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किरण-किरण जुटकर, उम्मीदों का सूरज लाएगी

प्रियंका दुबे मेहता गुरुग्राम हर तरफ अंधेरा है घाट पर अकेला हूं। सीढि़या हैं पत्थर की

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 07:42 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 07:42 PM (IST)
किरण-किरण जुटकर, उम्मीदों का सूरज लाएगी
किरण-किरण जुटकर, उम्मीदों का सूरज लाएगी

प्रियंका दुबे मेहता, गुरुग्राम

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'हर तरफ अंधेरा है, घाट पर अकेला हूं। सीढि़या हैं पत्थर की, सीढि़यों पे लेटा हूं, अब मैं उठ नहीं सकता, आसमा को तकता हूं, आसमा की थाली में चाद एक रोटी है। झुक रही हैं अब पलकें, डूबता है ये मंजर, है जमीन गर्दिश में, मेरे घर में चूल्हा था..आज तीसरा दिन था, आज तीसरा दिन था।' बृहस्पतिवार को 'स्पिक मैके' की ऑनलाइन वार्ता में जावेद अख्तर द्वारा पढ़ी जा रही इस नज्म में आज के हालात को, आज के संघर्ष के समीप थीं..हर मन में उठते वेग को छू रहीं थीं, मन की दहलीज पर नंगे पांव ही उतर रही थीं। आंसुओं की फिसलन भी थी, पर हौसले की पीठ भी थी..। लाइव वार्ता में जावेद साहब के साथ अभिनेत्री शबाना आजमी भी थीं, जो दर्शकों के लिए भाषाओ की बंदिश को दूर करते हुए नज्म का अंग्रेजी में अनुवाद कर पढ़ रही थीं। अख्तर की कविताओं में कोरोना महामारी में अब तक जो गुजरी है उसकी टीस बेहिसाब उभरती है। लेकिन उन्होंने हालातों के आगे न डिगने और उबरने की बार-बार नसीहत भी दी। उनकी नज्म 'आज तीसरा दिन है', प्रवासी मजबूर मजदूरों की कहानी कहती प्रतीत होती है। शबाना की आखें नम हो जाती हैं और आवाज भर्रा आती है। आसू को पलकों में कैद कर वे फिर से रूबरू होती हैं तो इस नज्म का तर्जुमा करती हैं। माहौल की गमगीनी मिटाते हुए जावेद कहते हैं कि इंसान को आस नहीं छोड़नी चाहिए। पल-दो-पल की निराशा के पीछे आस की किरणें भी छिपी होती हैं, निराशा के बादल छंटते हैं और उम्मीदों की किरण से नया सवेरा होता है। इस बात को उन्होंने कविताबद्ध किया - 'आओ चल के सूरज ढूंढे और न मिले तो किरण-किरण फिर जमा करें हम और इक सूरज नया बनाएं। सोई है कब से, रूठ के सब से, सुबह की गोरी, उसे जगाएं, उसे मनाएं।'

'दोराहा' कविता के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को बच्चों के जीवन को गढ़ने की नसीहत दी। उन्होंने बताया कि एक उम्र में बच्चों को माता-पिता अपने जीवन का हिस्सा नहीं लगते, उन्हें बाहरी दुनिया की चमक आकर्षित करने लगती है। ऐसे में उन्हें बेहद सावधानी से संभालना चाहिए। उन्हें आजादी देनी चाहिए लेकिन साथ में अच्छे-बुरे की सीख भी। यह कला के माध्यम से संभव है। कला का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। स्पिक मैके कला संस्कृति को युवाओं के बीच ले जा रहा है जिससे समाज को सकारात्मक दिशा मिलेगी। जावेद ने इस दौरान 'वो कमरा याद आता है', 'ये वक्त क्या है' जैसी कविताएं सुनाईं। कविता क्या है, इस बारे में उन्होंने फिराक गोरखपुरी की उस बात को साझा किया जिसमें उन्होंने उदाहरण दिया था कि शिव ताडव में जिस तरह से शिवजी का अंग-अंग ताडव कर रहा है वहीं उनके चेहरे पर एक हल्की से मुस्कान भी है, यही मुस्कान शायरी है। उनका मतलब था कि जिंदगी ताडव है लेकिन इसके बीच शायरी की मुस्कान से सुकून के लम्हे मिलते हैं।

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