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किसमें कितना है दम

माना जाता है कि लड़कियां ज्य़ादा शॉपिंग करती हैं। इस फेस्टिव सीज़न यह जानना तो बनता ही है कि यंगस्टर्स में शॉपिंग के लिए कौन ज्य़ादा क्रेज़ी होता है। दिल्ली के कुछ युवा हमें बताएंगे कि बॉयज़ और गल्र्स में से कौन बनेगा शॉपिंग का सिकंदर।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2015 02:18 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2015 02:20 PM (IST)
किसमें कितना है दम

माना जाता है कि लड़कियां ज्य़ादा शॉपिंग करती हैं। इस फेस्टिव सीज़न यह जानना तो बनता ही है कि यंगस्टर्स में शॉपिंग के लिए कौन ज्य़ादा क्रेज़ी होता है। दिल्ली के कुछ युवा हमें बताएंगे कि बॉयज़ और गल्र्स में से कौन बनेगा शॉपिंग का सिकंदर।

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दीवानी हूं शॉपिंग की

मेरे हिसाब से तो गल्र्स ही ज्य़ादा शॉपर्स होती हैं। मैं ख़्ाुद ही एक महीने में तीन-चार बार शॉपिंग के लिए जाती हूं। हाईस्कूूल से ही मैं अकेले शॉपिंग करने लगी थी। महीने में 8-9000 रुपये ख़्ार्च हो जाते हैं, क्योंकि फेमिली मेंबर्स के लिए भी जो पसंद आ जाता है, ले लेती हूं। मेरे फ्रेंड सर्कल में जो बॉयज़ हैं, मैंने उनमें शॉपिंग के लिए इतना के्रज़ नहीं देखा है।

माइंड फ्रेश करती है शॉपिंग

गल्र्स को हर ओकेज़न के लिए एक अलग ड्रेस चाहिए होती है। लड़के तो वही पैंट-शर्ट-जींस-कोट पहन लेते हैं। इसलिए मुझे तो गल्र्स ही शॉपिंग की मास्टर लगती हैं। मैं भी हर मंथ

4-5000 रुपये की शॉपिंग कर लेती हूं। मैं दूसरों से ज्य़ादा अपने लिए ही शॉपिंग करती हूं। मैं अपनी ड्रेसेज़ ज्य़ादा रिपीट भी नहीं कर सकती हूं। शॉपिंग से माइंड भी फ्रेश होता है।

लेना है जो भी पसंद आ जाए

यह तो बहुत ही ऑब्वियस है कि गल्र्स ही ज्य़ादा शॉपिंग करती हैं। मैं तो हफ्ते में 2-3 बार मार्केट चली जाती हूं। मैं अपने अलावा अपनी फेमिली और फ्रेंड्स के लिए भी सामान लाती हूं। मुझे जो भी पसंद आ जाता है, वो मैं ले लेती हूं। उसमें से जिसके मतलब का जो भी सामान होता है, उसे दे देती हूं। अपने लिए मैं शूज़, जींस और हैंडबैग्स ख़्ारीदती हूं। $करीब 10,000 रुपये तो ख़्ार्च हो ही जाते हैं।

अर्बन और रूरल का है फर्क

मेरा मानना है कि शहरों में दोनों में ही शॉपिंग का क्रेज़ होता है, जबकि रूरल एरियाज़ के लड़कों में अभी शॉपिंग का उतना कीड़ा नहीं है। मैं जब मार्केट जाता हूं, ख़्ाुद की ज़रूरतों का सामान लेने के साथ ही अपने छोटे भाई-बहनों के लिए भी शॉपिंग करता हूं। यह कहा जा सकता है कि लड़के ज़बर्दस्ती का सामान नहीं लेते हैं, जबकि लड़कियों को शायद जो भी पसंद आ जाता है, वो ले लेती हैं।

शॉपिंग से अच्छा है खेलना

लड़के भी आजकल शॉपिंग पर ध्यान देने लगे हैं, पर फिर भी यह डिपार्टमेंट गल्र्स का ही है। मैं तो बहुत कम मार्केट जाता हूं। मेरा सामान मम्मी ही ले आती हैं। मुझे शॉपिंग करना टाइम वेस्ट लगता है। उस टाइम को मैं दोस्तों के साथ खेलने में स्पेंड कर लेता हूं।

दीपाली पोरवाल


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