सरकार पहले करती प्रयास तो नहीं उखड़ती सांस
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : सरकार कुछ साल पहले प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम उठाती तो आ
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : सरकार कुछ साल पहले प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम उठाती तो आज राजधानी स्मॉग चैंबर नहीं बनती। बच्चे हों या बूढे़ उनकी सांसें उखड़ रही हैं, सुबह गुलजार रहने वाले पार्क अब सूने हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऑड-इवेन प्रदूषण को रोकने का स्थायी समाधान नहीं है।
जेएनयू के स्कूल ऑफ एन्वॉयरमेंटल साइंस के प्राध्यापक डॉ. अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि गत कुछ वर्षो में सरकार ने किसी तरह के ठोस कदम नहीं उठाए। पिछले साल की घटना से भी सीख नहीं ली। सड़कों पर धड़ल्ले से डीजल वाहन चल रहे हैं। निर्माण कार्यो में भी कमी नहीं आई है। स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल की संख्या भी बढ़ी है। सरकार ने सड़क प्रबंधन पर भी काम नहीं किया, इसलिए जाम लगता है और प्रदूषण बढ़ता है। शहर में प्रदूषण फैलाने वाली कई यूनिट चल रही हैं, जिन पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यातायात पुलिस चालान कर रेवेन्यू बढ़ा रही है, लेकिन वह यह नहीं देखती है कि कौन सा वाहन अधिक प्रदूषण फैला रहा है। सरकार की तरफ से प्रदूषण रोकने के लिए कोई श्वेत पत्र नहीं आया है। बरसात के महीनों को छोड दें तो हर माह राजधानी में प्रदूषण का स्तर सामान्य से काफी अधिक रहता है। राजधानी में प्रतिदिन 6 हजार गाड़ियां खरीदी जाती हैं। ऐसी स्थिति एनसीआर में भी है। जब तक सरकार सख्ती नहीं करेगी, तब तक प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं होगा।
डीयू में पर्यावरण विभाग के प्राध्यापक डॉ. ज्ञान प्रकाश शर्मा का कहना है कि ऑड-इवेन या जो उपाय अपनाए जा रहे हैं, वह स्थायी नहीं हैं। राजधानी में निर्माण कार्य स्थल पर मात्र हरे रंग का झीना पर्दा डालकर काम चलाया जा रहा है। इससे पर्टिकुलेट मैटर के उड़ने में कमी नहीं आ रही है। सरकारी एजेसिंया इसे क्यों नहीं रोक पा रही हैं। जेनरेटर का उपयोग भी कई स्थानों पर हो रहा है। प्रदूषण रोकने का कदम तभी प्रभावी होगा, जब समग्र प्रयास होगा।