नहीं टूटने दिया भरोसा
दुनिया कुछ भी कहती रहे, एक बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए उसके पापा हमेशा उसके साथ रहते हैं। इसके लिए उन्हें कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े, बेटी की सफलता के साथ ही उनकी मेहनत भी सफल हो जाती है।
बात 2003 की है। वह दिन हर सामान्य दिन की तरह था, पापा उस दिन भी तहसील के लिए निकले थे। उन्होंने उस दिन के बारे में भी यही सोचा होगा कि हर रोज की तरह काम करके समय पर घर वापस आ जाएंगे लेकिन उस दिन ऐसा नहीं हुआ। उस दिन पापा जैसे ही तहसील पहुंचे, कुछ नया हुआ था उनके साथ। कुछ खास जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी, शायद उन्होंने ऐसा कुछ सोचा भी नहीं था। पापा के पहुंचते ही सब उन्हें बधाई दे रहे थे। पापा आश्चर्यचकित रह गए कि ऐसी कौन सी खुशखबरी थी जो सबको पता थी लेकिन उन्हें नहीं। फिर जब उन्हें उस खुशखबरी के बारे में पता लगा तो उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं था और होता भी कैसे, उनका तो मानो सपना साकार हो गया था। उनकी मेहनत को सफलता जो हासिल हुई थी। उनकी बेटी ने जवाहर नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी। सिर्फ पास ही नहीं की, बल्कि पूरे ब्लॉक में उत्तीर्ण होने वाली एकमात्र छात्रा वह ही थी।
जवाहर नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा जिला स्तर पर होती है जिसमें पूरे जिले से मात्र चालीस बच्चों का चयन होता है। चयनित बच्चों की पढ़ाई, रहना और खाना सब फ्री होता है। यह परीक्षा पास करना मेरे और पापा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि जब पापा को नवोदय विद्यालय का पता लगा था और उन्होंने मेरा फॉर्म भरने का फैसला लिया था तो सबने उनके फैसले का विरोध किया था। मेरे पापा को मुझ पर भरोसा था। उन्होंने सिर्फ मेरे सपनों के बारे में सोचा था। यह मुझ पर उनका विश्वास ही था जिसने हमेशा मेरे सपनों को पंख दिए वर्ना हौसला पस्त करने वालों और 'मैं लड़की हूं, यह याद दिलाने वालों की एक लंबी कतार रिश्तेदारों के रूप में मौज़ूद थी।
जैसे ही पापा को इस खुशखबरी का पता चला, वे मिठाई के डिब्बे के साथ उसी वक्त घर आ गए थे। अपना काम कभी न छोडऩे वाले पापा को उस दिन जैसे काम की कोई परवाह नहीं थी। पापा ने हर उस इंसान का मुंह मिठाई से बंद कर दिया था जो कभी उनका मज़ाक यह कहकर बनाता था कि बड़े आए लड़की को हॉस्टल भेजने और परीक्षा पास कराने वाले, पूरे जिला स्तर की परीक्षा है, कोई चौके-चूल्हे जैसा काम नहीं। अब उनका मुंह बंद था। इन सब बातों के बीच उस दिन की सबसे खास और सकारात्मक बात थी कि जि़ंदगी में पहली बार मैंने अपने पापा को इतना खुश देखा था। वह दिन किसी त्योहार की तरह मनाया गया था मेरे घर में और मैं हॉस्टल लाइफ के हसीन सपने देखने में खो गई थी। मैं आज भी सोचती हूं कि अगर उस दिन मैंने वो परीक्षा न उत्तीर्ण की होती तो मेरी जि़ंदगी कैसी होती। शायद आज मैं दिल्ली में एक अच्छी जॉब नहीं कर रही होती। उस दिन ने मेरी दुनिया बदल दी।