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बी कूल रहो बेफिक्र

फ्रेंड सर्कल में कोई है गिटार मास्टर तो कोई सोशल मीडिया का हीरो... ऐसे में उनसे इंप्रेस होना तो बनता है पर यदि वे ही बन जाएं वजह टेंशन की तो बड़ी मुश्किल हो सकती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Oct 2016 02:12 PM (IST)Updated: Mon, 17 Oct 2016 02:18 PM (IST)
बी कूल रहो बेफिक्र

फ्रेंड सर्कल में कोई है गिटार मास्टर तो कोई सोशल मीडिया का हीरो... ऐसे में उनसे इंप्रेस होना तो बनता है पर यदि वे ही बन जाएं वजह टेंशन की तो बड़ी मुश्किल हो सकती है। दरअसल, यही है पीयर प्रेशर की प्रॉब्लम, जिससे निपटना आसान नहीं। सीमा झा की एक रिपोर्ट...

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जब क्लासमेट अच्छा रिज़ल्ट लेकर आए या एक्स्ट्रा कैरिकुलर ऐक्टिविटीज़ में हमसे आगे निकल जाए तो खुशी तो होती है लेकिन दूसरी ओर डर भी महसूस होता है। डर यह कि अब पैरेंट्स उन्हीं दोस्तों का नाम लेकर खरी-खोटी सुनाएंगे और न चाहकर भी हमें उन्हें सुनना होगा, ऐसा कहती हैं सुमन। वह इंजीनियरिंग द्वितीय वर्ष की स्टूडेंट हैं। उनके मुताबिक, हम चाहकर भी इस प्रेशर से निकल नहीं पाते। केवल सुमन ही नहीं बल्कि हर यंगस्टर की यही कहानी है। पीयर प्रेशर यानी अपने एज गु्रप के लोगों की परफॉर्मेंस, उनके व्यक्तित्व के कारण खुद भी उनके जैसा परफॉर्म करने या बनने का दबाव। पीयर प्रेशर ऐसा अनजाना दबाव है जिसका सामना करना किसी चुनौती से कम नहीं। मनोवैज्ञानिक अनु गोयल के मुताबिक, 'केवल बेहतर अंक लाना या बढिय़ा परफॉर्मेंस देना ही नहीं, बल्कि बॉडी लैंग्वेज और अपने अपीयरेंस को लेकर हरदम सचेत रहना भी 'पीयर प्रेशर' का ही हिस्सा है। मैं कैसी लग रही हूं, सही ढंग से बात कर रही हूं कि नहीं, मेरा उच्चारण या लहज़ा बुरा तो नहीं आदि कई तरह के कॉमन सवाल हैं, जिनसे यंगस्टर्स घिरे रहते हैं। गौरतलब है कि यदि यह सवाल ज़्यादा परेशान करने लगे तो एक बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या उत्पन्न हो सकती है। हर कोई सामाजिक रूप से या अपने ग्रुप की पसंद बनना चाहता है। स्वीकार्यता चाहता है। सब चाहते हैं कि अपने फ्रेंड सर्क या सोसाइटी के सेट पैरामीटर्स में फिट हो जाएं। कोई यह नहीं चाहता कि उनकी वजह से कोई हर्ट हो या बुरा न मान जाए लेकिन केवल इसलिए खुद पर बोझ डालना सही नहीं।'
कॉम्पीटिटिव टायर्डनेस सिंड्रोम
जितनी क्षमता है, उससे अधिक पाने की क्षमता एक बेंचमार्क की तरह सेट हो चुकी है। अगर इंजीनियरिंग, मेडिकल या किसी एमएनसी में अच्छे पदों पर जॉब नहीं कर रहे हैं तो आप पिछड़े हुए हैं, यह मानसिकता आज भी जस-की तस है। कुछ उदाहरणों और अपवादों को अलग करके देखें तो स्कूल से लेकर कॉलेज के स्टूडेंट्स और जॉब करने वाले न्यूकमर्स तक 'कॉम्पीटिटिव टायर्डनेस सिंड्रोम' का शिकार हो रहे हैं।
करियर एक्सपर्ट की मानें तो यह सिंड्रोम इतना हावी है कि यूथ अपनी क्षमताओं का आकलन किए बगैर समाज द्वारा तय किए गए सफलता के पैमाने को छूने की कोशिश कर रहे हैं। सबसे ज़्यादा तनाव आईआईटी और मेडिकल एग्ज़ैम के स्टूडेंट्स में देखा जा रहा है। वर्किंग प्रोफेशनल्स में क्रिएटिव फील्ड्स, सेल्स और टेक्निकल सेक्टर में सबसे ज़्यादा तनाव है।पीयर प्रेशर के कारण वे एक्स्ट्रा कॉम्पीटिटिव होने लगे हैं। अपनी फिटनेस, अपना आराम छोड़कर हर वक्त एक अजीब तरह का दबाव उन्हें बेचैन बनाए रखता है। कई बार नर्वस ब्रेकडाउन की स्थिति भी बन जाती है। यह नहीं भूलना चाहिए कि कॉम्पीटिटिव स्पिरिट होना अच्छी बात है पर अपनी क्षमताओं को पहचानना भी उतना ही ज़रूरी है। इसके लिए चाहिए हेल्दी और कूल माइंड। तो आइए बोलें पीयर प्रेशर को बाय-बाय और ज़रा जी लें अपनी भी जिंदगी!

आत्मविश्वास से बढ़कर कुछ नही
यूथ के मन में एक अनजाना डर रहता है कि यदि उनके फ्रेंड्स आगे निकल गए तो उन्हें खरी-खोटी सुननी पड़ सकती है। आज भी नैरेंट्स या घर के बड़े-बुज़ुर्ग अपनी इस परंपरा पर नियंत्रण नहीं कर पाए हैं। यदि लगातार तुलना की जाए तो युवा पीढ़ी कंफ्यूज़ हो सकती है। अपनी अच्छी या पॉजि़टिव चीज़ों पर फोकस करने या उन पर काम करने के बजाय दूसरों के अचीवमेंट्स या उनके आगे बढऩे की कहानियों को सुनने-सुनाने में ही उनका समय जाया होता है। मुझे लगता है कि इस मुश्किल का हल और कुछ नहीं बल्कि केवल आत्मविश्वास है। वे भरोसा रखें कि उनके अंदर भी बहुत सी बातें पॉजि़टिव बातें हैं, जो उन्हें सबकी नज़र में खास बना सकती हैं। बिना किसी तनाव या दबाव के उन्हें पहचानें और आगे बढ़ते जाएं। ऐसा करने से वे सफल ज़रूर होंगे।
अनु गोयल, मनोवैज्ञानिक काउंसलर
पॉजि़टिव भी है यह प्रेशर

  • कोई मददगार है, मदद करने में आगे रहता है तो यह प्रेरणा पॉजि़टिव होती है। इसका असर भी तुरंत होता है।
  • ड्रिंक करना, स्मोक करना या किसी गलत आदत को देखते या संगति में रहकर उसे अपना भी लेते हैं लेकिन देखा गया है कि ज़्यादातर गलत संगति वाले फ्रेंड्स से दूर भागते हैं यूथ।
  • फ्रेंड सर्कल में कोई रेगुलर एक्सरसाइज़ करता है तो उसका अनुसरण करने वालों की संख्या ज़्यादा होती है। फिटनेस को लेकर अधिक सजग जो रहते हैं आज के यंगस्टर्स!
जियो चैंपियन की तरह
मैं दूसरों को देखकर कभी प्रेरित नहीं हो पाया। पीयर प्रेशर से भी कभी परेशान नहीं हुआ। जब दिल्ली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में थर्ड ईयर में था तभी लगा कि मैं अपनी हॉबी थिएटर-ऐक्टिंग को आगे बढ़ाऊं और इसलिए पढ़ाई बीच में छोड़कर निकल गया। ज़ाहिर है कि मुझे भी लोगों से सुनना पड़ा पर कोई दबाव नहीं था, बस मेरा पैशन था और खुद पर भरोसा। ऐसे ही 'पवित्र रिश्ता' की लोकप्रियता जब चरम पर थी तब मैंने फिल्मों में काम करने के लिए उसे भी बीच में छोड़ दिया। अपने करियर या अपनी लाइफ से जुड़े निर्णय खुद लिए हैं और आगे भी ऐसा ही करना चाहता हूं। देखा-सुनी या किसी की बात पर कान लगाने से अपनी एनर्जी वेस्ट होती है, इससे जल्दी तौबा कर लेना चाहिए।
सुशांत सिंह राजपूत, अभिनेता

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