भरण पोषण के लिए 8 हजार अविवेकपूर्ण नहीं: हाई कोर्ट
- बेटे ने की थी पिता से भरण-पोषण की मांग - निचली अदालत के फैसले पर पिता ने दायर की थी
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली :
बेटे के भरण-पोषण के लिए निचली अदालत द्वारा 8 हजार रुपये प्रतिमाह की व्यवस्था का फैसला अविवेकपूर्ण नहीं है। निचली अदालत का फैसला तथ्यों व साक्ष्यों पर आधारित है और इसमें कोई अनियमितता न होने के कारण हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।
पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने यह टिप्पणी की। उन्होंने याचिका की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह प्रतिवादी को परेशान करने व उसकी मां को इस मामले में खींचने के लिए लगाई गई है। वर्ना, बेटे के भरण -पोषण के लिए 8 हजार रुपये प्रतिमाह देना कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।
पूरा मामला फैमली कोर्ट द्वारा 4 अगस्त 2012 में दिए गए फैसले से जुड़ा है। इसमें कोर्ट ने अगले आदेश तक याची अकशोद कुमार शर्मा को बेटे श्री शर्मा को 8 हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने के आदेश दिए थे। श्री शर्मा ने मां तनु की तरफ से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग की थी। हालांकि मां ने कोई भरण-पोषण की मांग नहीं की और वह बेटे श्री शर्मा व बेटी रेनू शर्मा का पूरा खर्चा उठा रही हैं।
निचली अदालत के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए हाई कोर्ट पहुंचे अकशोद ने दावा किया कि वह इतना नहीं कमाते कि अपना व बच्चों का भरण पोषण कर सकें। ऐसे में भरण-पोषण को कम करने पर विचार किया जाए। जबकि कोर्ट के सामने आए तथ्यों से पता चला कि याची के भाई, मां व बहन विदेश में रहते हैं और वह भी कई बार विदेश जा चुका है। इतना ही नहीं उसने रोहिणी में एक मकान खरीदा है और बैंक पासबुक से पता चला कि याची का डी-मैट अकाउंट भी है। इससे स्पष्ट होता है कि वह सक्षम है।
पूरे मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने याचिका खारिज कर दी। अदालत ने निर्देश दिया कि याची निचली अदालत में अगली सुनवाई से पहले हर महीने प्रतिवादी को 25 हजार रुपये का भुगतान करे। साथ ही निचली अदालत को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत चल रहे मुकदमे की सुनवाई छह माह के अंदर पूरी करने के आदेश दिए।