उपहार कांड बरसीः कामयाबी के घोड़े दौड़ा रहे ‘उपहार’ के हीरो
कर्नल राजेश पट्टू बताते हैं कि काफी दिनों तक को रात को नींद ही नहीं आती थी। फिर उन्होंने खेल में ही अपना सारा ध्यान झोंक दिया।
नई दिल्ली (जेएनएन)। 19 साल पहले वह 13 जून का ही दिन था, जब दिल्ली के उपहार सिनेमा में हुए भीषण अग्नि कांड ने बहुत से लोगों से जिंदगी का तोहफा हमेशा के लिए छीन लिया, लेकिन इसी घड़ी ने एक बहादुर फौजी अधिकारी को जिंदगी का नया मकसद दे दिया।
यहां अपने दोस्त के साथ सिनेमा देख रहे कर्नल राजेश पट्टू बताते हैं कि काफी दिनों तक को रात को नींद ही नहीं आती थी। फिर उन्होंने खेल में ही अपना सारा ध्यान झोंक दिया और उसके बाद से अब तक वह लगातार घुड़सवारी के खेल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झंडे गाड़ते जा रहे हैं।
लगातार तीन एशियन गेम्स में मेडल जीत चुके कर्नल राजेश पट्टू अब दो साल बाद होने वाले अगले एशियन गेम्स के लिए तैयारी कर रहे हैं। उनका मानना है कि अभी उनको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना बाकी है। मगर इस सिलसिले की शुरुआत उपहार के तुरंत बाद ही हो गई थी।
वह बताते हैं कि इस हादसे के बाद कई हफ्तों तक को उन्हें नींद ही नहीं आती थी। अपनी जान बचाने के लिए रोते-चिल्लाते लोगों की आवाज और दृश्य उन्हें हमेशा घेरे रहते थे। मगर फिर उन्होंने अपना पूरा फोकस सिर्फ घुड़वारी पर लगाना शुरू किया।
अगले साल 1998 में एशियाई खेल के लिए वह बैंकोक गए और वहां रजत पदक मिला। इसके बाद वह लगातार इस खेल में अपना झंडा गाड़ते चले गए। वर्ष 2004 में उन्हें अजरुन पुरस्कार भी मिल चुका है।
सेना के 61 कैवलरी के कर्नल पट्टू को उस हादसे के दौरान अदम्य साहस और बहादुरी दिखाने के लिए राष्ट्रपति से वर्ष 1999 में सवरेत्तम जीवन रक्षक पदक भी मिल चुका है। इस बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि तब उनकी फौज की ट्रेनिंग पूरी हुए महज दो साल बीते थे।
यह सब सेना के उस प्रशिक्षण की वजह से मुमकिन हो सका, जिसमें बताया जाता है कि मुश्किल कितनी भी बड़ी हो, लेकिन आप अपने साथियों को छोड़ कर नहीं जा सकते।
यहां आपको बताया जाता है कि आपकी खुद की सुरक्षा अंत में आती है। कर्नल पट्टू कहते हैं कि यही वह लाइन थी, जो उस हादसे के दौरान उनके जेहन में बनी हुई थी।