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महफिल-ए-¨जदगी ने भरा नया जोश

एक कलाकार में इतनी क्षमता होती है कि वह रोते हुए व्यक्ति को भी खिलखिला कर हंसा सकता है। दिल्ली की इस दौड़ भाग वाली ¨जदगी में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं, वह हंसना और गुनगुना भूल गए हैं। और कलाकार तो वो होते हैं, जो लोगों को गुदगुदाने के लिए मौके की तलाश में रहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 10:21 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 10:21 PM (IST)
महफिल-ए-¨जदगी ने भरा नया जोश
महफिल-ए-¨जदगी ने भरा नया जोश

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : एक कलाकार में ही इतनी काबिलियत होती है कि वह रोते हुए व्यक्ति को भी हंसा सकता है। आजकल की भागदौड़ भरी ¨जदगी में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं, वे हंसना और गुनगुना भूल गए हैं। ऐसे में कलाकारों का दायित्व और बढ़ जाता है। वे बेशक समाज में चल रहीं गतिविधियों को ही पेश करते हैं, लेकिन उनका अंदाज ऐसा होता है कि हंसी से लोगों के चेहरे खिलखिला उठते हैं। कुछ ऐसा ही नजारा दिखा महफिल-ए-¨जदगी कार्यक्रम में।

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शनिवार को नाटक ग्रुप मुखौटा आर्ट स्पेस ने विश्वास नगर 60 फुटा रोड स्थित अपने ऑडिटोरियम में कार्यक्रम आयोजित किया। इस दौरानउभरते हुए कलाकारों ने दमदार प्रस्तुति देकर लोगों का खूब मनोरंजन किया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि महफिल चाहे जहां भी हो, कलाकार अपनी कलाकारी से रंग जमा ही देते हैं।

शशांक शेखर पांडेय ने अपनी दिलचस्प अदाकारी से लोगों की खूब वाहवाही लूटी। वहीं, सौरभ शर्मा, अहमद जमाल ने शायरी से समां बांधा। मुकुल पाल ने अपने अभिनय से घरेलू ¨हसा पर चोट की, जबकि प्रीति ने हास्य रस में श्रोताओं को सराबोर किया।

मुखौटा आर्ट स्पेस ग्रुप की संचालिका एवं अधिवक्ता अंकिता शर्मा ने कहा कि ग्रुप का उद्देश्य लोगों को हंसाने के साथ ही उभरते हुए कलाकारों को मंच देना है। कलाकर अपने काम के प्रति ईमानदार होते हैं। उन्हें पता होता है कि किस वक्त किस मुद्दे को छूना है, जो लोगों के दिलों को छू सके। कार्यक्रम में गौरव भटनागर, सुभाष रॉय, ललीत शर्मा, किम शर्मा, मानसी शर्मा, प्रेम प्रकाश, आशीष शर्मा, नैंसी गुप्ता भी मौजूद रहे। महिला ही नहीं, पुरुष भी होता है घरेलू हिंसा का शिकार : वंदना दुबे

वंदना दुबे ने अपनी कविता चौखट का शहीद के जरिए बताया कि केवल महिलाएं ही घरेलू ¨हसा की शिकार नहीं होती हैं। एक लड़का भी इस ¨हसा का शिकार होता है, लेकिन किसी को इसलिए नहीं बताता है, क्योंकि समाज में एक धारणा बन चुकी है कि अगर कुछ अत्याचार होगा तो सिर्फ महिलाओं के साथ और अत्याचार करने वाले पुरुष होते हैं। महिलाओं के लिए जितने कठिन कानून बने हैं, उतना ही वह उसका दुरुपयोग भी कर रही हैं। लड़के पर जब घरेलू ¨हसा का आरोप लगता है तो उसका साथ न तो घरवाले देते हैं और न ही दोस्त, जबकि महिला के साथ पूरा समाज खड़ा हो जाता है। यह दोहरा व्यवहार ही तो है, जो उत्पीड़न के शिकार पुरुषों को न्याय नहीं दिलवा पाता है। महिला जब उत्पीड़न का आरोप लगाती है तो पुरुष के साथ ही उसके सारे घरवालों पर यह आरोप लगता है। एक लड़का चौखट का शहीद समान होता है।


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