जानें, भारत कैसे बना विश्व मेंं योग का महागुरु, किसने किया भगीरथ प्रयास
गुलामी के वक्त आखिर किसने यह सपना देखा था कि भारत को विश्व का आध्यात्मिक नेता बनना चाहिए। किसी सदी में देखा गया यह सपना आखिर किसने किया साकार। कैसे बढ़े कदम दर कदम
नई दिल्ली [ रमेश मिश्र ] । भारत का योग मंत्र पूरी दुनिया को भा गया। यही कारण है कि याेेग का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़ कर बोल रहा है। विकसित देशों ने इसके महत्व को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि इसे अंगीकार किया। इसके साथ ही भारत दुनिया में योग का महागुरु बन गया। इस महागुरु बनने के साथ साकार हुए स्वामी विवेकानंद का सपना। आखिर क्या था विवेकानंद का सपना ? वह विश्व पटल पर भारत की क्या भूमिका चाहते थे ?
एक बार फिर स्वामी विवेकानंद की यादेंं ताजा हाेे गईं। उनका शिकागो की धर्म संसद में दिया गया ओजस्वी भाषण। यह वह दौर था जब हम ब्रितानी हुकूमत के अधीन थे, गुलाम थे। विश्व के नक्शे में भारत का वजूद तक नहीं था। ऐसे कठिन और मुश्किल दौर में इस महानायक ने अमेरिका में यह सिद्ध करके दिखाया कि भारत के पास धर्मगुरु बनने की अपार और असीमित संभावनाए हैं।
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उन्होंने स्थापित किया था कि भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु बन सकता है। इसके पास नेतृत्व की असीम क्षमता है। उन्होंने दुनिया के समक्ष यह कहा था कि भारत की वैभव और गौरवपूर्ण अतीत से मूंह नहीं मोड़ना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा था कि विश्व शांति और कल्याण के लिए दुनिया को यह कदम उठाना जरूरी ही नहीं अपरिहार्य होगा। यह समय की मांग है। इसकी अनदेखी हम नहीं कर सकते।
एक वह दिन, एक आज का दिन। जरा ठहरें, और सोचे। उनकी कही बात एक मायने में सच साबित हुई। आज भारत के योग धर्म की राह पर पूरी दुनिया स्वत: चल पड़ी है। धर्म और मजहब की सारी दीवारे भरभराकर ढह गई हैं।
सरहद के सभी बंधन ढीले पड़ गए हैं। योग क्रिया को मजहबी बताने वालों ने इसे मन से स्वींकार कर लिया है। उन्हें अब योग से गुरेज नहीं है। दुनिया के सबसे विकसित देशों ने यानी पाश्चात्य देशों ने इसे अंगीकार किया है। दुनिया ने माना कि योग धर्म शांति और कल्याण की बुनियाद है। एक जरूरत है। विश्व पटल पर यह भारत की एक बड़ी जीत है। यह योग धर्म की महाविजय है।
दुनिया ने माना भारत का लोहा
दो वर्ष पूर्व तक किसी को इसकी कल्पाना तक नहीं थी कि भारत दुनिया में योग का महागुरु बन जाएगा। निश्चित तौर पर हमें दुनिया को समझाने में एक लंबा वक्ता जरूर लगा, लेकिन हमारे योग धर्म को विश्वत ने समझा ही नहीं उसे दिल से अंगीकार भी किया।
27 सितंबर, 2014 को पहली बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग के विचार को दुनिया के समक्ष बहुत मजबूती से रखा। तब दुनिया का ध्यान इस ओर गया। उन्होंने यहां कहा कि योग भारत की 5000 पुरानी परंपरा है। यह प्राचीन भारत का अमूल्य उपहार है।
उन्होंने कहा यह किसी धर्म सेे जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि मन और शरीर को एकाकार करने की प्रक्रिया है। यानी मन और शरीर की एकता का प्रतीक है। योग संयम और पूर्ति में संतुलन कायम करता है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य की स्थापना करता है।
यह स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी जीवन शैली बदल रही है। ऐसे बदलाव में कई तरह के समीकरण भी बदल रहे हैं। ऐसे में हम चेतना का विस्तार करके अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम कर सकते हैं।
भारत के इस प्रारंभिक प्रस्ताव के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने योग के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर अनौपचारिक विचार-विमर्श किया गया। 11 दिसंबर 2014 को भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक मुखर्जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मसौदा प्रस्ताव पेश किया। मसौदा को 177 सदस्य देशों का व्यापक समर्थन मिला। इस पहल से कई वैश्विक नेताओं से समर्थन मिला।
इस तरह कुल 175 देशों के साथ सह प्रायोजकों की संख्या सबसे ज्यादा थी। यह अब तक रिकार्ड है। संयुक्त राष्ट्र के संकल्प के गोद लेने के बाद, भारत में आध्यात्मिक आंदोलन के कई नेताओं को पहल के लिए उनके समर्थन में आवाज उठाई। इसके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भागीरथी प्रयास को सफलता मिली और विवेकानंद का सपना साकार हुआ।