दूसरों के अस्तित्व पर नहीं खड़ी हो सकती स्वतंत्रता की इमारत
स्वतंत्रता दिवस पर साहित्य अकादमी ने स्वतंत्रता की सीमाएं विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली:
स्वतंत्रता दिवस पर साहित्य अकादमी ने स्वतंत्रता की सीमाएं विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया। इसमें अनुवादक हरीश त्रिवेदी, विशेषज्ञ एपी माहेश्वरी, कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह समेत वरिष्ठ पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।
इस दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि दूसरों के अस्तित्व के ऊपर स्वतंत्रता की इमारत खड़ी नहीं हो सकती। दूसरों के विचारों से सहमति और असहमति हो सकती है। यह स्थिति ही विकास में सहायक होती है, इसलिए हमें स्वतंत्रता के प्रति जागरूक और जिम्मेदार बनना पड़ेगा।
हिंदी के प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने प्रेमचंद की कहानियों का जिक्र करते हुए कहा कि हमें अपनी स्वतंत्रता की खुशी जरूरत मनानी चाहिए, लेकिन विभाजन से जो हमें पीड़ा पहुंची थी, हमने अपनों को खोया था। उस भीषण दुख-दर्द को भी भूलना नहीं चाहिए। इस द्वंद्व के बीच में ही हम अपनी स्वतंत्रता का सही उत्तरदायित्व के साथ अर्थ पहचान सकते हैं।
समाजसेवी अंतरा देव सेन ने कहा कि अक्सर यही देखा जाता रहा है कि अधिक शक्तिशाली लोगों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है और कम शक्ति वाले व्यक्ति को कम स्वतंत्रता मिली हुई है। जबकि हम संविधान और लोकतंत्र के अंतर्गत जीवन जीते हैं, यह स्थिति क्यों है और इसे किसने बनाया है। इस पर हमें गंभीरता से विचार करने की आवश्यक्ता है।
भारत में मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन के लिए प्रभावशाली मुहिम चलाने वाले प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता बेजवाडा विल्सन ने नागरिक की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों की बात उठाते हुए कहा कि अब भी हाथ से मैला ढोने वाले लोगों की हमारे देश में स्थिति गंभीर बनी हुई है, उसके बारे में हमें चिंतित होना चाहिए और इसे दूर करने के लिए हमें प्रयास करने चाहिए। साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने कहा कि स्वतंत्रता की सीमाएं अलग अलग अनुशासनों में अलग अलग होती हैं, लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए हमें इन सीमाओं को तय करना चाहिए।