उत्तर भारतीयों में आनुवांशिक बीमारी सिस्टिक फाइब्रोसिस का खतरा ज्यादा
उत्तर भारतीय बच्चों में जन्मजात आनुवांशिक बीमारी सिस्टिक फाइब्रोसिस का खतरा अधिक है। सर गंगाराम अस्पताल में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। दरअसल इस अध्ययन का मकसद यह पता लगाना था कि थैलेसीमिया के अलावा कौन सी अनुवांशिक बीमारियां उत्तर भारत में अधिक हो सकती हैं। इस शोध की अध्ययनकर्ता डॉक्टर सुनीता बिजरानिया का कहना है कि अभी तक यह माना जाता है कि हमारे यहां थैलेसीमिया जैसी कई बीमारियां ऐसी हैं जो ज्यादा मिलती हैं। इसे लेकर सरकार की ओर से कई कार्यक्रम भी चल रहे हैं।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
उत्तर भारतीय बच्चों में जन्मजात आनुवांशिक बीमारी सिस्टिक फाइब्रोसिस का खतरा अधिक है। सर गंगाराम अस्पताल में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। दरअसल इस अध्ययन का मकसद यह पता लगाना था कि थैलेसीमिया के अलावा कौन सी अनुवांशिक बीमारियां उत्तर भारत में अधिक हो सकती हैं। इस शोध की अध्ययनकर्ता डॉक्टर सुनीता बिजरानिया का कहना है कि अभी तक यह माना जाता है कि हमारे यहां थैलेसीमिया जैसी कई बीमारियां ऐसी हैं जो ज्यादा मिलती हैं। इसे लेकर सरकार की ओर से कई कार्यक्रम भी चल रहे हैं। उनके अध्ययन में यह सामने आया है कि सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी आनुवंशिक बीमारी भी यहां सामान्य हो सकती है।
डॉक्टरों के अनुसार अध्ययन के दौरान 88 उत्तर भारतीय पति-पत्नी सहित 200 लोगों में जन्मजात बहरेपन एवं पोंपे रोग की व्यापकता भी पाई गई। डॉक्टर सुनीता के मुताबिक 200 लोगों में से 9 लोग इस बीमारी के वाहक मिले, यानी जन्म लेने वाले दो हजार बच्चों में से एक बच्चे को यह बीमारी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि अभी तक भारत में इस बीमारी पर और कोई बड़ा शोध नहीं हुआ है, लेकिन पश्चिमी देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों पर हुए अध्ययन में 10 हजार से 40 हजार लोगों में से एक व्यक्ति में इस बीमारी का खतरा देखा गया है। इस वजह से इसे लोग हल्के में लेते रहे, लेकिन अब उनके अध्ययन में यह काफी ज्यादा प्रसार वाली बीमारी के रूप में सामने आई है।
क्या है सिस्टिक फाइब्रोसिस :
यह एक ऐसी आनुवंशिक बीमारी है जिसमें शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ जैसे पसीना, बलगम एवं पाचक रस गाढ़े एवं चिपचिपे हो जाते हैं। नतीजन शरीर के अलग-अलग अंगों से निकलने वाली धमनियां अवरुद्ध हो जाती हैं। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में जिदगी भर डायरिया और पाचन संबंधी समस्याएं आती हैं। डॉक्टर सुनीता के मुताबिक महिला को गर्भ धारण करने से पहले या गर्भ के तीन महीने तक अपनी और अपने पति की इस बीमारी से जुड़े करियर का पता लगाने की जांच करा लेनी चाहिए। जांच में बच्चे के इस बीमारी से पीड़ित होने का खतरा दिखता है तो उनकी सहमति से गर्भवती होने के चार महीने के अंदर ही भ्रूण को हटाया जा सकता है ताकि इस बीमारी से पीड़ित बच्चा पैदा न हो।