[ निरंकार सिंह ]: आज गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाशोत्सव मनाया जा रहा है। वैसे उनका जन्म 15 अप्रैल, 1449 को हुआ था, लेकिन श्रद्धालु उनका जन्मोत्सव कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाते हैं। इस उपलक्ष्य में अभी हाल में भारत-पाकिस्तान ने उस करतारपुर साहिब को एक गलियारे से जोड़ा है जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का अंतिम समय बिताया था। इस गलियारे का आनन-फानन निर्माण होना गुरु नानक देव जी की महत्ता को स्थापित करता है। यदि कटुता भरे संबंधों के बाद भी भारत और पाकिस्तान इस गलियारे के लिए तैयार हुए तो यह गुरुनानक देव जी का ही प्रताप है।

गुरुनानक देव ने दुनिया को सत्य और सतनाम का पाठ पढ़ाया

गुरुनानक देव की गिनती उन महान संतों में होती है जिन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया को सत्य और सतनाम का पाठ पढ़ाया। उन्होंने मानव को सत्य का मार्ग दिखाया। सभी को सद्भाव के साथ रहने का संदेश दिया। वह महान समाज सुधारक थे। उन्होंने छुआछूत, अंधविश्वास और पाखंडों पर जोरदार प्रहार किया तो परोपकार, प्रेम और सहयोग का महत्व भी समझाया। वह हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने कहा था कि सबका ईश्वर एक है। उन्होंने तमाम स्थलों का भ्रमण कर लोगों को मानवीय गुणों से ओतप्रोत किया। इस कड़ी में सबसे पहले वह ऐमनाबाद गए। वहां से दिल्ली, गया, काशी, हरिद्वार और जगन्नाथपुरी के अलावा अन्य अनेक स्थानों पर गए।

संसार के सारे कार्य परमपिता की मर्जी से होते हैं

इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत का रुख किया और रामेश्वरम, अर्बुदगिरि, लंका आदि स्थानों का दौरा कर अपने धर्म का प्रचार किया। दक्षिण प्रवास से वापसी के बाद उन्होंने गढ़वाल, हेमकूट, टिहरी, सरमौर, गोरखपुर, सिक्किम, भूटान और तिब्बत आदि की यात्रा की और वहां अपने उपदेशों का प्रचार किया। चौथी और अंतिम यात्रा में वह बलूचिस्तान से होते हुए मक्का तक गए। इस यात्रा में उन्होंने ईरान, कंधार, काबुल और बगदाद आदि में उपदेश दिए। उन्होंने बताया कि संसार के सारे कार्य उसी एक परमपिता की मर्जी से होते हैं। इसलिए लड़ाई-झगड़े और छोटे-बड़े का भेद मिटाकर सच्चे हृदय से ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।

गुरु नानक जी ने सभी धर्मों के पवित्र तीर्थों की यात्रा की थी

उनकी शिक्षा थी कि जो व्यक्ति दया, नम्रता, प्रेम और सत्य में रमा रहता है वही इस जीवन में सुख पाता है। गुरु नानक जी ने हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध और जैन आदि सभी धर्मों के पवित्र तीर्थों की यात्रा की थी। सभी जगह उन्होंने ‘सत्यकर्ता’ यानी ईश्वर को स्मरण रखने का उपदेश दिया और सभी धर्मों के अनुयायियों को समान रूप से प्रभावित किया। इसीलिए सभी धर्मों के लोग उनका समान रूप से आदर करते थे। उनमें से तमाम उनके शिष्य बन गए थे। उनका सबसे महत्वपूर्ण उपदेश यही है कि यदि कोई यह जानना चाहता है कि सत्य क्या है तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह अपने हृदय के भीतर प्रवेश करे। परमात्मा ऊपर आसमान में नहीं है। न वह सितारों में है। न वह समुद्र में है। वह मानव के अंत:करण में है। उस मानव के जो सच्चे अर्थो में धार्मिक है, जो परमात्मा को स्वयं में समाहित मानता है और जिसने अपने अस्तित्व का अर्थ समझा है।

गुरु नानक देव की वाणी- नाम में कोई अंतर नहीं है

हमारे देश में ऐसे ही लोगों को धार्मिक कहा गया है न कि ऐसे लोगों को जो जाप करते हैं या मंदिरों में जाते हैं। संभव है कि ऐसे लोग ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में हों, परंतु जिसने ईश्वर को पाया है, वह ऐसा व्यक्ति होगा जिसने ईश्वर को अपने अंत:करण में देखा है। हमें गुरु नानक देव की इस वाणी को स्वीकार करना होगा कि नाम में कोई अंतर नहीं है और विभिन्न मार्गों से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जिस व्यक्ति ने ईश्वर को देखा है वही सचमुच धार्मिक है न कि वे लोग जो बातें तो ईश्वर की करते हैं, परंतु व्यवहार में नास्तिक हैं।

गुरु नानक देव ने दिया सतनाम और सदाचार का सार्थक उपदेश

जो व्यक्ति वास्तव में धार्मिक है वह कभी ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिसकी आत्मा उसकी गवाही न दे या जो किसी भी रूप में अपवित्र है। ऐसे समय में जब हम संसार की वास्तविकताओं को भूल रहे थे, तब गुरुनानक जी ने हमारा ध्यान इस ओर दिलाया कि कोई वस्तु है जो पवित्र है, जो परिवर्तनशील है, कालातीत है, जो सभी कालों में विद्यमान है। उन्होंने हमें उस मूल से परिचित कराया जिससे तराशकर हमें बनाया गया है। उन्होंने सतनाम और सदाचार का सार्थक उपदेश दिया।

संत मानवीय दुखों के प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण रखते हैं

अधिकांश व्यक्ति सोचते हैं कि संतों के जीवन में कुछ कठोरता और उदासीनता होती है। यह सत्य नहीं है। जो परमात्मा से साक्षात्कार करते हैं वे समाज के दुख या विफलताओं के प्रति कठोर दृष्टिकोण नहीं रखते। वे तो मानवीय दुखों के प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण रखते हैं। वे उन दुखों को पूरी तरह समझते हैं। संत जीवन गैर-सांसारिक नहीं है। यह मन की एक स्थिति है, एक ऐसा दृष्टिकोण है जिससे हम संसार की सभी वस्तुओं को देखते हैं। नानक जी के अनुसार सबसे बड़े पैगंबर वे हैं जो भूखों को भोजन कराते हैं। बीमारों का उपचार कराते हैं। पापियों को क्षमा करते हैं।

गुरुनानक देव ने कहा-  हम सभी एक ही खोज में शामिल तीर्थयात्री हैं

उन्होंने अपने समय में हिंदुओं और मुसलमानों में तमाम विरोध देखे। वह प्रश्न करते थे कि तुम रूपों को लेकर, समारोहों को लेकर, सिद्धांतों को लेकर और तीर्थों आदि को लेकर आपस में क्यों झगड़ते हो? यह व्यर्थ है , क्योंकि हम सभी उस एक ही सर्वशक्तिमान की पूजा कर रहे हैं। हम सभी एक ही खोज में शामिल तीर्थयात्री हैं। हम सभी जानना चाहते हैं कि परमात्मा कहां हैं? हम उस तक कैसे पहुंच सकते हैं?

नानक जी के उपदेशों की आज भी आवश्यकता है

नानक जी के उपदेशों की आज भी उतनी ही आवश्यकता है, क्योंकि अभी भी हम सही अर्थों में धार्मिक नहीं हो सके हैं। हमने अपने अंत:करण को नहीं समझा और उस सर्वशक्तिमान को नहीं देखा जो वहां विद्यमान है। गुरुनानक देव की शिक्षाओं में केवल सैद्धांतिक रूप से विश्वास करना पर्याप्त नहीं। हमें उन्हें अपने जीवन में उतारना होगा। उनका स्मरण करते हुए हमें यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि वह आडंबरों के प्रबल विरोधी थे। वह कहते थे कि मनुष्य रूप में जन्म लेकर जो परोपकार नहीं करता, उसका जीवन व्यर्थ हैैैं।

( लेखक विश्व हिंदी कोष से संबद्ध रहे हैैं )