[ निधि प्रभा तिवारी ]: मोदी सरकार की उन योजनाओं या कार्यक्रमों का जिक्र किया जाए जिनका लाभ सीधे जनता के निचले तबके तक पहुंचा है तो निश्चित ही उज्ज्वला योजना इस सूची में शीर्ष पर रहेगी। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) ने मई महीने में दो साल पूरे कर लिए। उज्ज्वला के तहत अब पांच करोड़ से ऊपर कनेक्शन दिए जा चुके हैं। और महत्वपूर्ण बात यह है कि इनका इस्तेमाल भी हो रहा है। यह कनेक्शन लेने वाले उज्ज्वला ग्राहकों के रिफिल आंकड़ों से स्पष्ट हो रहा है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि सरकार ने ऐसे ग्राहकों से निरंतर संवाद की प्रक्रिया शुरू की है।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्ज्वला के माध्यम से रसोई गैस से जुड़ी गांव की महिलाओं के साथ प्रधानमंत्री एलपीजी पंचायत मंच की शुरुआत की है। यह मंच गांव की महिलाओं में स्वच्छ ईंधन के महत्व का प्रसार करने की एक सफल कोशिश में तब्दील होता जा रहा है। जो महिलाएं पूरी तरह से या काफी हद तक लकड़ी के चूल्हे से गैस के चूल्हे पर आ चुकी हैैं, वे इस पंचायत में अपने अनुभव बताती हैैं और जीवन में नया क्या संभव हुआ है, अन्य महिलाओं के साथ साझा करती हैं।

प्रत्येक बैठक में महिलाएं एलपीजी और अन्य वैकल्पिक ईंधन मुख्यत: लकड़ी पर होने वाले खर्च की तुलना करती हैं। जब महिलाएं लकड़ी इकट्ठा करने में लगने वाले श्रम की कीमत भी जोड़ती हैं तो एलपीजी पर होने वाला मासिक खर्चा या तो लकड़ी की तुलना में कम या उसके बराबर होता है। उदाहरणस्वरूप जून में उत्तर प्रदेश के विंध्याचल इलाके में मिर्जापुर में हुई एक एलपीजी पंचायत में एक महिला ने बताया कि पांच सदस्यों के परिवार के लिए दो समय भोजन पकाने में चालीस उपले लगते थे। बाजार से खरीदने पर इनकी कीमत बीस रुपये पड़ती थी। उपले के साथ लकड़ी या फसल का अवशिष्ट भी इस्तेमाल होता था, लेकिन केवल उपलों पर मासिक खर्च लगभग 600 रुपये आता था। गैस का एक सिलिंडर इन महिलाओं के घरों में 45 दिन से 60 दिन तक चलता है तो गैस पर मासिक खर्च 400-500 के बीच पड़ता है। गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को निकाल कर देखें तो यह खर्च 250-300 रुपये के बीच बैठता है।

10 जून, 2018 तक आयोजित की गईं 18,930 एलपीजी पंचायत बैठकों में महिलाओं ने सिलिंडर रिफिल में आ रही बाधाओं पर भी चर्चा की। 31 प्रतिशत महिलाओं के मुताबिक इसमें सबसे बड़ी बाधा बायोमास या जैविक ईंधन की आसानी से उपलब्धता है, जबकि 17 प्रतिशत महिलाओं ने एलपीजी से डर की बात की। 31 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि गैस किफायती नहीं लगती, जबकि 11 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें रिफिल बुक करना नहीं आता और 10 प्रतिशत महिलाओं ने डिलिवरी से जुड़ी हुई समस्याओं को मुख्य बाधा बताया। इन आंकड़ों के आधार पर गैस उपयोग में अग्रणी महिलाओं के विजन को साझा करके और सेवा से जुड़े मुद्दों को हल करके एलपीजी पंचायत बैठकों में एलपीजी का उपयोग बढ़ाने के लिए महिलाओं को प्रेरित किया जा रहा है।

इस सबके बावजूद देश के दूरदराज के इलाकों में इतनी बड़ी संख्या में कनेक्शन पहुंचाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसमें यह और भी हर्ष की बात है कि उज्ज्वला के माध्यम से गैस से जुड़े ग्राहक रिफिल भी भरा रहे हैं। माना जा सकता है कि साल में चार या उससे ज्यादा रिफिल भरवाने वाले ग्राहकों की अच्छी संख्या होगी। इंडियन ऑयल ने आधे से अधिक उज्ज्वला कनेक्शन दिए हैं।

आंकड़ों के अनुसार मई 2016 से अप्रैल 2017 तक इंडियन आयल ने 85.45 लाख ग्राहक जोड़े। मई 2016 से अप्रैल 2018 तक इन ग्राहकों का औसत उपभोग 4.4 सिलिंडरों का है। इसमें कनेक्शन के समय मिला पहला सिलिंडर भी शामिल है। मई 2016 से जुड़े हर पांच में से एक ग्राहक सालाना सात सिलिंडर इस्तेमाल करता है। उपयोग की यह दर 2017-18 के राष्ट्रीय औसत 6.8 सिलिंडर के समकक्ष है, जबकि 60 प्रतिशत ग्राहक वर्तमान में अपने आठवें सिलिंडर पर हैैं, अर्थात उनका वार्षिक उपयोग चार सिलिंडरों का है। जब हम मार्च 2017 में जुड़े ग्राहकों के रिफिल का आंकड़ा देखते हैं तो ऐसा ही रुझान देखने को मिलता है। इनमें से 20 प्रतिशत ग्राहक सात या उससे ज्यादा सिलिंडर उपयोग कर रहे हैैं और 56 प्रतिशत अपने चौथे सिलिंडर पर हैं।

मैैं देश के कई गांवों में उज्ज्वला ग्राहकों के बीच अध्ययन करती रही हूं। मैैंने देखा है कि प्रबंधन गुरुओं की तरह महिलाएं भी गैस की लागत पर नहीं, बल्कि इससे होने वाले लाभों या परिणामों पर ध्यान केंद्रित करती हैैं। वे बचे हुए समय को अधिक लाभकारी या अन्य महत्वपूर्ण कामों पर लगा रही हैैं। उत्तर प्रदेश की मुनेश कहती हैं, ‘एलपीजी न तो महंगी है, न ही सस्ती है। इसके लिए जो कीमत मैं देती हूं वह मुझे ठीक ही लगती है।’ मुनेश भैंस पालती हैैं और गोबर की खाद बेचकर इतना कमा लेती हैैं कि गैस रिफिल अपने दम पर खरीद सकें। छत्तीसगढ़ की नारायणी को अब झोले और कपडे़ सिलने का समय मिल जाता है। त्रिपुरा की रीना रुद्रपाल मूर्तियां बनाती हैं। भुवनेश्वर की कल्पना साहू अब ज्यादा घरों में खाना बनाने का काम कर पाती हैं। नगालैंड की इंदिरा पारंपरिक हथकरघे पर काम करती हैं। केरला की निशा, जो आशा वर्कर भी हैैं, ने सब्जी उगानी शुरू कर दी है। कर्नाटक

की सायराबानो दालबड़ी बनाती हैैं। इसके अलावा एलपीजी के और भी फायदे हैं। जैसे कि घर, परिवार और स्वयं के लिए ज्यादा समय मिलना, कम मेहनत और स्वास्थ्य लाभ।

दरअसल ज्यादातर उज्ज्वला ग्राहक एक मिश्रित उपयोग के दौर से गुजर रहे हैं। रिफिल पर होने वाले खर्च को परिवार की और प्राथमिकताओं के साथ तौला जाता है। अक्सर महिलाओं को ही स्वच्छ ईंधन का प्रमुख लाभार्थी माना जाता है इसलिए एलपीजी पर खर्च करना कई मायनों में एक महिला के लिए अपने ऊपर खर्च को पारिवारिक बजट में स्थान देने जैसा होता है। इन महिलाओं को गैस के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने के लिए अब सरकार ने कनेक्शन पर मिलने वाले लोन की रिकवरी में भी रियायत दी है। अप्रैल 2018 से अब लोन रिकवरी तब तक नहीं की जाएगी जब तक उज्ज्वला ग्राहक छह रिफिल न भरवा लें, इस दौरान उन्हें सब्सिडी का लाभ भी मिलेगा। माना जा रहा है कि सरकार का यह प्रयास गरीब महिलाओं के बीच एलपीजी के नियमित उपयोग को और बढ़ाएगा।

[ लेखिका पीएमयूवाई के साथ वरिष्ठ सामाजिक विशेषज्ञ के तौर पर काम करती हैैं ]