प्रदूषण की मार से नस्लें भी हो सकती हैं प्रभावित, पढ़िए क्या कहते हैं डॉक्टर
ओपीडी में प्रतिदिन तीन से चार ऐसी गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए पहुंचती हैं जिन्हें सांस की परेशानी होती है। इसका सीधा असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ेगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। प्रदूषण की मार से सांस के मरीज बढ़ गए हैं। इससे हृदय की बीमारियां व आगे चलकर कैंसर जैसी घातक बीमारियां होने का खतरा भी है। इतना ही नहीं डॉक्टर कहते हैं कि यदि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कारगर व्यवस्था नहीं की गई तो इसका दीर्घकालिक परिणाम बेहद घातक साबित हो सकता है, क्योंकि प्रदूषण की मार से गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क पर भी असर पड़ सकता है।
एम्स भी कर रहा शोध
इसलिए प्रदूषण से नई नस्लें भी प्रभावित हो सकती हैं। यही वजह है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भी गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव पर शोध कर रहा है। डॉक्टर कहते हैं कि वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर व जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ने से गर्भपात तक का खतरा रहता है।
हो सकते हैं कुपोषित बच्चे
इस वजह से बच्चे कमजोर व कुपोषित हो सकते हैं। लिहाजा लो-बर्थ वेट (जन्म के समय सामान्य से कम वजन) के मामले बढ़ सकते हैं। नेचर आइवीएफ सेंटर की गायनेकोलॉजी की विशेषज्ञ डॉ. अर्चना धवन बजाज ने कहा कि वायु प्रदूषण गर्भवती महिलाओं व गर्भस्थ शिशु के लिए भी बहुत खतरनाक है। क्योंकि, गर्भावस्था के दौरान बच्चे मां से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं।
प्रदूषण का सीधा असर बच्चे पर
प्रदूषण बढ़ने पर गर्भवती महिलाओं को सांस लेने में परेशानी होने पर उसका सीधा असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ेगा। इसलिए गर्भवती महिलाओं को मौजूदा समय में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। खासतौर पर पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाओं को विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। प्रदूषण के कारण इंट्रायूटरिन इंफ्लामेशन की समस्या होती है। इस कारण बच्चों में दिव्यांगता हो सकती है।
मां को सांस लेने में परेशानी
उन्होंने कहा कि ओपीडी में प्रतिदिन तीन से चार ऐसी गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए पहुंचती हैं जिन्हें सांस की परेशानी होती है। इसलिए गर्भवती महिलाएं मास्क पहनकर ही घर से बाहर निकलें। बीएलके अस्पताल के श्वांस रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप नैयर ने कहा कि प्रदूषण से बच्चों व बुजुर्गो को अधिक खतरा है। ओपीडी में करीब 30 फीसद तक मरीज बढ़ गए हैं।
उन्होंने कहा कि पीएम 2.5 सांस के जरिये खून में मिलकर शरीर में पहुंचते हैं। इससे फेफड़े तो खराब होंगे ही तंत्रिका तंत्र पर भी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि जब तक प्रदूषण से राहत नहीं मिलती तब तक उससे बचाव के लिए एन 95 या उससे अधिक नंबर का मास्क पहनकर ही बाहर निकलना बेहतर होगा।