए लागू किए गए सुधार दर्शाते हैं कि हमने व्यापार के लिए स्वयं को खोला है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में शीर्ष सुधारकों को दर्शाया गया है और निजी क्षेत्र के जानकारों की प्रतिक्रिया से ही रैंकिंग तैयार हुई है। आज देश बिजली, छोटे निवेशकों के संरक्षण और ऋण सुविधा के पैमाने पर शीर्ष 25 देशों में शामिल हो गया है। इसी तरह निर्माण परमिट और विदेशी व्यापार के मामले में चोटी के 80 देशों में से एक है। यह बड़ी उपलब्धि रातोंरात हासिल नहीं हुई है। इसके पीछे कई एजेंसियों की चार वर्षों की कड़ी मेहनत है जिससे ऐसा सुधारवादी माहौल बना है।

कारोबारी सुगमता सूचकांक में उछाल केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के विभिन्न विभागों के सतत प्रयासों का परिणाम है। सुधार की मानसिकता और दृष्टि में परिवर्तन से हमें यह सफलता हासिल हुई है। यह इसलिए और भी महत्वपूर्ण है कि इससे हम और सुधारवादी कदम उठाने के लिए प्रेरित होंगे। भावी सुधार इस बात पर निर्भर करेंगे कि हम उन संकेतकों में सुधार कर पाते हैं या नहीं जिनमें हम अब भी पिछड़े हैं।

कारोबारी सुगमता के सभी संकेतकों में से संविदा प्रवर्तन और संपत्ति पंजीकरण में सुधार सबसे जटिल हैं। फिर भी कुछ प्रयास हुए हैं। जैसे-केंद्र सरकार ने कॉमर्शियल यानी वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग और वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग अधिनियम, 2015 में संशोधन किया है। इसी तरह दिल्ली और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण और पंजीकरण तथा म्यूटेशन का ऑनलाइन समाधान तैयार करने में भारी निवेश किया है। ये सभी प्रयास सही दिशा में केवल पहले कदम के तौर पर हैं।

डूइंग बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार वाणिज्यिक विवाद सुलझाने में औसतन चार से अधिक वर्ष लगते हैं। संपत्ति का स्वामित्व खोजने और नए मालिक के नाम पर संपत्ति को म्यूटेट करने में भी हफ्तों लग जाते हैं। इनमें लगने वाला समय ही स्वयं बताता है कि हम इनमें क्यों पिछड़े हुए हैं। इससे निपटने के लिए नई तकनीक और प्रौद्योगिकी अहम भूमिका निभा सकती है। भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से सार्वजनिक पहुंच में सुधार हो सकता है और ई कोर्ट प्रबंधन प्रणालियों को शुरू करने से ऑटोमेशन के माध्यम से कुछ हद तक प्रक्रियाएं सुचारू हो सकती हैं।

वाणिज्यिक न्यायालय विवाद समाधान को तब तक तेजी नहीं दे सकते जब तक न्यायाधीशों को व्यावसायिक मामलों में प्रशिक्षित न किया जाए। साथ ही उन्हें अदालतें और सहायक कर्मचारी एवं संसाधन भी उपलब्ध कराने होंगे, क्योंकि वास्तव में उन्हें एक तीव्र विवाद समाधान तंत्र प्रदान करने हेतु इनकी आवश्यकता होती है। मौजूदा न्यायाधीशों को वाणिज्यिक विवादों पर ध्यान केंद्रित करने का कार्य सौंपना तब तक उपयोगी नहीं होगा जब तक वे विशेष रूप से वाणिज्यिक विवादों के प्रति समर्पित नहीं होते।

भूमि अभिलेख डिजिटलीकरण उपयोगी अवश्य हैं, लेकिन वे अपने आप में प्रभावी नहीं हैं। एक भूमि खरीदार भूमि अभिलेख, अदालत के रिकॉर्ड, संपत्ति कर रिकॉर्ड आदि की जांच करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह जो जमीन खरीद रहा है वह विवादित न हो। यह जानकारी विभिन्न एजेंसियों में डिजिटलीकरण के विभिन्न चरणों में उपलब्ध होती है।

इसके बजाय हमें इन सभी डाटा को उपयोग करने योग्य, खोजने योग्य प्रारूप में एकीकृत करने के लिए एक ऐसी संरचना में भारी निवेश करना होगा जो उपयोगकर्ताओं को एक इंटरफेस के माध्यम से तेजी से विवादों का पता लगाने की सुविधा देती हो। इसके साथ ही हमें प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से नामांतरण प्रक्रिया में तेजी के लिए तहसीलदारों और भूमि अभिलेख प्रबंधन कार्यालयों के कामकाज का संवर्धन करने के लिए सिस्टम में निवेश करना होगा। ध्यान रहे कि अभी न्यायपालिका और सरकार के सभी स्तरों के बीच समेकित और समर्पित कार्रवाई की आवश्यकता है। इसमें समय लगेगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी आवश्यकता होगी। हम केवल इन्हीं संकेतकों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हैं। सुगम व्यवसाय संबंधी रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में भी सुधार की प्रक्रिया जारी है। इसलिए हमें उन संकेतकों पर भी तेजी से काम करने का भी प्रयास करना चाहिए जहां हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं ताकि हम अपनी वर्तमान रैंकिंग को कायम रख सकें।

पिछले तीन वर्षों में हमने जो सीखा है वह यह है कि भारत में आमूलचूल बदलाव लाना तब संभव है जब हम उसके लिए पूरे मनोयोग से कार्य करते हैं। जब हमने इन प्रयासों को शुरू किया तो कुछ लोग ही इनकी सफलता को लेकर आश्वस्त थे कि विश्व बैंक की सूची में भारत की स्थिति में सुधार हो सकता है। हम न केवल 65 पायदान ऊपर चढ़े हैं, बल्कि हमने अपने राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा की है। भारत ने सुशासन की ओर कदम बढ़ाए हैं। अच्छी नीतियां बन रही हैं और अच्छी राजनीति हो रही है। कारोबारी सुगमता को लेकर शीर्ष देशों में स्थान बनाने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें आवश्यक सुधारों को लागू करने के लिए उनमें और गति लाने और इसी भावना से कार्य करते रहने की आवश्यकता है। हालांकि आज हम अपनी उपलब्धियों का जश्न मना रहे हैं, लेकिन कल से हमें भारत में व्यापार विवादों और भूमि प्रबंधन से निपटने के तरीके को सुधारने, बेहतर प्रदर्शन करने के लिए स्वयं को समर्पित करना होगा।

[ लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं ]