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खेल के जुनून के आगे टिक नहीं पाई आर्थिक चुनौतियां

पुष्पेंद्र कुमार पूर्वी दिल्ली सामान्य कद काठी वाले दिव्यांग मोहम्मद आसिफ को देखकर सहसा विश्

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 05:01 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jun 2020 06:08 AM (IST)
खेल के जुनून के आगे टिक नहीं पाई आर्थिक चुनौतियां
खेल के जुनून के आगे टिक नहीं पाई आर्थिक चुनौतियां

पुष्पेंद्र कुमार, पूर्वी दिल्ली: सामान्य कद काठी वाले दिव्यांग मोहम्मद आसिफ को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि वह इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर आगे बढ़े होंगे। लेकिन लंबे संघर्ष के बाद आसिफ ने आज हर उस कार्य को करने में महारत हासिल कर ली जो एक सामान्य व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है। खेल के जुनून के आगे उन्होंने कभी आर्थिक चुनौतियों को सामने नहीं आने दिया। ओलंपिक पदक हासिल करने का जुनून ऐसा है कि घर के पास मैदान में कोरोना वायरस के बीच शारीरिक दूरी का पालन कर कड़ी धूप में पसीना बहाकर तीरंदाजी का अभ्यास कर रहे हैं। उनका जीवन का लक्ष्य भारत के लिए ओलंपिक में पदक हासिल करना है। त्रिलोकपुरी निवासी मोहम्मद आसिफ (43) बचपन से ही दिव्यांग हैं। एक सड़क दुर्घटना में उनके पैर कट गए, लेकिन उन्होंने कभी इस बात का रोना नहीं रोया, बल्कि हौसले के साथ आगे बढ़ते हुए कई सारी उपलब्धियां हासिल कर लोगों को दिखा दिया कि इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। आसिफ ने न सिर्फ अपनी शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हुए तीरंदाजी में अपना भविष्य चुना, बल्कि अन्य दिव्यांग बच्चों को तीरंदाजी से जोड़कर जीवन में कुछ कर दिखाने का हौसला भी दिखाया। आर्थिक स्थिति के चलते छोड़नी पड़ी पढ़ाई आसिफ बताते हैं कि परिवार में माता नसीम बानो व चार भाई हैं। पिता का किसी बीमारी के चलते निधन हो चुका है। पिता के निधन के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति काफी बदहाल हो गई थी। परिवार में पिता ही एक कमाई का जरिया थे। कड़कड़डूमा स्थित अमर ज्योति विद्यालय में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की, आर्थिक स्थित के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। जिसके चलते विद्यालय से तीरंदाजी की तैयारी भी छूट गई। इतने रुपये नहीं थे कि किसी तीरंदाजी सेंटर में जाकर अपनी तैयार को बरकरार रख सकें। उन्होंने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति को देखकर महज 12 साल की उम्र से ही एक दर्जी की दुकान पर सिलाई का काम सीखा। सिलाइ का काम सिखने के बाद उसी दुकान पर तीन हजार रुपये महीने की धन राशि पर काम भी किया। उन तीन हजार रुपयों से परिवार का खर्च व तीरंदाजी की तैयारी की। तीरंदाजी की तैयारी के साथ-साथ ओपन से 10वीं व 12वीं की पढ़ाई की। दर्जी की दुकान पर दिन -रात काम कर कुछ रुपये जुटाकर उन्होंने एक लकड़ी का साधारण सा धनुष खरीदा। उसी धनुष से तैयारी कर एक नेशनल तीरंदाज के तौर पर पहचान बनाई। तीरंदाजी में राष्ट्रीय स्तर पर जीत चुके हैं कई पदक आसिफ बताते हैं कि उन्होंने चाइना में आयोजित एशियाई खेल 1994 में भारतीय टीम की ओर से खेला। वह बताते हैं कि उनका सपना ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना है। भविष्य में आयोजित होने जा रहे व‌र्ल्ड तीरंदाजी चैंपियनशिप के लिए अभी से ही दिन रात एक कर कंपाउंड बो से तैयारी कर रहे हैं। घर के पास प्लॉट को बनाया प्रशिक्षण स्थल आसिफ बताते है कि कोरोना वायरस के चलते यमुना स्पो‌र्ट्स कांप्लैक्स में रैन बसेरा संचालित होने के कारण खेल गतिविधियों को अनुमति नहीं मिली है। अनलॉक-एक के बाद त्रिलोकपुरी में अपने घर के पास प्लॉट में शारीरिक दूरी का पालन कर तीरंदाजी का अभ्यास कर रहे हैं। लकड़ी के धनुष से खलते-खलते कब कंपाउंड बो हाथ में आ गया पता ही नहीं चला। कंपाउंड बो आने के बाद फिर अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियनशिप में खेलने का मन बना, तो उसी दिन से अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी चैंपियनशिप की तैयारी में जुट गया।

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