दिल्ली की सियासत में शीला की सक्रिय दस्तक की तैयारी!
सूबे की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सक्रियता लगातार बढ़ रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इफ्तार की दावत में पहुंचकर कांग्रेसी नेताओं को चौंकाने वाली दीक्षित भागीदारी के मंच से अपनी राजनीति को नई धार देने में जुट गई हैं।
नई दिल्ली। सूबे की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सक्रियता लगातार बढ़ रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इफ्तार की दावत में पहुंचकर कांग्रेसी नेताओं को चौंकाने वाली दीक्षित भागीदारी के मंच से अपनी राजनीति को नई धार देने में जुट गई हैं।
दिल्ली के 228 रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों की बैठक आगामी 16 अगस्त को होने जा रही है। दीक्षित को इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। नार्थ दिल्ली आरडब्ल्यूए के बैनर तले आयोजित किए जा रहे कार्यक्रम में पानी-बिजली सहित सड़कों पर लगातार बढ़ते अतिक्रमण की समस्या पर चर्चा होगी।
नार्थ दिल्ली आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष अशोक भसीन ने बताया कि दीक्षित के काल में भागीदारी के माध्यम से सरकार और दिल्ली के आरडब्ल्यूए मिलकर समस्याओं का समाधान निकालते थे।
अब नई सरकार में वह सिलसिला तो टूट गया है, लेकिन आम लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए फेडरेशन के प्लेटफार्म को ओर मजबूत करने का इरादा संस्था से जुड़े तमाम सदस्यों ने व्यक्त किया है। इसी के मद्देनजर यह आयोजन किया जा रहा है।
सियासी जानकारों के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित ने कांग्रेस से कटे-कटे रहने वाले दिल्ली के मध्यम वर्ग के लोगों को जोड़ने के लिए भागीदारी योजना शुरू की। इसके माध्यम से राजधानी के तमाम रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों को जोड़ा गया।
भागीदारी कार्यक्रम की खूबसूरती यह भी थी कि इसके आयोजन में सरकार के तमाम अधिकारी और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के लोग एक साथ बैठते थे। अलग-अलग क्षेत्रों की समस्याओं पर चर्चा होती थी और प्राथमिकता तय कर उनके काम किए जाते थे।
कहते हैं कि दीक्षित की लगातार जीत की बड़ी वजह यह भागीदारी भी थी। शायद यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल सरकार भी इसी के तर्ज पर मोहल्ला सभाओं के गठन की दिशा में काम कर रही है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं कि आम आदमी पार्टी के हाथों अपनी सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस दिल्ली में खुद ही अपनी जमीन तलाश रही है।
ऐसे में शीला दीक्षित सरीखी नेता के लिए अपनी खोई हुई ताकत को दोबारा हासिल करना आसान नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि भागीदारी के अपने मंच को मजबूत कर वह अपने विरोधियों के तेवर जरूर ढीले कर सकती हैं।