जीती कोरोना से जंग, अब दूसरों की जिदगी में भर रहे 'प्लाज्मा' के रंग
कोरोना के खिलाफ जंग में अग्रिम पंक्ति में योद्धा के रूप में न सिर्फ जंग लड़ने वाले बल्कि कोरोना को पटखनी देने के बाद अब दिल्ली पुलिस के जवान अन्य मरीजों को प्लाज्मा डोनेट करके उनकी जिदगी को सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
लोकेश चौहान, नई दिल्ली :
कोरोना के खिलाफ जंग में अग्रिम पंक्ति में योद्धा के रूप में न सिर्फ जंग लड़ने वाले बल्कि कोरोना को पटखनी देने के बाद अब दिल्ली पुलिस के जवान अन्य मरीजों को प्लाज्मा डोनेट करके उनकी जिदगी को सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। संक्रमित होने के बाद खुद ठीक होकर ड्यूटी पर लौटने के बाद दिल्ली पुलिस के जवान कई पुलिसकर्मियों के साथ आम लोगों के लिए भी प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं।
यातायात पुलिस में तैनात हेड कांस्टेबल विपिन कुमार सीमापुरी सर्कल में तैनात हैं। 30 अप्रैल को संक्रमित होने के कारण अस्पताल में भर्ती हुए और 13 मई को ठीक हुए। इसके बाद 15 जून को दिल्ली पुलिस की एक महिला इंस्पेक्टर और 30 मई को बिहार के रहने वाले 30 वर्षीय युवक को प्लाज्मा डोनेट कर उनकी मदद कर चुके हैं। कुछ ऐसी ही कहानी कांस्टेबल अजय भाटी की भी है। वह भी जरूरतमंद को प्लाज्मा देकर कोरोना से जंग जीतने में मदद कर रहे हैं।
बाड़ा हिदू राव में तैनात हेड कांस्टेबल परविदर भी कोरोना से जंग जीतने के बाद प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं। ये अब ऐसे लोगों को प्लाज्मा डोनेट करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं जो कोरोना को मात दे चुके हैं। पुलिसकर्मियों का कहना है कि प्लाज्मा डोनेट करना रक्तदान करने जैसा ही है। इसमें 25 मिनट से 40 मिनट तक का समय लगता है।
--------------------
क्या होता है प्लाज्मा
खून में लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं (आरबीसी - डब्ल्यूबीसी) और प्लेटलेट के अलावा जो बचता है, वो प्लाज्मा होता है। असल में यह खून का सबसे बड़ा (करीब 55 फीसद) हिस्सा होता है। प्लाज्मा एंजाइम, पानी, नमक, एंटीबॉडी और कई बहुत जरूरी प्रोटीन से मिलकर बनता है। लाल तथा सफेद रक्त कोशिकाओं के लिए तरल पदार्थ उपलब्ध कराता है, जो उसे पूरे शरीर में ले जाता है।
-----------------
कैसे होता है डोनेट और कैसे करता है काम
यदि कोई व्यक्ति सिर्फ प्लाज्मा डोनेट करता है तो उसका खून एक ट्यूब के जरिये निकाला जाता है और उसमें से प्लाज्मा निकालकर शेष को डोनर के शरीर में वापस पहुंचा दिया जाता है। इसके बाद प्लाज्मा की जांच कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि कहीं उसमें कोई रक्त जन्य वायरस तो नहीं है और क्या इसका इस्तेमाल सुरक्षित है। कोविड-19 के लिए इस बीमारी से उबर चुके लोग डोनर हो सकते हैं। डोनेट किए गए प्लाज्मा से इसका भी पता किया जाता है कि प्रति यूनिट प्लाज्मा में कितनी एंटीबॉडी है। इसी के आधार पर उचित डोज का निर्धारण होता है। प्लाज्मा देने वाले व्यक्ति और जिसे जरूरत है, उनका ब्लड ग्रुप एक ही होना चाहिए। डोनर को कनेक्टर से जोड़ा जाता है। एंटीबॉडी को खून से अलग किया जाता है। जिस पार्ट में एंटीबॉडी है, उसे सीरम कहते हैं। वो संक्रमित व्यक्ति में ट्रांसफर किया जाता है।
----------------
संक्रमण होने पर ही बनती है एंटीबॉडी
डॉक्टरों के अनुसार, इस तकनीक में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी शरीर में एंटीबॉडी तभी बनती है जब वह संक्रमण की चपेट में आ चुका हो। किसी बीमार में एंटीबॉडी तुरंत नहीं बनती है। एंटीबॉडी बनने में देरी की वजह से वह गंभीर भी हो सकता है। संक्रमित के शरीर में जैसे ही एंटीबॉडी जाती है वायरस कमजोर होने लगता है, इससे मरीज के ठीक होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। डॉक्टरों के अनुसार प्लाज्मा तकनीक से गंभीर या वेंटिलेटर पर मौजूद कोरोना संक्रमित मरीज को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।