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गाना सुनाने से तौबा

बेसुरा गाना सुनाकर लोगों को परेशान करने की आदत मुझमें कहां से आई थी, नहीं जानता। यह सच है कि मैं बेहद बेसुरा गाता था, पर बढि़या गायक होने का भ्रम पाले हुए था। मैं जब भी खुश होता, कुछ दोस्तों को पकड़ लेता और बिना उनकी तकलीफ की परवाह किए अपना गाना सुनाने लगता। मेरी जिद देखकर वे सीधे तौर प

By Edited By: Published: Mon, 08 Sep 2014 12:27 PM (IST)Updated: Mon, 08 Sep 2014 12:33 PM (IST)
गाना सुनाने से तौबा

बेसुरा गाना सुनाकर लोगों को परेशान करने की आदत मुझमें कहां से आई थी, नहीं जानता। यह सच है कि मैं बेहद बेसुरा गाता था, पर बढि़या गायक होने का भ्रम पाले हुए था। मैं जब भी खुश होता, कुछ दोस्तों को पकड़ लेता और बिना उनकी तकलीफ की परवाह किए अपना गाना सुनाने लगता। मेरी जिद देखकर वे सीधे तौर पर मना नहीं कर पाते थे। न चाहते हुए भी उन्हें मेरा गाना सुनना पड़ता। कई बार मैं उनके चेहरों पर बोरियत के भाव देख लेता, लेकिन इसके बावजूद गाना सुनाना ़जारी रखता। वह तो भला हो काव्या का, जिसने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर मुझे सीख देने की एक योजना बनाई। उन लोगों ने एक बार मुझे रोक कर बारी-बारी से गाना सुनाना शुरू कर दिया। मैं उनसे मिन्नतें करता रहा कि गाना सुनने की वजह से मेरी ट्रेन छूट जाएगी, पर उन लोगों ने मेरी एक न सुनी। परिणाम यह हुआ कि मेरी ट्रेन छूट गई। उस दिन मुझे दूसरों की तकलीफ का एहसास हुआ।

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(गौतम)


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