88 दोषियों की 5 साल की सजा बरकरार
-त्रिलोकपुरी सिख दंगा मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट के फैसले पर हाई कोर्ट ने लगाई मुहर
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : 1984 में सिख विरोधी दंगे के दौरान त्रिलोकपुरी में 95 लोगों की हत्या समेत घरों में आगजनी के मामले में हाई कोर्ट ने 22 साल बाद फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति आरके गॉबा की पीठ ने निचली अदालत से सभी 88 दोषियों को मिली पांच साल की सजा को बरकरार रखा। पीठ ने सभी को दंगा फैलाने, घरों को जलाने और कर्फ्यू के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी पाया। साथ ही जमानत पर रिहा सभी दोषियों को तत्काल कल्याणपुरी थाने में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। मामले के 23 अभियुक्तों ने कड़कड़डूमा कोर्ट द्वारा 27 अगस्त 1996 को सुनाए गए फैसले को चुनौती दी थी। कई दोषियों की अपील लंबित होने के दौरान मृत्यु भी हो चुकी है, वर्तमान में 88 दोषियों में से सिर्फ 47 ही जीवित हैं।
वकीलों, पीडि़तों और मीडियाकर्मियों से खचाखच भरे कोर्ट रूम में बुधवार को न्यायमूर्ति आरके गॉबा ने इस मामले में दिल्ली पुलिस की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। साथ ही मामले की सुनवाई में हुई दो दशक से अधिक समय की देरी को लेकर देश की न्याय प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक दंगों के ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए, साथ ही सामान्य आपराधिक न्याय प्रक्रिया के नियमों में भी समुचित सुधार किया जाना चाहिए। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे 23 अभियुक्तों की याचिका पर 22 साल तक चली सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने विगत सितंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के थे दंगे
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे में त्रिलोकपुरी इलाके के लोग भी शिकार हुए थे। मामले में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार 2 नवंबर 1984 को यहां हुए दंगे में 95 लोगों की मौत हुई थी और 100 घर जला दिए गए थे। घटना के बाद दंगा, आगजनी और कर्फ्यू के उल्लंघन की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई थी और 107 लोगों को आरोपित बनाया गया था। मामले में लंबी सुनवाई के बाद कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसएल ढींगरा ने 88 लोगों को पांच साल की सजा सुनाई थी और पांच हजार का जुर्माना लगाया था।
----- महिपालपुर दोहरे हत्याकांड में दो लोगों को हो चुकी है सजा
सिख विरोधी दंगों से जुड़े दिल्ली के महिपालपुर में हुए दोहरे हत्याकांड में विगत 20 नवंबर को पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने दोषी यशपाल सिंह को फांसी और नरेश सहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
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वारदात को 34 साल हो चुके हैं और पीड़ित अब भी न्याय के इंतजार में हैं, क्या यही प्रभावशाली न्याय प्रणाली है? क्या हमारी न्याय प्रणाली में इतने बड़े पैमाने पर हुए आपराधिक मुकदमे की सुनवाई करने की यह उपयुक्त व्यवस्था है? क्या हमने आपराधिक न्याय प्रक्रिया के इस खराब अनुभव से कुछ सीखा है? न्यायपालिका के अब तक के इतिहास में आपराधिक न्याय प्रक्रिया का यह एक ऐसा मामला है, जिसे फिर से कभी नहीं दोहराया जाना चाहिए।
-न्यायमूर्ति आरके गॉबा, दिल्ली हाई कोर्ट
----------------- यह बड़ा फैसला है। न सिर्फ 88 दोषियों की सजा को बरकरार रखा गया है, बल्कि दंगों से कैसे निपटा जाए, इसपर भी निर्देश दिया गया है। इस फैसले से देश में इस तरीके की घटनाओं पर रोक लगेगी।
-एचएस फूलका, लोक अभियोजक