पाकिस्तान के मुस्तफा की चाहत, अब तो गिर जाए सरहदों की दीवार
प्रगति मैदान में 14 नवंबर से शुरू हुए विश्व व्यापार मेले ने सरहदों और भाषाओं की दूरियों को पाट दिया है। आदिवासी कला संस्कृति को समेटे छत्तीसगढ़ से चंद कदम चले कि दुपट्टे-सलवार पर चटख रंगों में उत्कृष्ट कढ़ाई किए पाकिस्तान पवेलियन पहुंच गए।
नई दिल्ली (नेमिष हेमंत)। प्रगति मैदान में 14 नवंबर से शुरू हुए विश्व व्यापार मेले ने सरहदों और भाषाओं की दूरियों को पाट दिया है। आदिवासी कला संस्कृति को समेटे छत्तीसगढ़ से चंद कदम चले कि दुपट्टे-सलवार पर चटख रंगों में उत्कृष्ट कढ़ाई किए पाकिस्तान पवेलियन पहुंच गए।
पाकिस्तान के बगल वाले स्टॉल पर ईरान से आया मुस्तफा है, जो चाहता है कि पाकिस्तान और भारत के बीच के सरहदों की दीवार गिरे ताकि वह अपने यहां के बने कपड़े बेचने भारत आने के लिए दुबई का रास्ता इस्तेमाल करने की मशक्कत से बचे।
यह मेले में आए दर्शकों के लिए सुखद अहसास है। तो चलिए तमिलनाडु के सामने पश्चिम बंगाल भी हो लिया जाए। सड़क के एक तरफ औद्योगिक विकास की कहानी कहता तमिलनाडु राज्य का पवेलियन तो सामने एकतारा लिए साध्वी भेष में बांग्ला भाषा में गुनगुनाती लोक कलाकार।
वैसे, रविंद्र नाथ टैगोर, सत्यजीत रे, सुभाष चंद्र बोस जैसी शख्सियत भाषा और देश की सीमाओं में बंधे भी नहीं है। पश्चिम बंगाल पवेलियन के गलियारों में इनकी तस्वीर पश्चिम बंगाल की कला-संस्कृति की भव्यता को दर्शाती है। दूसरे भाषा के लोगों के कदम अनायास पश्चिम बंगाल पवेलियन की तरफ बढ़े आ रहे हैं।
इसी तरह गुजरात पवेलियन भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी छाप नजर आती है। सामने ही मुख्य द्वार के ऊपर बड़े स्क्रीन में वह भाषण देते दिखाई पड़ते हैं। अंदर सरदार बल्लभ भाई पटेल भी मौजूद हैं।
एक बड़ी होर्डिग में सरदार सरोवर बांध के किनारे बन रही उनकी सबसे ऊंची प्रतिमा की जानकारी है। कर्नाटक में काष्ठ शिल्प से लेकर फलों से बना हलवा, चंदन की लकड़ी समेत अन्य वस्तुएं दर्शकों को आकर्षित कर रही है।
मतलब भाषाएं भले न समझ में न आए, लेकिन पवेलियनों में आत्मीयता बसी है। इसलिए दर्शक हर पवेलियन में है। वह पवेलियन में घुसते ही उस राज्य की खासियत जानना चाह रहे हैं। तत्काल सवाल होता है कि इस राज्य का खास क्या है।
अगर खासियत पता है तो बिहार की मधुबनी पेटिंग की तरह उसका दाम पूछने के साथ खरीद शुरू हो जाती है। उत्तर प्रदेश पवेलियन में आगरा के जूते से लेकर कन्नौज की इत्र, बनारसी साड़ियां, भदोही की कालीन के खरीदारों में आसाम के लोग भी शामिल हैं।
जम्मू कश्मीर के पवेलियन में दुकानदारों का कश्मीरी भाषा में आपसी संवाद समझ में नहीं आता है, लेकिन वे ग्राहकों से हिंदी में बात कर लेते हैं। दर्शक या खरीदार यदि उस पवेलियन में पहुंच रहे हैं, वे वह घाटी में बाढ़ के बाद की विकास की कहानी जरूर जानना चाह रहे हैं। साथ ही यह भी कि अब वहां का माहौल कैसा है। दहशतगर्दो का साया तो नहीं है। वहां घुमने जा सकते हैं कि नहीं जैसे कई सवाल।