गौरवपूर्ण अतीत का प्रामाणिक दस्तावेज है रामायण : डॉ. कृष्ण गोपाल
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने सोमवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में पुस्तक का विमोचन किया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने सोमवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में पुस्तक 'रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी' का लोकार्पण किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि अपनी ठीक बात साबित करने के लिए भी आज प्रमाण की जरूरत आ गई है। रामायण हमारे गौरवपूर्ण इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज है। हम आने वाली पीढ़ी को तर्कसंगत व वैज्ञानिक तथ्यों के जरिये गौरवपूर्ण अतीत से लाभान्वित कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हारी हुई जाति का स्वत्व नष्ट कर दिया जाता है। अंग्रेजों ने जो लिखा वही हमारे भाग्य में आ गया। पराधीनता की अवधि में दस-बारह पीढि़या बीतने के बाद एक ऐसा समाज खड़ा हुआ जो स्वयं को ही नकारने लगा। 'रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी' पुस्तक हमें स्वयं को नकारने से बाहर निकालती है। महर्षि वाल्मीकि ने उस समय के इतिहास को श्लोकों में लिखा। विज्ञान आज हजारों साल पूर्व लिखी वाल्मीकि रामायण में बताई गई ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति को प्रमाणित करता है। रामायण में हिमयुग के वर्णन को आधुनिक विज्ञान अब मान रहा है। रामसेतु तथा समुद्र में डूबी द्वारका को आज नासा भी स्वीकार कर रहा है। इसलिए हमें अपने साहित्य, स्वत्व, मेधा, प्रज्ञा तथा अपने महापुरुषों के ऊपर गर्व करना चाहिए।
केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में दिए वैज्ञानिक तथ्यों को देखकर लगता है कि न्यायालयों में जो आज बहुत बड़े-बड़े फैसले रुके हुए हैं, उनके लिए अब किसी साक्ष्य या गवाही की जरूरत नहीं रह जाएगी। हमें ईश्वर, माता-पिता और गुरु के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाने चाहिए। देश का इतिहास कोई नहीं बदल सकता है। हमारा गौरवमयी इतिहास है। इसे समृद्ध किया जा सकता है। कथनी का तर्कसंगत विश्लेषण के बिना कोई महत्व नहीं है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की लेखिका सरोज बाला ने बताया कि यह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। रामायण को भविष्य तक पहुंचाने के लिए वाल्मीकि ने लव व कुश को इसे कंठस्थ कराया और उन्होंने इसे ऋषि-मुनियों तथा अश्वमेघ यक्ष के समय श्रीराम के दरबार में कई राजाओं तक पहुंचाया। रामायण में श्रीराम के जन्म को जिस खगोलीय दृश्य से प्रदर्शित किया गया है, कालगणना के आधुनिक सॉफ्टवेयर भी उसे सही ठहराते हैं। इसी तरह सात हजार साल पूर्व समुद्र का जलस्तर तीन मीटर नीचे था और रामसेतु उसके ऊपर था।