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पीएम केयर्स फंड की जानकारी के लिए हाई कोर्ट में याचिका

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By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 08:38 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 08:38 PM (IST)
पीएम केयर्स फंड की जानकारी के लिए हाई कोर्ट में याचिका
पीएम केयर्स फंड की जानकारी के लिए हाई कोर्ट में याचिका

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

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पीएम केयर्स फंड में प्राप्त हुए धन और उसके इस्तेमाल की जानकारी की मांग करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता डॉ. एसएस हुड्डा ने याचिका में दलील दी कि सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। याचिका पर तत्काल सुनवाई करने की मांग करने वाली याचिका को 10 जून के लिए सूचीबद्ध किया गया है। याचिकाकर्ता हुड्डा ने यह याचिका पीएम कार्यालय द्वारा एक आरटीआइ दाखिल करने पर फंड की जानकारी ने देने पर दाखिल की। पीएम कार्यालय ने हर्षा कुंदकर्णी के आरटीआइ आवेदन के जवाब में कहा था कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के तहत पीएम केयर्स सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मार्च को कोरोना महामारी के बीच मदद के लिए लोगों से दान करने का अनुरोध किया था। पीएम के अनुरोध पर दो महीने के अंदर 10 हजार करोड़ रुपये इस फंड में आए। अधिवक्ता आदित्य हुड्डा के माध्यम से दायर याचिका में कहा है कि सरकार द्वारा स्वामित्व, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया गया कोई भी निकाय आरटीआइ अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है। याचिका के अनुसार पीएम केयर्स फंड भी सरकार द्वारा नियंत्रित होने के साथ-साथ सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित भी है। याचिका के अनुसार पीएम केयर्स फंड के पदेन अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं जबकि रक्षा, गृह मंत्रालय और वित्त मंत्री इसके पदेन न्यासी होते हैं। निधि के अध्यक्ष और न्यासी आगे तीन अतिरिक्त न्यासी नियुक्त करने की शक्ति रखते हैं। ट्रस्ट के धन को खर्च करने के लिए नियम-मानदंड प्रधानमंत्री और उपरोक्त तीन मंत्रियों द्वारा तैयार किए जाएंगे। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अनुसार यह साफ हो गया है कि भले ही पीएम केयर्स फंड आरटीआइ अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं हैं, फिर भी देश के लोगों को धन के स्त्रोत और उनके खर्च के विवरण के बारे में जानने का मौलिक अधिकार है। याचिका में यह भी कहा गया है कि कोरोना के पीड़ितों के पास जानने का अधिकार है कि कितना धन एकत्र किया गया और इसे कैसे खर्च किया जा रहा है।


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