रोशन है आज भी
दिल्ली की ऐतिहासिक जगहों में से इस बार हम आए हैं पुराना किला घूमने।उसके पास वॉकिंग डिस्टेंस पर स्थित चिडिय़ाघर का भ्रमण किया जा सकता है।हमारे साथ हैं यंग एक्सप्लोरर श्रुति गुप्ता।
प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन से कुछ दूरी पर स्थित यह जगह आज भी टूरिस्ट्स के आकर्षण का केंद्र है। 'मुझे घूमने का बहुत शौक है। जिस शहर भी जाती हूं, वहां के बारे में अच्छी तरह से रिसर्च कर लेती हूं और कोई भी टूरिस्ट स्पॉट मिस नहीं करती। इस किले को देखने का मन काफी पहले से था जो आज पूरा हुआ है।'
गुड टु नो इट्स हिस्ट्री
पुराने किले का निर्माण अफगान राजा शेरशाह सूरी ने शुरू करवाया था, जिसे पूरा उनके बेटे इसलाम शाह के राज में किया गया। रिसर्चर्स का कहना है कि 1913 तक इंद्रपत नाम का एक गांव इस किले के अंदर ही बसता था। पुरातत्वशास्त्रियों की मानें तो उन्हें वहां कई राजवंशों की कला की निशानियां मिली हैं। यहां का आर्किटेक्चर भी बेहद खास है। मुख्य रूप से यहां तीन गेटवे हैं- बड़ा दरवाज़ा, हुमायूं गेट और तलाकी गेट। दो-मंजि़ले ये दरवाज़े सैंडस्टोन से बने हैं। इन पर व्हाइट एंड कलर्ड मार्बल और ब्लू टाइल्स की सजावट भी है।
किला-ए-कुहना-मस्जिद
इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने 1541 में करवाया था। मस्जिद के नाम का मतलब 'पुराने किले की मस्जिद' है। इसका उपयोग एक सामुदायिक मस्जिद के तौर पर किया जाता था। इसमें काले-सफेद संगमरमर और लाल-पीले बलुआ पत्थर का जड़ाऊ काम किया गया है।
हरा-भरा है जहां यह
इस भव्य किले को यहां के हरे-भरे बगीचे भी दर्शनीय बनाते हैं। यहां की प्राकृतिक आबोहवा व लहलहाते पेड़-पौधे मन को शांत कर देते हैं। कैंटीन न होने से लोग बाहर से ही खाने-पीने के सामान का प्रबंध करते हैं। खाने-पीने व एंजॉय करने में बुराई नहीं है पर इस बात का खयाल रखना चाहिए कि उसकी वजह से वहां गंदगी न फैले। प्रकृति का ध्यान रखने पर ही प्रकृति भी हमारी रक्षा करेगी।
प्रस्तुति : दीपाली पोरवाल
फोटोज़ : संजीव कुमार