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निर्भया कांड: छह साल बाद भी महिलाओं को क्‍यों डराती है दिल्ली की सड़कें?

आयोग ने दिल्ली सरकार से कहा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर्याप्त होना चाहिए। सभी बसों में जीपीएस सिस्टम व सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए।

By Edited By: Published: Sat, 15 Dec 2018 07:23 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 11:51 AM (IST)
निर्भया कांड: छह साल बाद भी महिलाओं को क्‍यों डराती है दिल्ली की सड़कें?
निर्भया कांड: छह साल बाद भी महिलाओं को क्‍यों डराती है दिल्ली की सड़कें?

नई दिल्ली, [राकेश कुमार सिंह]। देश की सबसे चर्चित व दिल को झकझोर देने वाली 16 दिसंबर, 2012 को हुई वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की घटना को आज छह साल हो गए। उस रात सफेद रंग की चलती चार्टर्ड बस में 23 वर्षीय फीजियोथेरेपिस्ट युवती के साथ पांच युवकों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद केंद्र सरकार व दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शनों के दौर ने सरकार व पुलिस की नींद उड़ा दी थी। विश्व स्तर पर देश की राजधानी दिल्ली की छवि खराब होते देख सरकार ने मामले में कमियों की जांच के लिए जस्टिस उषा मेहरा आयोग का गठन किया। आयोग से कहा गया कि वह कमियों पर सुझाव भी दे ताकि उन पर अमल कर कमियां दूर की जा सके और भविष्य में राजधानी में इस तरह की घटना न हो पाए।

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आज भी डराती है दिल्‍ली
विस्तृत अध्ययन के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कानून व्यवस्था में बदलाव लाने के सुझाव दिए थे, लेकिन चंद सुझाव को छोड़कर अधिकतर पर छह साल बीत जाने के बावजूद अमल नहीं हो पाया है। इस कारण दिल्ली आज भी महिलाओं के लिए डरावनी ही है। वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की घटना के छह साल बाद भी महिलाओ की सुरक्षा के मामले में दिल्ली की तस्वीर कुछ खास नहीं बदल पाई है।

सबसे बड़ा सपना दिल्ली में वन स्टॉप सेंटर खोलना
आयोग का सबसे बड़ा सपना दिल्ली में वन स्टॉप सेंटर का खोलना था। आयोग ने कहा था कि रेवेन्यू के हिसाब से सरकार हर जिले में दो सरकारी व दो निजी अस्पतालों में वन स्टॉप सेंटर खोले। उक्त सरकारी अस्पताल सरकार से मान्यता प्राप्त हो, यानी हर जिले में चार सेंटर खोले जाएं। प्रत्येक सेंटर में एक इंस्पेक्टर अथवा उससे ऊपर के अधिकारी, एक प्रशिक्षित स्त्री एवं प्रसव रोग विशेषज्ञ, प्रशिक्षित नर्स, काउंसलर, महिला पुलिस, फोरेंसिक एक्सपर्ट, लीगल एक्सपर्ट 24 घंटे मौजूद रहें। प्रत्येक सेंटर से एक महानगर दंडाधिकारी जुड़े रहें ताकि जरूरत पड़ने पर वह कॉल पर तुरंत सेंटर में आकर पीड़िता का धारा-164 का बयान दर्ज कर सकें। आयोग का मानना था कि दुष्कर्म पीड़िता को हर तरह की सुविधाएं एक जगह मिल जाएं। लेकिन, आयोग का यह सबसे बड़ा सपना ही पूरा नहीं हो पाया। दिल्ली में अबतक एक भी सेंटर नहीं खुल पाया। इसको लेकर दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ऐसा संभव नहीं है।

हर थाने में एक तिहाई महिला कर्मियों की संख्या
आयोग ने 54 पेज में भारत सरकार के कई मंत्रालयों, दिल्ली सरकार, सरकार के विभागों व दिल्ली पुलिस को अलग-अलग तरह के अनेकों सुझाव दिए थे। दिल्ली के थानों के हालात को देखते हुए कहा गया था कि हर थाने में एक तिहाई महिला कर्मियों की संख्या होनी चाहिए। छह साल बाद भी ऐसा नहीं हो पाया है। इसको लेकर घटना के बाद केंद्र सरकार के कई मंत्री, गृह मंत्रालय के अधिकारी व तत्कालीन पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार ने भी दावे किए थे कि दो साल के अंदर हर थाने में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या कम से कम 15-15 हो जाएगी। लेकिन, दावे पूरे नहीं हुए। वर्तमान में थानों में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 6-9 तक है। उसमें भी आधी पुलिसकर्मी मातृत्व व अन्य घरेलू कारणों से अवकाश पर रहती हैं। इससे थानों के संचालन में भी दिक्कत होती है। आधी आबादी के लिए 33 फीसद आरक्षण के दावे किए गए थे लेकिन छह साल बाद भी इनकी संख्या महज सात फीसद पहुंच पाई है।

महिला कर्मियों के अनुकूल नहीं हैं थाने
अधिकारियों की मानें तो सबसे स्याह पक्ष तो यह है कि दिल्ली पुलिस के थाने महिला पुलिसकर्मियों के रात में ठहरने के अनुकूल नहीं हैं। महिला कर्मियों के लिए थाने में अलग से हर तरह की व्यवस्था होनी चाहिए। सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक के लिए हर थाने में आराम करने के लिए केवल एक-एक कमरा है। महिला पुलिसकर्मियों के लिए थाने से बाहर ड्यूटी करने के लिए सरकारी स्कूटी आदि वाहनों की व्यवस्था भी नहीं है। ऐसे में महिला पुलिसकर्मी रात में थानों में ठहरने में खुद को असहज महसूस करती हैं। थानों को वूमेन फ्रेंडली बनाने के लिए भी पुलिस के मुखिया को गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

हिम्मत एप
आयोग ने कहा था कि दिल्ली पुलिस ऐसा एप लाए ताकि मुसीबत के समय में महिला मोबाइल से ऐसा सिग्नल दे सके कि वह उक्त जगह पर फंसी है और पुलिस घटनास्थल पर पहुंच सके। उक्त सुझाव का पालन करते हुए हिम्मत एप लाया गया।

आवासीय सेक्टर में चल रहे शराब के ठेके
शराब की दुकानों को लेकर कहा गया था कि दिल्ली सरकार का आबकारी विभाग आवासीय सेक्टर में ठेके का लाइसेंस न दे। जहां भी ऐसा है उसका लाइसेंस तुरंत रद कर दे। शराब के ठेके के सामने सीसीटीवी कैमरे लगे हों और उसकी रिकार्डिग होनी चाहिए। इसका भी पालन नहीं किया गया। आवासीय सेक्टर में धड़ल्ले से ठेके चल रहे हैं। अधिकतर में कैमरे भी नहीं लगे हैं।

बसों में कैमरे नहीं
आयोग ने दिल्ली सरकार से कहा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर्याप्त होना चाहिए। सभी बसों में जीपीएस सिस्टम व सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए। लेकिन, न तो पर्याप्त पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा है और न ही बसों में कैमरे लग पाए। यातायात पुलिस व परिवहन विभाग को कहा गया था कि दोनों मिलकर यातायात नियम तोड़ने वाले वाहन चालकों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई का खाका तैयार करें। नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। मोटर वाहन एक्ट में यह प्रावधान है कि सार्वजनिक अथवा निजी वाहनों में खिड़कियों में पर्दा नहीं लगा होना चाहिए। वसंत विहार की घटना के बाद इस मसले पर कई महीने तक ध्यान दिया गया। दिल्ली में चलने व यहां से गुजरने वाली बसों में पर्दे हटा दिए गए थे। लेकिन, फिर इस पर ध्यान देना बंद कर दिया गया। अब बसों की खिड़कियों में पर्दे लगे हुए देखे जा सकते हैं।

चार माह ही रही सख्ती
वसंत विहार की घटना के बाद दिल्ली की सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई थी। चार महीने तक राजधानी की सड़कों पर रातभर जगह-जगह बैरिकेड लगाकर पुलिस हर वाहन की सघन जांच करती रही थी। इससे उन दिनों अपराध में भारी कमी आई थी। लेकिन, चार माह बाद ही व्यवस्था बदल गई थी।

 थानों में बेहतर नहीं है फैसिलिटेशन डेस्क
थानों में महिला डेस्क की व्यवस्था वसंत विहार की घटना से पहले से थी। घटना के बाद उसे और प्रभावी बनाने के दावे किए गए लेकिन नहीं बनाया जा सका। कुछ महीना पहले महिला डेस्क का नाम बदलकर फैसिलिटेशन डेस्क रख दिया गया लेकिन, उस पर 24 घटे महिला पुलिसकर्मी नहीं होती। यहां तक कि अधिकतर थानों में उस डेस्क के लिए अलग से टेलीफोन लाइन भी नहीं है।

नहीं लगे साइंटिफिक यंत्र
आयोग ने कहा था कि घटना की तफ्तीश के लिए पुलिस विभाग का अलग सेक्शन होना चाहिए। उनकी गाड़ियों में साइंटिफिक व फोरेंसिक यंत्र लगे होने चाहिए। उक्त सुझाव पर पुलिस विभाग ने फिलहाल 30 थानों में टीम को कानून एवं व्यवस्था और तफ्तीश के लिए दो भागों में बांट दिया है। लेकिन, उनकी गाड़ियों में साइंटिफिक व फोरेंसिक यंत्र नहीं लगे हैं।

सोच में हुआ है कुछ बदलाव
आयोग ने धार्मिक आधार पर महिलाओं से भेदभाव को खत्म करने पर जोर दिया था। साथ ही ऐसे प्रयास करने को कहा था जिससे कि समाज में महिलाओं को लेकर सम्मान बढ़े। ऐसे में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान ने समाज की सोच में कुछ बदलाव लाने का काम किया है। इसी तरह तीन तलाक पर कानून से मुस्लिम महिलाओं को धार्मिक आधार पर उत्पीड़न से आजादी मिली है।

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