एक किला यह भी
इस बार हम आए हैं फिरोज़ शाह कोटला और हमारे साथ हैं यंग एक्सप्लोरर नीरज कौशिक।
दिल्ली में किसी को घूमना हो तो जगहों की कमी नहीं है। उसमें भी रुचि अगर इतिहास में हो तो दिल्ली से बेहतर कोई शहर हो ही नहीं सकता। वीकेंड हो या कोई और छुट्टी, घर पर बैठने से बेहतर है कि निकल लिया जाए कहीं घूमने। इस बार हम आए हैं फिरोज़ शाह कोटला और हमारे साथ हैं यंग एक्सप्लोरर नीरज कौशिक।
आईटीओ मेट्रो स्टेशन से वॉकिंग डिस्टेंस पर स्थित है यह किला। इसकी भव्यता वहां आने वाले लोगों को बेहद आकर्षित करती है। 'मुझे घूमना बहुत पसंद है इसलिए जब भी कोई मुझसे कहीं चलने को बोलता है तो मैं तुरंत तैयार हो जाता हूं। ऐसे ही आज फ्रेंड्स के साथ यहां आने का प्लैन बना लिया। मेरी आदत है कि जब भी कहीं जाता हूं तो उस जगह की फोटोज़ नेट पर देख लेता हूं जिससे कि उसे कंपेयर कर सकूं। बाद में दुख भी होता है कि अपने ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित रखने के उतने उपाय नहीं किए जा रहे हैं जितने कि किए जाने चाहिए।'
एवरी प्लेस हैज़ अ हिस्ट्री
इस किले को दिल्ली के सुलतान फिरोज़ शाह तुगलक ने बनवाया था। कोटला का मतलब ही 'किला होता है। मौर्य शासक अशोक को समर्पित प्रिस्टाइन से पॉलिश किया गया सैंडस्टोन का एक पिलर वहां की शोभा बढ़ाता है। थर्ड सेंचुरी बीसी में बना वह पिलर पंजाब से लाया गया था (जो कि अब हरियाणा में है)। कुछ शताब्दियों के बाद ही किले के ज़्यादातर स्ट्रक्चर्स और बिल्डिंग्स को डिस्ट्रॉय कर दिया गया था। ऑडिटोरियम्स की कमी होने के कारण आज़ादी से पहले इसका इस्तेमाल क्लासिकल म्यूजि़क प्रोग्राम्स को आयोजित करवाने के लिए किया जाता था। कुछ प्रोग्राम्स वहां तो कुछ कुतुब कॉम्प्लेक्स में भी रखे जाते थे।
अशोकन पिलर
किले के अंदर इस पिलर को मसजिद की उत्तर दिशा में रखा गया है। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने इसका निर्माण 273 और 236 बीसी के बीच में अंबाला में करवाया था। ऐसा ही एक पिलर मेरठ में भी बनवाया गया था पर अनदेखी के कारण उसका रखरखाव ढंग से नहीं हो सका। दोनों ही अशोकन पिलर्स को कॉटन सिल्क से रैप कर रखा गया था। 42 पहियों से अटैच्ड गाड़ी में फिरोज़ शाह ने इसको दिल्ली तक बेहद सावधानी से मंगवाया था जिससे कि उसे और नुकसान न पहुंच सके।
जामी मसजिद
यह दिल्ली की उन सबसे पुरानी मसजिदों में से एक है जहां लोग आज भी जाते हैं। लाइमस्टोन से कवर किए गए क्वॉर्टज़ाइट स्टोंस से इसको बनवाया गया था। इसके बड़े से आंगन में ही प्रेयर हॉल बना हुआ है जिसकी हालत अब बदतर हो चुकी है। उसका निर्माण राजशाही स्त्रियों के लिए करवाया गया था। मसजिद की बनावट तुगलक आर्किटेक्चर के सर्वश्रेष्ठ नमूनों में से एक है। 1398 में सुलतान तिमूर वहां गए थे और मसजिद को देख अभिभूत रह गए थे। उसके बाद ईरान वापस जाकर समरकंद में वैसी ही मसजिद का निर्माण करवाया था। जामी मसजिद में ही 1759 में सम्राट आलमगीर सानी ने अपने प्रधानमंत्री को मरवा दिया था।
संरक्षण है ज़रूरी
अपने देश के ऐतिहासिक स्थलों को सहेजने की जि़म्मेदारी भारतीय पुरातत्व विभाग के साथ ही हम सबकी भी बनती है। जिन किलों की भव्यता को इतने वर्षों से संरक्षित रखा गया है, वे आगे की जेनरेशंस के देखने लायक बचें, इसका ख्याल हम सबको रखना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है वहां जाकर वहां के स्टोन्स या स्ट्रक्चर्स से छेड़छाड़ करने की जो कि बहुत गलत है। ज़्यादातर किलों में हरियाली को विशेष महत्व दिया गया है, हर जगह गार्ड आपको टोकने के लिए हो या न हो, खुद ही पेड़-पौधों व फूलों को नुकसान पहुंचाने की आदत से बचना चाहिए।
प्रस्तुति : दीपाली पोरवाल
फोटोज़ : संजीव कुमार