अपने नियमों से चलते हैं यमुनापार के गोशाला व डेयरी संचालक
यमुनापार में गोशाला और डेयरी चलाने वाले खुद तय करते हैं अपनी गाइडलाइन
शुजाउद्दीन, पूर्वी दिल्ली
यमुनापार में कई जगह गोशाला और डेयरियां चल रही हैं। इन दोनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके पहले भी दिशानिर्देश जारी हो चुके हैं, लेकिन डेयरी और गोशाला संचालक इससे बेपरवाह हैं। उनका कहना है कि इनका पालन ही नहीं हो सकता है।
रिहायशी इलाकों से लेकर यमुना खादर में गोशाला व डेयरियां चल रही हैं। किसी में भी गोबर के निष्पादन की व्यवस्था नहीं है। कोई गड्ढा खोदकर गोबर दबा रहा तो कोई नाले व सीवर में बहा रहा है। कुछ ऐसे भी हैं, जो निस्तारण के नाम पर गोबर को खादर व सड़कों के फुटपाथ पर ढेर लगा रहे हैं। सीपीसीबी के नए दिशानिर्देशों के बारे में संचालकों का कहना है कि यह हवा हवाई है। इस तरह के नियम बनाने से पहले संचालकों को व्यवस्था उपलब्ध करवानी चाहिए। डेयरी शराब की दुकान नहीं है, जो अस्पताल व स्कूल के पास नहीं चल सकती। दूध स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। गाजीपुर डेयरी फार्म में 926 डेयरियां हैं। सभी का गोबर नालों में बहता है। यहां के नाले हमेशा गोबर की वजह से ओवरफ्लो रहते हैं। संचालकों का कहना है कि सरकार से लेकर सरकारी अधिकारी तक को मालूम है कि गोबर के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है, व्यवस्था उपलब्ध करवाना इनका काम है।
15 साल तक ही चल पाया गोबर प्लांट
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में गाजीपुर डेयरी फार्म बसाया था। डेयरी के बाहर एक हौदी बनाकर दी गई थी, जिसमें डेयरी संचालक गोबर डालते थे। सरकारी विभाग के कर्मचारी बैलगाड़ी लाकर उसे ले जाते थे। उस वक्त भी गोबर के निस्तारण की व्यवस्था नहीं थी। तब केंद्र सरकार ने 1985 में गाजीपुर डेयरी फार्म के पास गोबर गैस प्लांट बनाया। उसी दौरान डीडीए ने इसी प्लांट के पास 900 के आसपास फ्लैट्स बनाए थे। इन फ्लैटों में गैस का कनेक्शन गोबर प्लांट से दिया गया। सन् 2000 में यह प्लांट बंद हो गया। दो वर्ष पहले यहां एक नया प्लांट बनाने का शिलान्यास हुआ। अब तक नहीं बन सका है। गैस प्लांट सिर्फ लोगों की यादों में रह गया है।
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इस तरह के नियम बनाने से पहले सीपीसीबी को धरातल पर उतरकर हकीकत का पता लगाना चाहिए था। इससे गरीबों का व्यापार बंद हो जाएगा। दिल्ली में गोबर प्लांट नहीं है। ऐसे में गोबर का निस्तारण करना डेयरी व गोशाला संचालकों के लिए चुनौती है। सरकारी विभागों के पास न तो संसाधन है और न कोई योजना। निगम ने जो जगह चिन्हित की हुई है, वहां गोबर डाला जाता है। इसके अलावा नाले में बहा दिया जाता है।
-संतराम प्रधान, अध्यक्ष दूध डेयरी फेडरेशन।
दस वर्ष से ज्वाला नगर में गोशाला चल रही है। इसमें कुल 150 गाय हैं। सीपीसीबी अचानक से दिशानिर्देश लाता है कि रिहायशी इलाके में गोशाला नहीं चला सकते, यह गलत है। गाय के गोबर को निगम के डलावघर पर डाला जाता है। गोबर निस्तारण का कोई दूसरा तरीका है तो सीपीसीबी को बताना चाहिए।
-हैप्पी लूथरा, गोशाला संचालक, ज्वाला नगर। गोशाला में सात सौ गाय हैं। गोशाला के पास बड़ा गड्ढा खोदकर गोबर को उसमें डालकर दबा दिया जाता है। कुछ किसान इसे खाद के रूप में ले जाते हैं। उन्हें नि:शुल्क दिया जाता है। सीपीसीबी की नई गाइडलाइन के बारे में नहीं पता। गोशाला में जैसे पहले गोबर का निस्तारण किया जाता था, ऐसे ही आगे भी किया जाएगा।
स्वामी राजेश पांडेय, संस्थापक गऊ लोक गऊधाम सेवा पुराना लोहा पुल। मुझे इस मामले की कोई जानकारी नहीं है और न ही मालूम है कि सीपीसीबी के नए दिशानिर्देश क्या हैं। निगम अधिकारियों से बातचीत के बाद ही सही स्थिति को स्पष्ट कर पाऊंगा।
निर्मल जैन, महापौर, पूर्वी दिल्ली नगर निगम