छात्र संघ चुनावः तारीख के अलावा JNU-DU में कोई समानता नहीं
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की तारीख भले ही एक हो, लेकिन इन दोनों में छात्रसंघ चुनाव के तरीके, छात्रों की भागीदारी, मुद्दे और विचारधारा के साथ ही चुनाव प्रचार के तरीकों में जबरदस्त भिन्नता है।
नई दिल्ली (अभिनव उपाध्याय)। राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की तारीख भले ही एक हो, लेकिन इन दोनों में छात्रसंघ चुनाव के तरीके, छात्रों की भागीदारी, मुद्दे और विचारधारा के साथ ही चुनाव प्रचार के तरीकों में जबरदस्त भिन्नता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में जहां धनबल और बाहुबल के साथ ग्लैमर का तड़का रहता है, वहीं जेएनयू में इन सबसे दूर छात्रों के पास जाकर प्रत्याशी अपनी विचारधारा से उनको रूबरू कराने पर जोर देते हैं।
प्रचार: एक तरफ ग्लैमर तो दूसरी तरफ फिजूलखर्जी भी नहीं
डीयू और जेएनयू में छात्रसंघ चुनाव में प्रचार के तरीके बिल्कुल भिन्न होते हैं। एक तरफ जहां डीयू में छात्रसंघ चुनाव से पहले पार्टियों का दौर चलता है और छात्रों को लुभाने के लिए म्युजिकल शो या फैशन प्रतियोगिताएं होती हैं, इसके ठीक उलट जेएनयू में मुद्दों को लेकर अनशन तथा बहस तथा नारेबाजी होती है।
छात्र रात-रातभर अपनी बात रखने के लिए छात्रों के बीच जाते हैं। इस दौरान उनकी समस्याएं सुनते हैं। हाल ही में छात्रवृत्ति के मुद्दे पर वाम संगठनों ने अनशन और भूख हड़ताल करके जेएनयू के छात्रों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था।
डीयू में जहां पर्चे प्रेस में छपते हैं और रंगीन फोटो के साथ दीवारों पर दिखाई देते हैं, वहीं जेएनयू में अधिकांश पर्चे हाथ से लिखे या फोटोकॉपी किए हुए होते हैं। लगभग हर पर्चे पर यह भी लिखा रहता है कि इसे फलां तिथि से पहले न फाड़ें। प्रचार का यह माध्यम डीयू में बिल्कुल नहीं है।
यहां चुनाव प्रचार में जेएनयू की तरह अनुशासन नहीं है। जेएनयू में बहस स्थानीय और राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर होती है और एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में छात्र अपनी बात रखते हैं।
जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष सुचेता डे का कहना है कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में हम मेस व हास्टल में छात्रों के पास जाकर उनको अपनी विचारधारा से अवगत कराते हैं। स्थानीय मुद्दे को लेकर जनमत बनाते हैं। इसके लिए हम लोक गीत, पर्चे, बैनर व पोस्टर के साथ छात्रों के बीच जाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया
डीयू में छात्रसंघ चुनाव जहां डीयू प्रशासन की निगरानी में होता है, वहीं जेएनूय में यह छात्रों द्वारा ही निर्वाचित अधिकारियों द्वारा कराया जाता है। इसमें जेएनयू प्रशासन का कोई दखल नहीं होता है।
जेएनयू में काउंसलर के चुनाव के बाद मुख्य चुनाव अधिकारी का चयन होता है और चुनाव को सही ढंग से संपन्न कराने की जिम्मेदारी उसी की होती है। मुख्य चुनाव अधिकारी के पास कई अधिकार होते हैं, जिसमें प्रत्याशी के नामांकन रद करने से लेकर कई अन्य अधिकार शामिल हैं।
इसके अलावा यहां जनरल बाडी मीटिंग भी चुनाव में अहम भूमिका निभाती है। यहां पर पूर्व काउंसलर के समक्ष भी सवाल उठाए जाते हैं और वर्तमान काउंसलर भी अपनी बात रखता है।
जेएनयू में राजनीति विज्ञान के शोध छात्र मयंक सक्सेना का कहना है कि जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में जितनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है, उतनी देश के किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं। लिंगदोह कमेटी ने भी जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के मॉडल को एक आदर्श मॉडल बताया है।
मुद्देः डीयू में स्थानीय तो जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होती है बात
डीयू में जहां स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं, वहीं जेएनयू में स्थानीय के अलाव राष्ट्रीय और अंरराष्ट्रीय मुद्दे भी प्रमुखता से उठाए जाते हैं। हालांकि, जेएनयू ने इस वर्ष स्थानीय स्तर पर डेंगू के मुद्दे को खास तवज्जो दी है।
जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष आशुतोष का कहना है कि छात्रों से जुड़े मुद्दों के अलावा शिक्षा नीति के मुद्दों पर चुनाव होता है। हम हमेशा से अमेरिकी मॉडल का विरोध करते आए हैं।
देश में भ्रष्टाचार, लूट, कॉरपोरेट फासिज्म तथा शिक्षा का निजीकरण प्रमुख मुद्दे हैं। इसके अलावा कैंपस में लोकतांत्रिक माहौल को हम मुद्दा बनाते हैं। इसी तरह एनएसयूआइ और एबीवीपी ने भी स्थानीय मुद्दों को समानता दी है।