सुरक्षा के इंतजाम में रोड़ा बन रहीं हैं बुनियादी सुविधाओं की कमी
जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : उत्तरी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में आज भी कई ऐसी सुविधाओ
जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : उत्तरी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में आज भी कई ऐसी सुविधाओं की कमी है जिसके कारण सुरक्षा को ग्रहण लगा है। सड़क और अन्य सार्वजनिक जगहों पर रोड लाइट की खराबी और कमी व पुलिस चौकी से सुरक्षा गार्डों के गायब रहने से सुरक्षा के इंतजाम में बाधा उत्पन्न हो रही हैं। वैसे तो सर्वे और एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के कई इलाकों को महिलाओं के लिए असुरक्षित जोन बताया गया है, लेकिन वहां सुरक्षा की कमी के लिए मुख्य रूप से बुनियादी समस्याओं की कमी को ही जिम्मेदार बताया गया है। बहरहाल उत्तरी दिल्ली के विभिन्न इलाके भी इन्हीं कमियों के कारण सुरक्षा की सीमा से दूर नजर आते हैं।
शाम ढलते ही कई जगहों पर पुलिस की तैनाती में कमियां आ जाती हैं। स्ट्रीट लाइट और सड़क सुरक्षा के लिए लगाए गए कैमरे भी नदारद होते हैं या खराब होते हैं। सीसीटीवी कैमरे भी पूरे नहीं हैं और जो हैं वह क्षेत्र, आबादी, स्थान और जरूरतों के हिसाब से कम हैं। इन्हें बेहतर बनाने के लिए ही संबंधित विभाग, एजेंसियां और प्रशासन की ओर से गंभीर प्रयास नहीं किए गए हैं। ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल अब भी वैसा ही है जैसा पांच साल पहले था। उत्तरी दिल्ली के रोहिणी, रिठाला, शालीमार बाग, पीतमपुरा सहित कई इलाकों में देर रात लिए गए जायजे में उपरोक्त कमियों को पाया गया जो महिला सुरक्षा के दावों को खोखला साबित कर रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि इन कमियों के बावजूद महिला सुरक्षा के लिए स्थानीय निकाय, पुलिस तंत्र और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के नाम पर केवल खानापूर्ति का सिलसिला जारी है। इसे लेकर महिलाओं में भी असंतोष है और वह सुरक्षा के इंतजामों को लेकर निराशा जता रही हैं।
किसी भी काम के लिए शाम के बाद घर से बाहर निकलना मन में डर भर देता है। आधुनिकता के दौर में आज भी कमिया तो कई हैं क्योंकि इसे दूर करने की मंशा कमजोर है। यही वजह है कि महिलाओं से जुड़े अपराध में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
उषा गुप्ता, शिक्षिका
16 दिसंबर की घटना के बाद से लेकर आजतक हालात में कोई सुधार नहीं है। महिलाओं के लिए दिल्ली सुरक्षित नहीं है। सीसीटीवी कैमरों की संख्या को बढ़ाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किए गए। घटना के बाद शोक मनाने और कैंडल जलाने से बेहतर ऐसा माहौल तैयार किया जाए कि महिलाएं हर हाल में खुद को महफूज समझ सकें।
सोनिया गोयल, सामाजिक कार्यकर्ता